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राष्ट्रपति चुनाव 2017: लालू यादव नवंबर 2015 की उस घटना को भूले नहीं हैं?

लालू की तरफ से रामनाथ कोविंद के नाम पर रजामंदी के आसार कम ही लग रहे हैं

Amitesh

रामनाथ कोविंद के नाम को बीजेपी ने आगे कर एक साथ यूपी और बिहार के सियासी दिग्गजों को अपने साथ लाने की कोशिश की है. मायावती और नीतीश इस चाल में उलझते भी नजर आ रहे हैं. लेकिन, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) अध्यक्ष लालू यादव अभी भी कोविंद के नाम पर सहमति वाला नजरिया नहीं दिखा रहे हैं.

लालू रामनाथ कोविंद के नाम पर राजी हों भी तो कैसे. दस साल बाद 20 नवंबर, 2015 को बिहार में सत्ता में वापसी हो रही थी. लालू के दोनों 'लाल' शपथ ग्रहण कर रहे थे. उसी वक्त बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप को बीच में ही टोक दिया.


राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने मंच से तेजप्रताप को टोक दिया

दरअसल, हुआ यूं था कि तेजप्रताप ने अपने शपथ पत्र में गलत शब्द बोल दिया था. तेजप्रताप ने अपेक्षित के बदले उपेक्षित का उच्चारण कर दिया था. फिर, क्या था, शपथ ग्रहण कराने वाले बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने मंच पर ही तेजप्रताप को टोक दिया.

लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप ने मंत्री पद के शपथ ग्रहण के दौरान गलत शब्द का उच्चारण कर दिया था

राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने शपथ लेने के तुरंत बाद तेजप्रताप को फिर से शपथ लेने को कहा था. लगता है लालू इस बात को अबतक भुला नहीं पाए हैं. लालू की तरफ से कोविंद के नाम पर रजामंदी के आसार कम ही लग रहे हैं.

आरजेडी प्रवक्ता मनोज झा के बयान से यह साफ हो भी जाता है. मनोज झा का कहना है कि बीजेपी संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के संदर्भ में भी अहंकार के प्रदर्शन से बाज नहीं आ रही. आरजेडी इस बात का संकेत दे रही है कि कांग्रेस के साथ मिलकर संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के साथ ही वह रहेगी.

बेटे का मजाक उड़ने से लालू हुए थे आगबबूला 

पहली बार विधायक बने अपने बड़े बेटे के दोबारा शपथ लेने के कारण सोशल मीडिया से लेकर हर जगह खूब मजाक उड़ा था. लालू इस बात को लेकर तब आगबबूला भी हो गए थे. बेटे के मजाक बनने के बाद लालू यादव ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण पर ही सवाल खड़े कर दिए थे.

लालू ने उस वक्त प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलते हुए कहा था कि देश को तोड़ने का इनका एजेंडा है क्योंकि प्रधानमंत्री ने देश की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने की शपथ तो ली ही नहीं.

रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी का विरोध कर लालू यादव अपनी बीजेपी विरोधी छवि को बनाए रखना चाहते हैं

लालू का आरोप था कि प्रधानमंत्री ने अक्षुण्ण के बदले अक्षण्ण शब्द बोला था,  इसलिए उन्हें फिर से शपथ लेनी चाहिए. लालू की नाराजगी इस बात का इशारा करने के लिए काफी है कि वह राज्यपाल रामनाथ कोविंद को किस कदर नापंसद करते हैं.

अब वही रामनाथ कोविंद एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं तो भला लालू से समर्थन की उम्मीद कैसे की जा सकती है.

दरअसल, लालू के साथ मजबूरी भी है. लालू यादव का इतिहास अब तक बीजेपी और संघ परिवार के धुर-विरोधी के तौर पर रहा है. हर तरह से वह संघ विरोधी मुहिम में खुद को सबसे बड़े नायक के तौर पर सामने लाना चाहते हैं. ऐसी सूरत में लालू के लिए संघ और बीजेपी की पृष्ठभूमि के रामनाथ कोविंद का विरोध करने के सिवा कोई और चारा भी नहीं दिख रहा.

बड़े मसलों पर सरकार के फैसलों के साथ खड़ा दिखता

इस मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काफी आगे हैं. मोदी विरोधी होने के बावजूद नीतीश ने अपनी छवि को एक ऐसे नेता के तौर पर उभारा है जो बड़े मसलों पर सरकार के फैसलों के साथ खड़ा दिखता है.

नीतीश कुमार के नरेंद्र मोदी से अपने मतभेद हैं लेकिन जनहित के मुद्दे पर वो सरकार को समर्थन करते दिखते हैं

रामनाथ कोविंद की तारीफ के जरिए नीतीश की कोशिश एक संदेश देने की है. अगर वह रामनाथ कोविंद का समर्थन भी कर देते हैं तो उनके व्यक्तित्व के खिलाफ नहीं बल्कि वह बात उनके व्यक्तित्व के मुताबिक ही होगा. लेकिन, यही बात लालू यादव के साथ लागू नहीं होती है.