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डी रूपा ट्रांसफर मामला: खादी के 'दाग' दिखाने पर क्यों मिलती है खाकी को सजा

हाल में ये ट्रेंड देखने को मिला है जब-जब पुलिसवाले नेताओं के खिलाफ उंगली उठाते हैं तो उन्हें ट्रांसफर नसीब होता है

Vivek Anand

सत्य पराजित नहीं हो सकता है लेकिन उसका तबादला किया जा सकता है. डी रूपा के ट्रांसफर मामले में बीबीसी के एक कार्टून की ये पंक्तियां सटीक तंज करती दिखती हैं. बेंगलुरु की डीआईजी (जेल) डी रूपा का ट्रांसफर कर दिया गया. डी रूपा ने बेंगलुरु की एक जेल में आय से अधिक संपत्ति मामले में बंद शशिकला को मिलने वाली विशेष सुविधा पर सवाल उठाए थे.

उन्होंने जेल के डीजी एच.एन सत्यनारायण राव पर रिश्वत लेकर शशिकला को विशेष सुविधा दिलवाने के सनसनीखेज आरोप लगाए थे. बेंगलुरु की पारापन्ना अग्रहारा जेल में बंद शशिकला के लिए स्पेशल किचेन बनाया गया था. 2 करोड़ रुपए की रिश्वत में शशिकला को जेल में भी घर जैसी सुविधाएं मिल रही थी. सरकार ने डी रूपा के इस खुलासे का इनाम ये दिया कि उन्हें जेल से हटाकर रोड सेफ्टी और ट्रैफिक विभाग में भेज दिया.


डी रूपा ने अपने ही सिस्टम में पल और बढ़ रहे भ्रष्टाचार की पोल खोली थी. लेकिन इस खुलासे का खामियाजा उन्हें ट्रांसफर के तौर पर भुगतना पड़ा. डी रूपा ने ट्रांसफर को स्वीकार कर लिया है. लेकिन उन्होंने भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाए हैं, उस पर अब तक कायम हैं. इस खुलासे के बाद उन्होंने एक दूसरी रिपोर्ट भी दी है.

रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि एआईएडीएमके की महासचिव शशिकला के लिए जेल के 5 सेल हर वक्त खुले रहते थे. वहां ताला नहीं लगाया जाता था. उनके लिए जेल के एक कॉरिडोर को घेर दिया गया था और वहां किसी को आने जाने की अनुमति नहीं थी ताकि वो आराम से चहलकदमी कर सकें. शशिकला के लिए अलग बर्तन में स्पेशल किचेन से खाना आता था. उनके लिए बेहतर और आरामदायक बिस्तर भी लगाए गए थे. जेल में रहते हुए भी शशिकला के ऐशो आराम का पूरा ख्याल रखा जाता था.

डी रूपा ने जेल की डीआईजी रहते हुए ये रिपोर्ट दी थी. उन्होंने अपने महकमे के सीनियर अधिकारी पर गंभीर आरोप लगाए थे. 12 जुलाई को उन्होंने अपनी पहली रिपोर्ट सौंपी थी. इसमें उन्होंने शक जताया था कि इन विशेष सुविधाओं के लिए जेल डीजी एच एन सत्यानारायण राव को 2 करोड़ की रिश्वत मिली थी.

कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने डी रूपा के साथ जेल डीजी एच.एन सत्यानारायण राव का भी ट्रांसफर कर दिया है. मामले की हाई लेवल जांच की सिफारिश की गई है. लेकिन बात इतने से ही खत्म नहीं हुई है. सवाल उठ रहे हैं कि इस मामले का खुलासा करने वाली डी रूपा का ट्रांसफर क्यों किया गया.

बीजेपी इस मुद्दे को उठाते हुए कनार्टक की कांग्रेस सरकार को घेरने में लगी है. बीजेपी की कर्नाटक यूनिट के नेताओं ने संसद भवन में डी रूपा के तबादले का विरोध किया है. सिद्धारमैया सरकार इसे प्रशासनिक फेरबदल का मामला बताकर अपना पल्ला छाड़ने की कोशिश कर रही है. इस मामले में शर्मसार हुई राज्य की कांग्रेस सरकार ने रूपा को कानूनी नोटिस भेजकर अपने इस आचरण को लेकर स्पष्टीकरण देने को कहा है.

यानी जिस पुलिस अधिकारी ने भ्रष्टाचार के एक संगीन मामले का खुलासा किया उससे ही सफाई मांगी जा रही है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? मतलब एक पुलिस अधिकारी को अपने ही विभाग में हो रही नियमों की अनदेखी पर आंखें मूंद लेनी चाहिए क्योंकि उसमें एक सियासी चेहरा शामिल है. उन्हें अपने सामने ही जेल मैन्यूल की खुलेआम धज्जियां उड़ता देखकर भी मुंह बंद रखना चाहिए था क्योंकि ऐसा न करने पर राज्य सरकार की बदनामी होती. सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार की ऐसी ही राजनीतिक लीपापोती उसे दिनोंदिन बढ़ा रही है. सवाल है कि आखिर हर बार खादी के दाग दिखाना खाकी को महंगा क्यों पड़ता है?

