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कुमार विश्वास अब कह सकते हैं कि ‘तेरे लिखे को निभाया, बताओ खता कहां की मैंने?’

कुमार विश्वास कोर्ट को ये भरोसा दिलाना चाहते थे कि उन्होंने अपनी मर्जी से जेटली पर कोई आरोप नहीं लगाया बल्कि उनके आरोपों के पीछे केवल और केवल केजरीवाल ही जिम्मेदार हैं जो मैदान छोड़ कर भाग निकले

Kinshuk Praval

कुमार विश्वास का एक राजनीतिक अनुभव आम आदमी पार्टी के दूसरे नेताओं के लिए नसीहत से कम नहीं है. सर्वोच्च नेता के किसी भी बयान का आंख मूंदकर अनुसरण करना कभी कभी फंसा भी सकता है. कुमार विश्वास अब कह रहे हैं कि ‘तेरे लिखे को निभाया, बता खता कहां की मैने?’

दरअसल कुमार विश्वास कोर्ट में उस मामले की वजह से पहुंचे जिसके असली किरदार पहले ही सीन से अपना रोल कटवा चुके थे. वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाने के बाद अरविंद केजरीवाल पर जब मानहानि के मुकदमे की तलवार लटकी तो उन्होंने माफी मांग कर मामले से खुद को और अपने चार साथियों को बरी करवा लिया.


लेकिन पांचवें नेता यानी कुमार विश्वास के लिए केजरीवाल ने कोई माफी-योजना नहीं रखी. नतीजतन कोर्ट में कुमार की पेशी हुई और फिर कुमार विश्वास की दलील ही उनके पिछले बयानों से मेल खाती भी नहीं दिखी. हां, उसमें केजरीवाल की तरह ही यू टर्न पॉलिटिक्स का अक्स जरूर दिखा.

दरअसल वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पांच नेताओं के खिलाफ दिसंबर 2015 में मानहानि का मुकदमा दायर किया था. इन पांच नेताओं में एक नाम कुमार विश्वास का भी था. अरविंद केजरीवाल और चार नेताओं ने अरुण जेटली से माफी मांग ली. लेकिन कुमार विश्वास का नाम इस मंडली से भी गायब था. वो अकेले रह गए माफी मांगने से और फिर उन्होंने हुंकार भरी कि वो अरुण जेटली से माफी नहीं मांगेंगे. उन्होंने कहा कि वो अपनी बात पर अडिग हैं और माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि वो तब माफी मांगेंगे जबकि पार्टी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ 11 हजार दर्ज मुकदमें वापस नहीं होंगे.

मानहानि के मुकदमों का मौसम दरअसल तब आया जब केजरीवाल आरोपों की झड़ी लगा रहे थे. उसी जोश में उन्होंने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर भी निशाना साधा. डीडीसीए में भ्रष्टाचार को लेकर अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम ने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर संगीन आरोप लगाए.

'आप' नेता इस मामले में जांच के दौरान जेटली के खिलाफ कोई भी सबूत पेश नहीं कर पाए. आरोपों के बाद अरुण जेटली ने केजरीवाल एंड टीम पर दस करोड़ रुपये की मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया. जिसके बाद अरविंद केजरीवाल ने यू-टर्न लेते हुए माफी-यात्रा शुरू की. उन सभी लोगों से अपने बयानों के लिए माफी मांगी गई जिन्होंने केजरीवाल पर मानहानि का मुकदमा दायर किया था.

साभार ट्विटर

वहीं अरविंद केजरीवाल समेत चार नेताओं ने एक पत्र लिखकर वित्त मंत्री अरुण जेटली को माफीनामा भेजा और दिल्ली की पटियाला कोर्ट में एक याचिका दायर कर मानहानि के केस को वापस लेने की गुहार भी लगाई.

केजरीवाल ने यहां भी कुमार विश्वास के साथ राजनीति करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने जेटली से जुड़े मानहानि के मामले में केवल अपने चार नेता राघव चड्ढा, संजय सिंह, आशुतोष और दीपक वाजपेयी का ही माफीनामा भेजा जबकि कुमार विश्वास का यहां भी राज्यसभा की तरह पत्ता काट दिया.

कुमार विश्वास भी अतिआत्मविश्वास में कह गए कि वो जेटली से माफी नहीं मांगेंगे. नतीजतन कोर्ट में तलब हुए और उनसे जवाब मांगा गया. यहां कुमार विश्वास ने भी अचानक पार्टी के सर्वोच्च नेता अरविंद केजरीवाल की तरह यू टर्न ले लिया. उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि एक सामान्य पार्टी कार्यकर्ता की हैसियत से उन्होंने अपनी पार्टी के सर्वोच्च नेता अरविंद केजरीवाल की कही गई बातों को केवल दुहराने का काम किया है.

