कार्ति चिदंबरम की गिरफ्तारी की टाइमिंग और तरीका ऐसा था कि सीबीआई ने कांग्रेस के लिए इसे अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के खिलाफ राजनीतिक बदला और फंसाए जाने की साजिश दावा करना आसान बना दिया.
जरा टाइमिंग पर गौर कीजिए. संसद का बजट सत्र सोमवार से दोबारा शुरू हो रहा है, और विपक्ष ने हीरा कारोबारी नीरव मोदी के देश से भाग जाने के मुद्दे को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ धारदार हमले की तैयारी कर रखी है.
ऊपर पर से, राफेल फाइटर प्लेन डील है, जिसे लेकर कांग्रेस छह सवालों की लिस्ट के साथ इसकी कीमत और गोपनीयता से घिरे अनुबंध पर जवाब मांग रही है.
दोनों मामलों पर सरकार का जवाब अधूरा और अविश्वसनीय है. सरकार को अवधारणा की लड़ाई में तेजी से पिछड़ते हुए संसद में आने वाले तूफान का सामना करने के लिए एक फटाफट समाधान की जरुरत थी.
अब तरीका देखें. कार्ति मद्रास हाईकोर्ट की अनुमति लेकर कारोबार के सिलसिले में यूनाइटेड किंगडम गए थे. वह तय तारीख पर लौट आए. तर्क दिया जा सकता है कि वह वापस लौटने के बजाय नीरव से सबक सीख यूरोप में कहीं गायब हो सकते थे. कार्ति पहले ही सीबीआई की दो राउंड गहन पूछताछ का सामना कर चुके थे. उनको पिछले अगस्त से कोई नया समन जारी नहीं किया गया था.
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क्या वाकई उनके इरादे खतरनाक हैं, जैसा कि सीबीआई ने दावा किया है? फिर भी जांच अधिकारियों ने चेन्नई एयरपोर्ट पर उतरते ही झपट्टा मार कर उन्हें दबोच लिया और असहयोग व जांच को प्रभावित करने का आरोप लगाते हुए उन्हें अपने साथ ले गए.
कार्ति की गिरफ्तारी में उनके खिलाफ लंबित केस से इतर भी बहुत कुछ
बिंदुओं को जोड़ दीजिए और फिर जो तस्वीर उभरती है वह बताती है कि कार्ति की गिरफ्तारी में उनके खिलाफ लंबित केस से इतर भी बहुत कुछ है. संसद में सरकार के बचाव में मदद करने की जल्दबाजी में सीबीआई के तेजतर्रार अफसरों ने ऐसे समय में, जबकि मोदी सरकार खुद ही अर्थव्यवस्था और बढ़ते सामाजिक तनाव को लेकर बचाव की मुद्रा में है, अंततः कांग्रेस को उसकी औकात से ज्यादा असलहा मुहैया करा दिया.
सवाल, कार्ति की यूपीए सरकार में वित्त मंत्री अपने पिता पी. चिदंबरम के समय की गतिविधियों को लेकर हैं. बीजेपी सांसद सुब्रहमण्यम स्वामी पिता-पुत्र के खिलाफ हमले की अगुवाई कर रहे हैं, जिनमें एयरेसल-मैक्सिस और आईएनएक्स मीडिया डील को एफआईपीबी की मंजूरी दिलाने से लेकर विदेश में अवैध दौलत इकट्ठा करने तक के आरोप शामिल हैं. सिर्फ एक व्यापक जांच ही साबित कर सकती है कि ये आरोप सच हैं या झूठ.
यह कार्रवाई उस सोच का खंडन करती है कि यूपीए के दस साल के शासन से जुड़े घोटालों को लेकर जनता के गुस्से की लहर पर सवार होकर सत्ता में आने के बाद सरकार उन घोटालों की जांच में ढिलाई बरत रही है. कार्ति को गिरफ्तार करने में चार साल लग गए. उनके खिलाफ ना सिर्फ सबूत काफी कमजोर दिखते हैं, बल्कि आईएनएक्स मीडिया केस, जिसमें सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार किया है, बाप-बेटे के खिलाफ लगाए अन्य आरोपों से ज्यादा अलग नहीं है.
नीरव मोदी घोटाले की राशि के सामने कार्ति की राशि कुछ भी नहीं
वह 'घूस' जो कहा जा रहा है कि आईएनएक्स मीडिया के तत्कालीन मालिक पीटर और इंद्राणी मुखर्जी द्वारा कार्ति को अदा की गई, चार करोड़ रुपए से कम थी. और सीबीआई अभी तक सिर्फ 10 लाख रुपए के स्रोत का पता लगा सकी है. हजारों करोड़ रुपए का पीएनबी घोटाला करके मौजूदा सरकार की नाक के नीचे से फरार हो गए नीरव मोदी के मामले को देखें तो यह राशि मजाक सी लगती है.
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यह भी ना भूलें कि इंद्राणी की बेटी शीना बोरा की हत्या और आईएनएक्स मीडिया के दिनों में मनी-लॉन्ड्रिंग व फ्रॉड के सिलसिले में मुखर्जी दंपती जेल में हैं और ट्रायल का सामना कर रहे हैं. अदालत को पहले चिदंबरम पिता-पुत्र को दोषी बताने वाले उनके बयान की विश्वसनीयता परखनी होगी.
लेकिन सिर्फ कार्ति ही क्यों? चार साल में रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, जो कि 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी के चुनाव प्रचार का मुख्य आधार था. सरकार न ही गांधी मां-बेटे के खिलाफ रोजाना आरोप लगाने के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत जुटा सकी.
यहां तक नेशनल हेराल्ड केस में भी, अभियोजन ने अदालत द्वारा सोनिया-राहुल को जमानत देने का विरोध किया.
खराब होती छवि को बचाने की सरकार की अंतिम कोशिश
अगले आम चुनाव में बस एक साल बचे हैं, जिसनें पुराने पाप और गड़े मुर्दे उखाड़ने की बीजेपी की सारी कोशिशों के बाद भी परीक्षण पर मोदी सरकार होगी, ना कि 2014 की तरह कांग्रेस. यह सच है कि बीते चार सालों में मौजूदा सरकार के खिलाफ कोई भ्रष्टाचार स्कैंडल सामने नहीं आया है, लेकिन सरकार के लिए ललित मोदी, विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के गायब हो जाने को लेकर पूछे जा रहे सवालों का सामना करना मुश्किल होता जा रहा है.
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सरकार अगर करदाताओं के पैसे का घोटाला करने वालों के खिलाफ कुछ निर्णायक कार्रवाई करके नहीं दिखाती है, तो इसका भ्रष्टाचार विरोधी नारा ज्यादा देर तक चलने वाला नहीं है. कार्ति की गिरफ्तारी के सारे झोलझाल के बाद भी यह ज्यादा से ज्यादा जनता के बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयोद्धा की खंडित होती छवि को बचाने की एक रक्षात्मक सरकार की अंतिम कोशिश भर है.