'रासना के लोगों सुनो. अगर कोई आप पर अंगुली उठाए तो मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि हम उन्हें देख लेंगे. हम डोगरा हैं. हम सदियों से लड़ते रहे हैं.' यह बयान जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी सरकार में मंत्री रहे चौधरी लाल सिंह ने एक मार्च को जम्मू में एक रैली में दिया था. यह रैली हिंदू एकता मंच के तहत आयोजित की गई थी. इसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए थे. कठुआ में आठ साल की बच्ची से गैंगरेप और हत्या के मामले में सात लोगों की गिरफ्तारी के बाद यह रैली बुलाई गई थी. लाल सिंह पिछले कुछ महीनों में जम्मू की राजनीति में काफी तेजी से ऊपर उठे हैं.
हिंदू एकता मंच इस मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रही थी. अप्रैल में लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा ने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था. इन दोनों ने रेप के आरोपियों का पक्ष लिया था. लाल सिंह को सत्ता से बाहर होने पर जरा भी हैरानी नहीं हुई. उन्होंने राज्य बीजेपी की एक भी बैठक में हिस्सा नहीं लिया. हालांकि उन्होंने पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया, लेकिन अब वह खुद को जम्मू की राजनीति में अलग मुकाम दिलाने में लगे हुए हैं.
लाल सिंह 'डोगरा स्वाभिमान संगठन' को गैर राजनीतिक दल बताते हैं, लेकिन उनकी मांगें काफी राजनीतिक हैं. कठुआ गैंगरेप में सीबीआई जांच के अलावा यह संगठन अलग जम्मू राज्य की मांग करता है और इसके लिए प्रदर्शन की चेतावनी भी दे चुका है.
सिंह का कहना है कि अलग जम्मू राज्य जरूरी है, जिससे कि डोगराओं की इच्छाओं की पूर्ति हो. वे अपनी रैलियों में कई बार कह चुके हैं कि जम्मू लंबे समय तक कश्मीर के साथ नहीं रहेगा. कैबिनेट छोड़ने के बाद से लाल सिंह सैकड़ों रैलियां कर चुके हैं. उन्होंने पंचायत चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान भी कर दिया है, ताकि पता चल सके कि उनकी लोकप्रियता कितनी है.
कौन है लाल सिंह?
लाल सिंह जब पहली बार गिरफ्तार हुए तब उनकी उम्र महज 15 साल थी और वह छात्र नेता थे. युवावस्था में उन्होंने अपने गृहनगर कठुआ में छात्रों और मजदूरों के कई प्रदर्शन किए. उन्होंने कठुआ डिग्री कॉलेज में एडमिशन लिया. इस दौरान वे कई बार गिरफ्तार हुए और तीन बार जम्मू सेंट्रल जेल में बंद रहे. युवावस्था के दौरान एक समय तो वे महीने में 15 दिन कोर्ट जाते थे. इस बारे में लाल सिंह बताते हैं, 'मेरे क्लासमेट मजाक में कहते थे कि आज तारीख नहीं हैं.'
लाल सिंह के पिता भी राजनेता थे और वामपंथी की तरफ झुकाव रखने वाले संगठन से जुड़े हुए थे. सिंह ने बताया कि वह भी हमेशा से राजनेता बनना चाहते थे.
उन्होंने पहला चुनाव 1996 में बसोली सीट से लड़ा और कांग्रेस से जुड़ी पार्टी से चुनाव जीता. उन्हें जल्द ही कैबिनेट में शामिल किया गया. इसके अगले साल उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा और उधमपुर सीट से जीते. लाल सिंह का कहना है कि उन्हें आम चुनाव लड़ने को कहा गया क्योंकि गठबंधन सरकार में मंत्री के रूप में किए गए उनके काम को पसंद नहीं किया गया.
डोगरा फ्रंट
मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद लाल सिंह ने अपनी राजनीति में बदलाव किया. उन्होंने डोगराओं में पैठ जमाना शुरू किया. इसके लिए उन्होंने डोगरा स्वाभिमान संगठन बनाया. डोगरा समुदाय हिमाचल प्रदेश, जम्मू और पंजाब के कुछ इलाकों में रहता है. यहां पर कभी डोगरा राजा गुलाब सिंह का राज था.
लाल सिंह अपने भाषणों में गुलाब सिंह का नाम लेना नहीं भूलते. रैली में अपने भाषण के अंत में वे कहते हैं, 'जय डुग्गर, जय डोगरा.' उनका दावा है कि वे अब तक 700 से ज्यादा रैलियां कर चुके हैं और पिछले 100 दिन में क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों का दौरा कर चुके हैं.
काफी कम समय में उनकी पकड़ जम्मू में तेजी से बढ़ी है. बीजेपी में उनके साथी भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं. पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता अब्दुल गनी कोहली ने बताया, 'लाल सिंह उन जगहों पर समर्थन हासिल करने में लगे हुए हैं जहां पर बीजेपी का दबदबा है. भविष्य में उनकी गतिविधियां बीजेपी पर असर डालेंगी. यदि वह बीजेपी का साथ देते हैं तो यह पार्टी के लिए बेहतर होगा नहीं तो चिंता की बात है.'
वे दावा करते हैं कि मंत्री रहते हुए उन्होंने 231 डॉक्टरों को सस्पेंड किया जिसमें से 215 कश्मीर के थे. उन्होंने प्राइवेट प्रेक्टिस करने के आरोप में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसीपल के घर पर भी छापे मारने का आदेश दिया था. 2009 में वे फिर से सांसद चुने गए और उनकी गिनती कांग्रेस के बड़े नेताओं में होने लगी. हालांकि 2014 में उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया गया तो वे कांग्रेस से अलग हो गए. अगस्त 2014 में बीजेपी में शामिल हो गए. 2014 के विधानसभा चुनाव में वे बीजेपी की टिकट से जीते और मंत्री बने.
(न्यूज 18 के लिए आकाश हसन की रिपोर्ट)