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जिसके रथ पर बैठ सत्ता तक पहुंचे क्या उस बीजेपी का दामन छोड़ देंगे नायडू

चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि 'अगर वो (बीजेपी) नहीं चाहते, तो हम अपने रास्ते पर जाएंगे', इससे साफ है कि बीजेपी और टीडीपी के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है

FP Staff

मोदी सरकार के बजट से उसके सहयोगी दल के मुखिया मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू नाराज हैं. शुक्रवार को होने वाली चंद्रबाबू नायडू सरकार की कैबिनेट बैठक के बाद उम्मीद की जा रही है कि नायडू मीडिया के सामने स्थिति साफ कर सकते हैं. एक हफ्ते पहले उन्होंने मीडिया के सामने कहा था कि ‘अगर वो (बीजेपी) नहीं चाहते, तो हम अपने रास्ते पर जाएंगे’. जाहिर है कि बीजेपी और टीडीपी के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है. सवाल यह है कि क्या चंद्रबाबू नायडू बीजेपी को छोड़ने का जोखिम उठाना चाहेंगे?

सूत्र कहते है कि तनातनी के मायने कुछ और हैं और फिलहाल गठबंधन नहीं टूटेगा. बीजेपी को छोड़कर सत्ता का वनवास भोग रहे चंद्रबाबू नायडू 2014 में बीजेपी को साथ लेकर ही सत्ता में वापस आए थे. पिछले करीब 4 साल से वो सत्ता में हैं. इसलिए बीजेपी को छोड़ने का फैसला एक झटके में नहीं लिया जा सकता. चंद्रबाबू नायडू के धुर विरोधी वाईएसआर कांग्रेस अध्यक्ष जगन मोहन रेड्डी पदयात्रा कर रहे हैं और उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है. जगन मोहन रेड्डी पहले के मुकाबले ज्यादा परिपक्व नजर आ रहे हैं.


आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा चाहते हैं

कुछ दिनों पहले ही न्यूज 18 से बातचीत में जगन मोहन रेड्डी ने कहा था कि अगर केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने को तैयार हो जाए, तो वो बीजेपी के साथ जा सकते हैं. चंद्रबाबू नायडू शुरू से ही आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं. लेकिन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली साफ कर चुके हैं कि इस मांग को पूरा करना मुश्किल है क्योंकि इसके बाद बाकी राज्य भी इसी तरह का दबाव बनाना शुरू कर देंगे. नायडू विशेष राज्य का दर्जा इसलिए चाहते हैं क्योंकि इसके बाद आंध्र प्रदेश में योजनाओं का 90 फीसदी खर्च केंद्र सरकार को वहन करना पड़ेगा.

लेकिन चंद्रबाबू नायडू की विशेष राज्य के दर्जे की मांग ही नहीं, बल्कि उनकी कई बड़ी मांग केंद्र सरकार के पास अटकी पड़ी है. नायडू चाहते हैं कि नई राजधानी अमरावती बनाने के लिए केंद्र सरकार फंड रिलीज करे, विशाखापट्टनम में नया रेलवे जोन बनाया जाए, कडप्पा स्टील प्लांट और मेगा सिंचाई परियोजना पोलावरम के लिए पैसा दिया जाए. पोलावरम परियोजना के लिए केंद्र पैसा देने को तैयार है, लेकिन उसका कहना है कि आंध्र प्रदेश सरकार पहले बताए कि पोलावरण परियोजना के लिए अब तक रिलीज हुए पैसे का उपयोग किस तरह हुआ.

बजट में उम्मीद के मुताबिक नहीं मिला

दरअसल पोलावरण परियोजना में बड़ी धांधली के आरोप लगते रहे हैं और विपक्ष इसकी जांच की मांग कर रहा है. चंद्रबाबू नायडू यह भी चाहते हैं कि आंध्र प्रदेश का बंटवारा करने वाले आंध्र प्रदेश पुनर्गठन कानून में किए गए वादे पूरे किए जाएं और राज्य का 16 हजार करोड़ का राजस्व घाटा केंद्र सरकार वहन करे. जबकि केंद्र सरकार का मानना है कि राजस्व घाटा सिर्फ 7 हजार 500 करोड़ का है. उसे 10 सालों में पूरा करने का वादा किया गया था और किस्तों में उसे पूरा किया भी जा रहा है.

