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बंगाल में संघ प्रमुख मोहन भागवत के दौरे से क्या डर रही हैं ममता दीदी?

ममता को लग रहा है कि संघ और बीजेपी जितनी मजबूत होगी उनकी सियासी जमीन उतनी ही तेजी से खिसक जाएगी.

Amitesh

कृष्ण की नगरी वृंदावन में दो दिन पहले ही खत्म हुई आरएसएस की बैठक में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने हाजिरी लगाई थी. इस दौरान शाह ने संघ के सामने बीजेपी-संगठन की गतिविधियों को भी रखा था और बंगाल में पार्टी के विस्तार और मजबूती के लिए संघ से मदद की गुहार भी लगाई थी.

रविवार को संघ की वृंदावन बैठक भी खत्म हो गई. इस दौरान कैबिनेट में बड़ा फेरबदल भी हो गया. लगातार कैबिनेट फेरबदल की चर्चा होती रही और फिर प्रधानमंत्री के चीन दौरे की खबर लगातार सुर्खियों में बनी रही.


लेकिन, इन सब घटनाक्रम के तुरंत बाद एक खबर आई जिसने बंगाल की राजनीति को फिर से गरमा दिया है. इसे महज संयोग कहें या फिर संघ परिवार की रणनीति का हिस्सा, वजह जो भी हो, लेकिन, इन सभी बड़ी घटनाओं के बीत जाने के बाद बंगाल से एक ऐसी खबर आई है जिसकी सियासी गलियारों में खूब चर्चा हो रही है.

क्या है मामला

बंगाल की राजधानी कोलकाता में संघ प्रमुख मोहन भावगवत के एक कार्यक्रम के लिए जिस ऑडिटोरियम की बुकिंग की गई थी, उस बुकिंग को रद्द कर दिया गया है.

तीन अक्टूबर को होने वाले इस कार्यक्रम के लिए 'महाजाति सदन ऑडिटोरियम' को बुक किया गया था जो कि सरकार के अधीन है. लेकिन, इस दौरान उस ऑडिटोरियम के पुनर्निमार्ण और मरम्मत का हवाला देकर मोहन भागवत के कार्यक्रम की बुकिंग को ही रद्द कर दिया गया.

दरअसल, भगिनी निवेदिता ट्रस्ट की तरफ से भगिनी निवेदिता की 150 वीं जयंती के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाना था. इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत के अलावा बंगाल के गवर्नर केसरीनाथ त्रिपाठी को भी शिरकत करनी थी.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, कार्यक्रम का आयोजन करने वाली समिति के महासचिव रंतिदेव सेनगुप्ता ने कहा कि शुरुआत में हमने सारी प्रक्रिया पूरी कर ली थी और पुलिस को भी सूचित कर दिया था. बाद में अचानक रख-रखाव के नाम पर बुकिंग को रद्द कर दिया गया.

दरअसल इस कार्यक्रम में मोहन भागवत भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सिस्टर निवेदिता के योगदान पर भाषण देने वाले थे. 'भगिनी निवेदिता ट्रस्ट' समाज के गरीब बच्चों और महिलाओं की बेहतरी और उनके कल्याण के लिए काम करता है. बताया जा रहा है कि जिस मुद्दे पर मोहन भागवत का भाषण होने वाला था वह कोई संवेदनशील मुद्दा नहीं था.

लेकिन, यह प्रोग्राम विजयादशमी के तुरंत बाद हो रहा है लिहाजा ऐसा माना जा रहा है कि बंगाल की ममता सरकार ने सशंकित होकर इस तरह का कदम उठा दिया और संघ प्रमुख के कार्यक्रम को लेकर ऑडिटोरियम की बुकिंग ही रद्द कर दी थी.

क्यों डर रही हैं ममता

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उपर पहले से ही एक खास समुदाय के तुष्टीकरण के आरोप लगते रहे हैं. अब एक बार फिर से ममता बनर्जी उसी राह पर आगे बढ़ रही हैं. मोहन भागवत के कार्यक्रम के रद्द होने का जो भी कारण रहा हो, लेकिन, इससे एक बार फिर से ममता पर तुष्टीकरण की ही राजनीति करने का आरोप लगेगा. लेकिन, लगता है ममता बनर्जी बेफिक्र होकर अपने एजेंडे पर आगे बढ़ रही हैं.

इस साल जनवरी में भी संघ प्रमुख मोहन भागवत की रैली की इजाजत ममता सरकार ने नहीं दी थी. लेकिन, बाद में हाईकोर्ट के दखल के बाद रैली की मंजूरी मिल गई थी. उस वक्त भी मोहन भागवत के कोलकाता की रैली की खूब चर्चा हुई थी. इस पर सियासत जमकर हुई थी. आरोप ममता पर ही लगा था कि खास समुदाय को खुश करने के लिए उनकी तरफ से ऐसा किया जा रहा है.

तुष्टीकरण की कोशिश धीरे-धीरे बंगाल की राजनीति में ध्रुवीकरण को बढावा दे रही है. ममता को गलतफहमी है कि ध्रुवीकरण का फायदा उन्हें होगा, क्योंकि उनकी विरोधी बीजेपी तुष्टीकरण के विरोध में ध्रुवीकरण कर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगी है. इसका फायदा उसे दिख भी रहा है.

इस वक्त बंगाल में बीजेपी ही मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आ गई है. हाल ही में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में भी कांग्रेस और लेफ्ट दोनों का सफाया हो गया. ऐसे में बीजेपी टीएमसी के खिलाफ खुद को तेजी से बड़े विकल्प के तौर पर पेश कर रही है.

बंगाल की राजनीति में बीजेपी का उभार और संघ की गतिविधियों का बढ़ना बंगाल की मुख्यमंत्री को रास नहीं आ रहा है. ममता को लग रहा है कि संघ और बीजेपी जितनी मजबूत होगी उनकी सियासी जमीन उतनी ही तेजी से खिसक जाएगी.

लेकिन, लगता है ममता बनर्जी यहीं गलती कर रही हैं. जिस तरह से बंगाल में कई जगहों पर हिंसा की खबरें आ रही हैं और उसमें उनकी सरकार पर पक्षपात का आरोप लग रहा है, उससे बीजेपी की जमीन कमजोर होने के बजाए और मजबूत हो रही है.