कुमार विश्वास कोर्ट को ये भरोसा दिलाना चाहते थे कि उन्होंने अपनी मर्जी से जेटली पर कोई आरोप नहीं लगाया. बल्कि उनके आरोपों के लिए वो ही केजरीवाल जिम्मेदार हैं जो कि मैदान छोड़ कर भाग निकले.

साफ है कि कुमार का विश्वास डगमगा गया. उन्हें लगा कि शायद जेटली से माफी न मांगने की उनकी हुंकार से पार्टी की तरफ से कोई पैगाम आ जाए. लेकिन केजरीवाल की चुप्पी ने कुमार के राजनीतिक दांव को खाली कर दिया. कुमार इंतजार करते रह गए और आखिरकार उन्हें कोर्ट के आदेश को तामील करने अदालत में पेश होना पड़ा.

अब कुमार विश्वास ये कह रहे हैं कि उनके पास जेटली के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं हैं क्योंकि जो भी दस्तावेज हैं वो केजरीवाल के पास हैं और केजरीवाल उन्हें मिलने का समय नहीं दे रहे हैं.

केजरीवाल ने बड़ी मुश्किल से मानहानि के तमाम मुकदमों से अपना पिंड छुड़ाया है. ऐसे में केजरीवाल किसी भी सूरत में अब किसी भी कोर्ट-सीन में आना नहीं चाहेंगे. खासतौर से तब तो और सवाल नहीं उठता है जब कि मामला कुमार विश्वास से जुड़ा हुआ हो.

अब कुमार विश्वास की ये दलील गले नहीं उतरती है कि उन्होंने अपने राजनीतिक दोस्त और पार्टी के सुप्रीम लीडर के बयानों को बिना किसी सबूत के शब्दश: आंख बंद कर अनुसरण करते हुए जेटली के खिलाफ संगीन आरोप लगाए. क्योंकि इससे कुमार विश्वास का ही पक्ष कमजोर पड़ेगा.

भले ही कुमार विश्वास इस मामले में अरविंद केजरीवाल को लपेटने की कोशिश करें. लेकिन अरविंद केजरीवाल माफी मांग कर आगे बढ़ चुके हैं और बहुत मुमकिन है कि वो ये भी कह दें कि उनके बयान को कुमार विश्वास ने ही तोड़-मरोड़ कर पेश किया था.

हाईकोर्ट में कुमार विश्वास ने बताया कि केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ उनका बयान केजरीवाल की सूचना के आधार पर था जो कि उन्होंने एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में दिया था. ऐसे में क्या कोर्ट केजरीवाल को बुलाने की व्यवस्था कर सकती है क्या? क्या कुमार विश्वास की वजह से मानहानि के मुकदमें में भी यू टर्न आ सकता है?

अब विश्वास ये कह रहे हैं कि वो कोई बयान देने या जेटली से माफी मांगने से पहले जानना चाहते हैं कि क्या केजरीवाल ने पहले झूठ बोला था?

हाईकोर्ट पूछ रहा है कि कुमार विश्वास ये बताएं कि वो मानहानि मामले में अरुण जेटली से जिरह करना चाहते हैं या नहीं . जबकि कुमार विश्वास कोर्ट से ये कह रहे हैं कि वो ये जानना चाहते हैं कि केजरीवाल ने सच बोला था या झूठ.

इस मामले में केजरीवाल की राजनीति और कुमार की कविताओं की तरह उतार-चढ़ाव दिख रहे हैं. यही वजह है कि जेटली के वकील ने भी कुमार विश्वास की इस दलील को खारिज कर दिया कि उन्होंने केजरीवाल के बयानों और उनके पास मौजूद दस्तावेजों की वजह से आरोप लगाए थे. जेटली के वकील माणिक डोगरा चाहते हैं कि कुमार विश्वास भी दूसरे आप नेताओं की तरह बिना शर्त माफी मांगे.

अब कुमार विश्वास कह रहे हैं कि उन्हें इस मामले में फैसला करने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए ताकि वो ठीक से सोच विचार कर सकें. कोर्ट ने कुमार विश्वास को 28 मई तक का समय दिया है. देखना होगा कि 28 मई को कुमार विश्वास भी माफी मांग कर इस मामले से आगे बढ़ना चाहेंगे या फिर किसी नई तैयारी के साथ वो केजरीवाल पर निर्णायक वार करना चाहेंगे.