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चौथे चरण में दांव पर उम्मीदवार और रणनीतिकार

12 जिलों की 53 सीटों पर चुनाव होना है. दांव पर सिर्फ उम्मीदवार ही नहीं हैं बल्कि रणनीतिकार भी हैं.

Kinshuk Praval

यूपी चुनाव के तीन चरण पूरे हो गए हैं. सात चरणों के इस चुनाव में चौथे चरण का मतदान 23 फरवरी को हो रहा है. 12 जिलों की 53 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा. चौथे चरण में सिर्फ दांव पर उम्मीदवार ही नहीं हैं बल्कि रणनीतिकार भी हैं. उमा भारती, केशव प्रसाद मौर्य, प्रमोद तिवारी, नरेश उत्तम, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे यूपी के बड़े नेताओं के सामने अपनी अपनी पार्टी के लिये जीत पक्की करने की चुनौती है.

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में इन जिलों में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. समाजवादी पार्टी ने 24 सीटें जीती थीं जबकि 15 सीटें जीतकर बीएसपी दूसरे नंबर पर रही.


चौथे चरण में 680 उम्मीदवार मैदान में हैं. इस बार 189 करोड़पति उम्मीदवार मैदान में ताल ठोंक रहे हैं तो वहीं दागी उम्मीदवारों की तादाद में कोई कमी नहीं है. उत्तर प्रदेश इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक बीएसपी के 45 उम्मीदवार, बीजेपी के 36 उम्मीदवार, एसपी के 26, कांग्रेस के 17, रालोद के 6 और 25 निर्दलीय उम्मीदवार करोड़पति हैं.

दागी उम्मीदवारों की लिस्ट में 116 नाम ऐसे हैं जिन्हें राजनीतिक दलों ने अपना चुनाव चिन्ह दिया है. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 116 लोगों ने हलफनामे में अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी दी है.

बीजेपी की तरफ से सबसे ज्यादा 19 उम्मीदवार दागी हैं जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं बीएसपी के 12, राष्ट्रीय लोकदल के 9, समाजवादी पार्टी के 13, कांग्रेस के 8 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. जबकि निर्दलीय दागी उम्मीदवारों की संख्या 24 है.

चौथे चरण में बाहुबली तो परिवार की पारंपरिक सीट को आगे बढ़ाने वाले कई नाम हैं. कुंडा से विधायक रघुराज प्रतापसिंह उर्फ राजा भैया फिर से मैदान में हैं. राजा भैया रिकॉर्ड मतों से निर्दलीय जीतने के लिये जाने जाते हैं. इस बार भी उनके जीतने की उम्मीद जताई जा रही है.

राजा भैया के फेसबुक पेज से साभार

जबकि रायबरेली से बाहुबली नेता अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह चुनाव लड़ रही हैं. अदिति सिंह रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं. अदिति सिंह लंदन से एमबीए करने के बाद अब राजनीति में किस्मत आजमा रही हैं. जबकि ऊंचाहार से बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कर्ष मौर्य को टिकट दिया है. बीएसपी से बगावत कर स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी का दामन थामा है. मेजा सीट से बाहुबली उदयभाव करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया मैदान में हैं. इलाहाबाद पश्चिम सीट से पूजा पाल को बीएसपी ने मैदान में उतारा है. पूजा पाल बीएसपी विधायक हैं और अतीक अहमद को हरा चुकी हैं.

केंद्रीय मंत्री उमा भारती के लिये बुंदेलखंड बड़ी चुनौती है. साल 2014 में 'मोदी लहर' में बीजेपी ने बुंदेलखंड में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन अब बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर है. उमा भारती ने महोबा की चरखारी सीट बीजेपी के लिये जीती थी. लेकिन सांसद बनने के बाद जब से ये सीट खाली हुई तो बीजेपी चरखारी पर जीत नहीं हासिल कर सकी. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में झांसी की 4 सीटों में बीजेपी को केवल 1 सीट मिली जबकि एसपी ने यहां भी दो सीटें जीतीं. ऐसे में उमा भारती पर बुंदेलखंड में बीजेपी को जिताने की जिम्मेदारी है.

प्रदर्शन का दबाव यूपी के बीजेपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य पर भी है. कौशांबी में चौथे चरण में वोट पड़ेंगे. कौशांबी को केशव प्रसाद मौर्य का जिला कहा जाता है. यहां की तीन सीटों में से केवल सिराथू की सीट पर बीजेपी का कब्जा है. कौशांबी की दो सीटों पर बीएसपी का कब्जा है. अब केशव प्रसाद मौर्य के ऊपर न सिर्फ कौशांबी बल्कि इलाहाबाद की 12 सीटों पर भी अच्छे प्रदर्शन की जिम्मेदारी है.

बीएसपी में मुस्लिम फेस कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर भी इस बार कांटे की लड़ाई में प्रदर्शन का दबाव है. बांदा में विधानसभा की 4 सीटों पर मुकाबला है. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां से दो सीटें जीती थीं. बीएसपी को केवल एक सीट ही मिल सकी थी. इस बार बीएसपी की कोशिश पूरी 4 सीटें जीतने की है.

समाजवादी पार्टी भले ही कांग्रेस के साथ गठबंधन करन के बाद खुद को मजबूत मान रही है लेकिन पारिवारिक कलह का दबाव साफ दिखाई दे रहा है. एसपी पर साल 2012 के चुनाव के नतीजों को दोहराने का भी दबाव है. समाजवादी पार्टी पर नए निजाम अखिलेश को सही साबित करने का भी दबाव है. ये लड़ाई सिर्फ एसपी बनाम बीजेपी-बीएसपी नहीं है बल्कि अखिलेश बनाम 'चाचा एंड ऑल' भी है. ऐसे में अखिलेश के करीबियों पर भी प्रदर्शन का दबाव बराबर ही है.

समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पर सबसे ज्यादा भार है. एक तरफ उन्हें अखिलेश के भरोसे पर खरा उतरना है तो दूसरी तरफ उन्हें शिवपाल यादव को भी जवाब देना है. नरेश उत्तम ने फतेहपुर से अपनी सियासी पारी की शुरुआत की है. इस वजह से फतेहपुर की 6 सीटें भी उनके लिये बड़ी चुनौती हैं. अखिलेश की नई टीम के रणनीतिकारों में से एक नरेश उत्तम के लिये इस बार का चुनाव कई मायनों में कई इम्तिहानों से भरा हुआ है.

पार्टी की भीतरघात और विरोधियों की चालों के बीच हर पार्टी अपनी जीत के लिये जोर लगा रही है. टिकट बंटवारे को लेकर हर पार्टी के भीतर नाराजगी है तो दल बदलुओं की आवभगत को लेकर पुराना कार्यकर्ता हतोत्साहित भी है. ऐसे में हर राजनीतिक पार्टी एक साथ दो मोर्चों पर जंग लड़ रही हैं.