पिछले दिनों एक ऐसा ही वाकया यूपी में हुआ था. यूपी के बुलंदशहर के स्याना में सीओ के पद पर तैनात श्रेष्ठा सिंह ने एक बीजेपी नेता का चालान किया था. ट्रैफिक नियम तोड़ने पर बीजेपी नेता का चालान एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया थी. लेकिन एक स्थानीय नेता का रसूख देखिए कि उसका तो कुछ नहीं हुआ लेकिन इसके बाद सीओ श्रेष्ठा सिंह का तबादला बहराइच कर दिया गया.

जून महीने में यूपी के बुलंदशहर में स्याना में ट्रैफिक चेकिंग के दौरान सीओ श्रेष्ठा सिंह ने एक बीजेपी नेता को पकड़ा था. जिला पंचायत की सदस्य प्रवेश देवी के पति प्रमोद लोधी को पुलिस ने बिना हेलमेट और बिना कागजात के बाइक चलाते पकड़ा और चालान किया तो वह सीओ श्रेष्ठा सिंह से ही भिड़ गए. प्रमोद लोधी पुलिस अधिकारी के साथ बदतमीजी के साथ पेश आए. जिसके बाद उनके खिलाफ सरकारी कार्य में बाधा डालने का मामला बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

जब प्रमोद को कोर्ट में पेश करने के लिए ले जाया गया तो वहां बड़ी संख्या में बीजेपी नेता के समर्थक पहुंच गए और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनसे चालान के नाम पर दो हजार रुपए मांगे. सीओ श्रेष्ठा सिंह और नेताओं-कार्यकर्ताओं की फौज के बीच तीखी बहस हुई.

सीओ श्रेष्ठा सिंह ने वहां मौजूद नेताओं को कहा कि आप लोग ऊपर चले जाइए और सीएम साहब से लिखवाकर ले आइए कि पुलिस को चेकिंग का कोई अधिकार नहीं है. वो गाड़ियों की चेकिंग न करे. हम अपनी गाड़ियों की जांच नहीं करवाएंगे. उन्होंने कहा था कि अगर कोई नियमों का उल्लंघन करेगा, सरकारी कामकाज में बाधा डालेगा और बदसलूकी करेगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट में पेशी के दौरान भी बीजेपी नेता और श्रेष्ठा सिंह में काफी बहस हुई थी.

इसके बाद बीजेपी के नेता का तो कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन श्रेष्ठा सिंह का ट्रांसफर हो गया. एक नेता जिसकी पत्नी सिर्फ जिला पंचायत की सदस्य हैं उसका रसूख देखिए कि उसने अपने ऊपर कानून का डंडा चलाने वाली पुलिस अधिकारी का ट्रांसफर करवा दिया.

श्रेष्ठा सिंह और बीजेपी नेता के बीच बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. मीडिया में श्रेष्ठा सिंह को लेडी सिंघम बताया गया लेकिन नेताओं के सामने सख्त पुलिस अधिकारी सरकार के चाबुक से बच नहीं पाई. खादी के दाग दिखाने के एवज में खाकी को तबादला मिला.

इस ट्रांसफर को भी पुलिस अधिकारियों के रेगुलर ट्रांसफर पोस्टिंग से जोड़ दिया गया. श्रेष्ठा सिंह के साथ यूपी के 244 डिप्टी एसपी (सीओ) के तबादले हुए.

इसी साल मई में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर में एक बीजेपी विधायक की आईपीएस अधिकारी चारू निगम के साथ बहस हुई थी. गोरखपुर से बीजेपी विधायक डॉक्टर राधा मोहन अग्रवाल और आईपीएस अधिकारी चारु निगम की सरेआम बहस हुई. इस दौरान विधायक ने चारु निगम को फटकार लगाई तो चारु निगम के आंखों से आंसू निकल आए थे.

राधा मोहन दास अग्रवाल के मुताबिक आईपीएस ने कच्ची शराब के विरोध में प्रदर्शन करने वाली महिलाओं पर लाठीचार्ज कराया था. इस घटना के बाद विधायक की जमकर फजीहत हुई थी. ये वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. जिसके बाद चारु के समर्थन में लोगों ने कमेंट करने शुरू किए थे.

2013 में यूपी की तत्कालीन अखिलेश सरकार ने एक महिला आईएएस अधिकारी को कानूनी कार्रवाई करने पर उन्हें सस्पेंड तक कर दिया था. पंजाब कैडर की आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल उस वक्त चर्चा में आई थीं, जब नोएडा की एक मस्जिद में बिना अनुमति के बनाई जा रही दीवार को गिरवा दिया था. तब यूपी की अखिलेश सरकार ने उन्हें तुरंत निलंबित कर दिया. जिसकी देशभर में कड़ी आलोचना हुई थी.

उस वक्त के पीएम मनमोहन सिंह ने मालले पर संज्ञान लिया और आईएएस अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी. इसके बाद सीएम अखिलेश यादव ने दुर्गा शक्ति नागपाल का निलंबन वापस ले लिया था. राजनीति में फैले भ्रष्टाचार को समेटना आसान नहीं है. डी रूपा या श्रेष्ठा सिंह जैसी अधिकारी ऐसी कोई कोशिश करती भी हैं तो नतीजे में ट्रांसफर मिलता है.