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कवि सम्मेलन से भी गायब हुए कुमार, अब कविताओं से भी उठा केजरीवाल का 'विश्वास'

कुमार का राज्यसभा टिकट काटने के बाद केजरीवाल के साथ उनका विवाद पार्टी के गलियारों से अब कविता के मंच तक आ पहुंचा है

Kinshuk Praval

ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल मानो कुमार विश्वास के लिए कह रहे हैं कि ‘अपनी हसरतों से कहो कहीं और जा कर बस जाएं’. ये बेरुखी सिर्फ राज्यसभा का टिकट काटने भर से ही नहीं सामने दिखाई दे रही है. बल्कि अब तो कुमार विश्वास से उनकी क्रांतिकारी कवि की छवि को भी दूर किया जा रहा है.

दिल्ली सरकार की तरफ से लाल किले पर हर साल कवि सम्मेलन आयोजित होता है. देशभर के नामचीन कवि अपनी कविताएं सुनाते हैं. पिछले साल तक कुमार विश्वास भी उसी मंच से अपनी कविताओं को सुर दिया करते थे. लेकिन इस बार न तो मंच पर कुमार विश्वास होंगे और न ही उनकी कविताएं.


दिल्ली सरकार के निमंत्रण कार्ड में बहुत सावधानी बरती गई है कि कहीं भूल से भी कुमार विश्वास नाम न छप जाए. इस बार कुमार विश्वास को दिल्ली सरकार ने सार्वजनिक मंच से कविताओं में बहने का मौका नहीं दिया. न तो उन्हें कविता सुनाने और न ही श्रोता बनने का न्यौता दिया गया.

आम आदमी पार्टी के इस फैसले के बाद पार्टी के भीतर बगावत बुलंद करने वाले कुमार विश्वास के लिए मुगल सल्तनत के आखिर शहंशाह बहादुर शाह ज़फर का ये शेर सारा फसाना कह देता है कि ‘दो गज़ ज़मीन न मिली कूंचा ए यार में, लगता नहीं जी मेरा उजड़े दयार में’.

कुमार के लिए ये आघात पुराना नहीं है. बस उनके जख्मों को कुरेदने की कवायद जारी है. कुमार का राज्यसभा टिकट काटने के बाद केजरीवाल के साथ उनका विवाद पार्टी के गलियारों से अब कविता के मंच तक आ पहुंचा है. कुमार को सार्वजनिक रूप से न्यौता न देकर पार्टी ने साफ कर दिया है कि कुमार की बतौर कवि या नेता पार्टी में वजूद नहीं रहा.

इससे पहले भी इफ्तार पार्टी में कुमार विश्वास को नहीं बुलाया गया था. उस वक्त जब उनसे वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा था कि किसी को बुलाना या न बुलाना दिल्ली सरकार का फैसला होता है. लेकिन इस बार कुमार पहले की तरह नेता बनकर सवाल को टाल नहीं सके. पार्टी के राजस्थान प्रभारी कुमार विश्वास के कवि हृदय का वीर रस जागा. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार के पास हिम्मत नहीं है कि वो कुमार विश्वास को श्रोता के रूप में भी सहन कर सके.

राज्यसभा टिकट न मिलने से नाराज कुमार को लगता है कि उनके साथ गहरी साजिश रची गई. उनके सच बोलने की फितरत को पार्टी ने हथियार बनाया है. तभी कुमार कहते हैं कि सच बोलने की उन्हें सजा मिली. कुमार विश्वास ने कहा था कि उन्हें सर्जिकल स्ट्राइक, जेएनयू विवाद और सैनिकों की शहादत पर सच बोलने का दंड मिला है.

मशहूर शायर वसीम बरेलवी का शेर है कि ‘झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये, और मैं था कि सच बोलता रह गया’.  कुमार अकेले में सोच सकते हैं कि उन्होंने अब तक ऐसा कौन-कौन सा सच बोला जो अरविंद केजरीवाल को इतना खला.

कुमार मानते हैं कि राजनीति में वो शहीद हो गए और उनके शव के साथ छेड़छाड़ न की जाए. लेकिन कवि को उसकी कविताओं से दूर करने वाला दिल्ली सरकार का फैसला छेड़छाड़ से कम भी नहीं.

हाल ही में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपाल राय ने कुमार विश्वास पर दिल्ली सरकार गिराने का आरोप लगाया था. अब दिल्ली सरकार पर कुमार विश्वास को न बुलाने का आरोप लग रहा है. पार्टी और सरकार की तरफ से इस पर कोई सफाई नहीं आई है. शायद अब पार्टी कवि और कविताओं का टेस्ट बदल कर देखना चाहती है क्योंकि कुमार के साथ अब उनकी कविताओं पर से भी विश्वास उठ गया है. शायद ये डर भी हो सकता है कि कहीं कुमार विश्वास कविताओं के तरकश से कुछ ऐसा न पेश कर दें जिससे पार्टी में उनका तीर निशाने पर बैठ जाए.

बहरहाल कुमार विश्वास ऐसे मौके पर अपनी ही कविता गुनगुना सकते हैं,

‘कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !

मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!

मैं तुझसे दूर कैसा हूं , तू मुझसे दूर कैसी है !

ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!