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व्यंग्य: सियासत के सनातन परिवार कल्याण मंत्री हैं लालू प्रसाद यादव!

चारा घोटाले से लेकर पटना के मिट्टी घोटाले तक सब परिवारवादी राजनीति की महिमा है

Tarun Kumar

अपने मजेदार गंवई अंदाज, दिलचस्प चाल-ढाल और बेलगाम ठसक के कारण सियासत के बिंदास किरदार रहे लालू प्रसाद यादव मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. ऐसा दौर जिसने इस अनसीरियस पोलिटिशियन को मुल्क का ‘मोस्ट सीरियस पोलिटिशियन’ बना दिया है. सीबीआई के साथ दशकों से सांप-सीढ़ी का लूडो खेल रहे लालू अपने और अपने होनहार बाल-बच्चों के देश-व्यापी ठिकानों पर ताबड़तोड़ प्रहार झेल रहे हैं. लालू ने कानूनी लफड़े-पचड़े झेलते हुए राजनीति की महिमा से जो कुछ भी सृजित-अर्जित किया है, उन पर मोदी सरकार की काली नजर पड़ती देख उनका दम फूलने लगा है.

इतने जतन से हर झंझावात और मुश्किलों को झेलते हुए लालू ने अपने परिवार के लिए जो कुछ भी किया है, यह उन्हें आदर्श और प्रेरक परिवारवादी बनाता है. ऐसा अखंड परिवारवादी जिसकी अब तक की इंच-इंच सियासी परिक्रमा सिर्फ परिवार की किस्मत संवारने को समर्पित रही.


लाख मुश्किलों में भी लालू ने परिवार कल्याण से मोह भंग नहीं होने दिया

लालू चाहे विधायक रहे या सांसद या फिर सीएम बाद में केंद्रीय मंत्री, वे आदतन और इरादतन परिवार कल्याण मंत्री ही बने रहे! परिवार नियोजन के प्रति लापरवाह रहकर नौ बच्चों के पिता बने लालूजी ने संपूर्ण समर्पण से अपने परिवार और ससुरालियों के परम कल्याण का जो दुर्लभ नजीर छोड़ा है, उसे परिवार से दूर रहने वाले मोदी जी भला क्या समझेंगे!

मीसा, रोहिणी, भारती, चंदा, हेमा, राजलक्ष्मी, धनु, तेज और तेजस्वी जैसी नौ होनहार संतानों के पिता होने की जिम्मेवारी क्या होती है, यह लालू नहीं समझते तो और कौन समझता! साधू और सुभाष जैसे निकम्मे ससुरालियों के प्रति एक जीजे का फर्ज क्या होता है, यह उनके जैसे ससुरालवादी नहीं समझता तो कौन समझता. लालू का मिशन साफ था. गरीब बिहार की गद्दी मिलते ही उन्होंने बड़े होते अपने बच्चों के लिए जुगाड़ का गियर दबा दिया.

सीएम रहते उन्होंने बरसों से जारी चारा घोटाले को सांस्थानिक रूप दिया. 950 करोड़ के इस घोटाले ने उन्हें चाईबासा, दुमका, रांची, पटना आदि के खजानों से मालामाल हो जाने का बेखौफ मौका दिया. इस मोर्चे पर लाख कानूनी लफड़े झेलते हुए उन्होंने परिवार कल्याण के अपने फर्ज को दिमाग से ओझल नहीं होने दिया.

कानून की नजर में चढ़ने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी के हाथों निजाम सौंपकर परम परिवारवादी होने का ठोस सबूत दिया. साथ ही, साधू और सुभाष जैसे निकम्मे सालों की तकदीर संवारने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्हें सांसद की मेंमरी से उपकृत किया गया. पारिवारिक रसूख के अपने विराट सपने को लालू जी ने अपनी पार्टी राजद की किस्मत से टांक दिया.

चारे से लेकर मिट्टी तक के घोटाले का आरोप

परिवार को उन्होंने पार्टी का पर्याय बनाकर देश के कुछ उभरते परिवारवादी नेताओं के सामने प्रेरक मिसाल छोड़ी. अपनी रिमोटी राबड़ी सरकार के दौरान उन्होंने परिवारिक सशक्तिकरण का जो महाविराट रूप दिखाया, वह सियासी किस्सागोई का चर्चित अध्याय रहा है. धौंस और दबंगई के इस बेलगाम लालुई दौर में उनके परिवार को संपूर्ण बिहार का पर्याय बन जाने का मौका मिला. उत्कर्ष के बाद पतन का दौर भी आता है. नीतीश के उभार ने उन्हें राज्य की राजनीति में अचानक दुबला कर दिया. लेकिन, किस्मत ने फिर पलटी खाई और लालू केंद्र की राजनीति में स्थापित हो गए.

वहां के मंत्रालयी दौर में उन्होंने जो चांदी काटी, उसका खुलासा मोदी दौर में हो रहा है. वहीं नीतीश के साथ आश्चर्यजनक गठजोड़ कर सत्ता-वापसी के सुख ने उन्हें अपने बच्चों के साथ मिलकर परिवार के कायापलट का स्वर्णिम अवसर दिया. चाहतों ने एक बार फिर कुलांचे भरी और इस बार लालू के दोनों उदीयमान व होनहार मंत्री पुत्रों, सांसद बेटी और दामाद ने लालू के मिशन पर ईमानदारी से अमल तेज कर दिया.

गोशाला से संघर्ष झेलकर सत्ता तक पहुंचे लालू परिवार ने कई कंपनियां खड़ी कर पटना, दिल्ली, रांची, गुड़गांव आदि में भूखंडों, कोठियों, निर्माणाधीन मॉल, अपार्टमेंट का जो निजाम खड़ा किया, वह किसी भी परिवार के उभार की एक दुर्लभ गाथा. लालू के बच्चों में उनका डीएनए खूब कमाल जादू दिखा रहा है. कानून ने भलेही लालू को चुनावी राजनीति से काट रखा है, पर लालू ने परिवार के असीमित विकास के लिए फ्रीलांसर सियासी जुगाड़ू का अपना रोल तय कर रहा है.

चारा घोटाले से लेकर पटना के मिट्टी घोटाले तक लालू का ही करिश्माई परिवारवारी जुगाड़ राजनीति की महिमा है. सीबीआई अपना काम करती रहेगी, लालू अपने मिशन में हलकान-परेशान होकर भी तल्लीन रहेंगे. लालू होने का मतलब भी राजनीति में शायद यही रह गया है.