उड़ीसा में 2019 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. पहले माना जा रहा था कि बीजेडी को आसानी से जीत मिल जाएगी लेकिन इसी बीच जगन्नाथ मंदिर के चाभी के गायब होने की घटना ने लोगों के अंदर नवीन पटनायक सरकार के प्रति विश्वास घटा है. लोगों को यह लग रहा है कि सरकार मंदिर का प्रशासन ठीक ढंग से नहीं चला पा रही और अपनी असफलता को ढकने की कोशिश कर रही है.
अप्रैल में रत्न भंडार की चाभियां खोने की खबर आई जिसके बाद उड़ीसा हाईकोर्ट के आदेश के बाद 17 सदस्यों की एक टीम गठित की गई जो कि बिना अंदर जाकर देखे वापस लौट आई. मंदिर के मुख्य प्रशासक प्रदीप जेना ने मीडिया को बताया कि सर्च लाइट्स की मदद से वो बाहर से ही पूरी स्थिति का जायज़ा लेने में सक्षम थे.
चाभियां खोने के बावजूद सरकार ने नहीं दर्ज की है FIR
इस मुद्दे पर पूरे प्रदेश में विपक्षी पार्टियों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए गए. लोग इस बात से काफी अचंभित थे कि चाभियां गायब होने के दो महीने बीत जाने के बाद भी न तो सरकार ने कोई एफआईआर दर्ज की और न ही प्रशासनिक स्तर पर कोई जांच शुरू की.
लेकिन जब मामला तूल पकड़ने लगा तो सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए. देश में चाभी खोने की जांच के लिए ये पहला कमीशन गठित किया गया था. लोगों को संदेह था कि मंदिर के अधिकारियों और सेवादारों की मिलीभगत से मंदिर के कुछ गहनों की हेराफेरी की गई है.
कौन देगा इन सवालों का जवाब?
जब सरकार की फजीहत होने लगी तो सरकार ने मंदिर के प्रशासक जेना को हटाकर सीनियर आईएएस अधिकारी प्रदीप्त महापात्रा को मंदिर का प्रशासक बना दिया. महापात्रा को मंदिर का प्रशासक बनाने के अगले दिन ही पुरी के जिला कलेक्टर अरविंद अग्रवाल ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि मंदिर की चाभियां मिल गई हैं.
लेकिन इसके साथ दो और बातें कही गई- पहली, मंदिर की चाभियां नकली थी, जबकि मंदिर के नियमों के अनुसार नकली चाभियों का कोई प्रावधान नहीं है. दूसरी- चाभियां कलेक्टरेट के रिकॉर्ड रूम के लॉकर में मिलीं.
लेकिन ये घटना कई सवाल पैदा करती है. जैसे- डुप्लीकेट चाभियां कहां से आईं, चाभियां रिकॉर्ड रूम में कैसे आईं. क्या इसके पहले जिला प्रशासन ने पूरे मन से चाभियां नहीं खोजी थीं, और अब जब चाभियां मिल गई हैं तो सरकार द्वारा गठित किए गए कमीशन का क्या होगा.
जो खास बात है जिससे सरकार की मंशा पर शंका पैदा होती है वो ये है कि चाभियां मिलने के बावजूद सरकार ने रत्न भंडार को खुलवाकर उसे चेक करवाने की जरूरत नहीं समझी कि वो देख ले कि 1976 में रत्न भंडार में जितनी संपत्ति रिकॉर्ड की गई थी उतनी है कि नहीं.
विपक्ष को पता है कि ये लोगों की भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है इसलिए विपक्ष खासकर बीजेपी ने इसका हर स्तर पर विरोध करके राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की. इस स्थिति में अगर बीजेडी इसके जांच का आदेश दे देती है और दिखा देती है कि रत्न भंडार के अंदर सबकुछ वैसा ही है तो वो लोगों को अपने पक्ष में कर सकती है, लेकिन अगर जांच से पता चलता है कि रत्न भंडार से कुछ हेराफेरी हुई है तो सरकार को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
(न्यूज 18 के लिए संदीप साहू की रिपोर्ट)