तकरार की एक बड़ी वजह बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व की वजह से भी है. आंध्र प्रदेश के बीजेपी नेता चाहते हैं कि चंद्रबाबू नायडू का साथ छोड़ दिया जाए और पार्टी आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अकेले मैदान में उतरे. अगर समय से पहले चुनाव नहीं हुए, तो आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ मई 2019 में होंगे. जाहिर है वक्त ज्यादा नहीं बचा है. लेकिन जनता के सामने दिखाने के लिए चंद्रबाबू नायडू के पास कुछ खास नहीं है.

सपनों की वर्ल्ड क्लास राजधानी अमरावती सिर्फ कागजों पर है. किसानों के लिए वरदान बताई जा रही पोलावरम मेगा परियोजना अधूरी पड़ी है. राज्य को विशेष राज्य का दर्जा भी नहीं मिल पा रहा है. तेलंगाना अलग होने से राजस्व का बड़ा स्त्रोत हैदराबाद शहर भी हाथ से जा चुका है. ऐसे में आम बजट से चंद्रबाबू नायडू को काफी उम्मीदें थीं. ऐसा नहीं है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट में आंध्र प्रदेश को कुछ नहीं दिया.

बीजेपी नहीं चाहती विकास का क्रेडिट नायडू को मिले

विशाखापट्टनम स्टील प्लांट के लिए 108 करोड़, पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी के लिए 32 करोड़, ट्राइबल और सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लिए 10-10 करोड़, एनआईटी के लिए 54 करोड़ और तिरुपति में आईआईटी बनाने के लिए 50 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. लेकिन टीडीपी के मुताबिक यह काफी नहीं हैं. केंद्र में मंत्री और टीडीपी नेता वाई सुजना चौधरी ने आम बजट के बाद कहा कि ‘पोलावरम परियोजना और नई राजधानी अमरावती के लिए धन आवंटित नहीं किया गया. विशाखापट्टनम मेट्रो रेल और विशाखापट्टनम में रेलवे जोन का भी कोई जिक्र नहीं है. राज्य में बड़े रेलवे प्रोजेक्ट के लिए भी पैसा नहीं दिया गया है. बजट में आंध्र प्रदेश के लोगों का ख्याल नहीं रखा गया है’.

टीडीपी में एक धड़ा ऐसा है, जिसका मानना है कि केंद्र में बैठी बीजेपी की सरकार नहीं चाहती कि विकास का क्रेडिट चंद्रबाबू नायडू को मिले. इसीलिए जानबूझकर पैसा देने में अड़ेंगे लगाए जा रहे हैं. टीडीपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ‘आम बजट में आंध्र प्रदेश की पूरी तरह उपेक्षा कर दी गई है, अब बीजेपी के साथ बने रहने की कोई वजह नहीं बची है. अंतिम फैसला चंद्रबाबू नायडू लेंगे’. चंद्रबाबू नायडू अपनी मांगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले मिल चुके हैं. बजट आने से पहले वो एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर उन्हें याद दिलाना चाहते थे. लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री ने मिलने का समय नहीं दिया. इसके बाद आम बजट में भी आंध्र प्रदेश के हाथ कुछ बड़ा नहीं लग सका. इस सब ने चंद्रबाबू नायडू की बेचैनी बढ़ा दी है.

सूत्र बताते हैं कि टीडीपी अब विकास न हो पाने का ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ने की रणनीति पर विचार कर रही है. जाहिर है इससे खटास और बढ़ने वाली है. लेकिन सूत्र यह भी कहते हैं कि नायडू बीजेपी से अलग होने का फैसला फिलहाल करने वाले नहीं हैं. वह किसी भी हालत में अपने धुर विरोधी जगन मोहन रेड्डी और बीजेपी को नजदीक नहीं आने देना चाहेंगे. गठबंधन रहेगा या टूटगा, यह चुनाव के 6-8 महीने पहले तय होगा.

(न्यूज18 के लिए संजय तिवारी की रिपोर्ट)