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सोनिया का दांव कारगर, कर्नाटक के बहाने एकजुट हुआ विपक्ष

राहुल गांधी ने इशारा कर दिया है कि कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश करेगी

Syed Mojiz Imam

कर्नाटक के नाटक का अंत हो गया है. कांग्रेस को हार के बाद जीत नसीब हुई है. कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार बनने की राह साफ हो गई है. बीजेपी के तमाम दावों के बाद भी येदियुरप्पा विश्वास मत पेश नहीं कर पाए. कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी काफी खुश नजर आए. राहुल गांधी ने पीएम पर हमला बोला है. इस बीच राहुल गांधी ने बड़ी राजनीतिक बात कही है. उन्होंने ये साफ कर दिया कि विपक्ष मिलकर बीजेपी को हराएगा. राहुल गांधी ने इशारा कर दिया है कि कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश करेगी.

राहुल गांधी ने कहा कि कर्नाटक में भी कांग्रेस लोकतंत्र की रक्षा करेगी और हर राज्य में विपक्ष के साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई लड़ेगी. कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी भी समझ गए है कि बिना विपक्ष को एकसाथ लिए अब बीजेपी को हराना मुश्किल होगा. सोनिया गांधी ने जो दांव 15 मई को चला था वो कारगर हो गया है क्योंकि कर्नाटक के मामले में कांग्रेस ने गोवा-मणिपुर जैसी देरी नहीं की.


कांग्रेस के लीगल एक्सपर्ट्स ने भी बीजेपी को मात देने का जो तरीका अपनाया वो फिट बैठ गया. सुप्रीम कोर्ट से टाइम नहीं मिलना बीजेपी के लिए हार की वजह साबित हुआ है. हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पूरी पार्टी कर्नाटक को लेकर क्रेडिट दे रही है लेकिन ये साफ है कि गठबंधन के मामले में सोनिया गांधी की नजर भी पैनी है. सोनिया गांधी ने राहुल से बात करने के बाद जिस तरह कर्नाटक की जीत को हार में बदला है. इससे कांग्रेस के खेमे में भी खुशी है. कांग्रेस के कार्यकर्ता को भी लग रहा है कि बीजेपी की रणनीति पर कांग्रेस का दांव भारी पड़ा है.

राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद पहली सरकार

कांग्रेस के नेता खुश है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद कर्नाटक में मिल-जुली ही सही सरकार बन रही है. गुजरात चुनाव के नतीजे आने के पहले राहुल गांधी की ताजपोशी हुई थी. राहुल गांधी के अध्यक्ष बनते ही गुजरात में कांग्रेस की हार हो गई. लेकिन कांटे की लड़ाई को पार्टी ने नैतिक जीत मान लिया था. इसके बाद त्रिपुरा मेघालय में कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई. कर्नाटक में कांग्रेस को जीत नहीं मिली है. बल्कि राजनीतिक परिस्थिति ऐसी बन गई कि कांग्रेस के हाथ में सत्ता की चाभी चली गई है. हालांकि कांग्रेस को कई नेता ये राय दे रहे थे कि चुनाव पूर्व गठबंधन करना चाहिए. कांग्रेस को लगा कि कर्नाटक की नैय्या पार हो जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है. कांग्रेस को अब विपक्ष को साथ लेकर चलने के फायदे नजर आ रहें हैं.

गैर-बीजेपीवाद के सहारे कांग्रेस

कांग्रेस 2019 से पहले गैर-बीजेपी के नाम पर सभी क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर चलने के लिए तैयार हो रही है. ये कुछ 2004 के तर्ज पर हो रहा है. जब सोनिया गांधी ने आगे बढ़कर एक बड़ा गठबंधन बीजेपी एनडीए के सामने खड़ा किया था. कर्नाटक से कांग्रेस का रीजनल पार्टियों को समर्थन देने की शुरुआत हुई है. हालांकि कांग्रेस चुनाव में लगातार बीजेपी से मात खा रही है. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के तेवर तीखे नजर आ रहें हैं. लेकिन चुनाव में कांग्रेस को लगातार हार का मुंह देखना पड़ रहा है. पंजाब और पुडुचेरी में ही कांग्रेस की सरकार बची है.

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कर्नाटक में मिली-जुली सरकार बनेगी. लेकिन ये सिर्फ कांग्रेस की सरकार नहीं होगी. ऐसे में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को नया राजनीतिक एजेंडा देश के सामने रखना पड़ेगा. सिर्फ नरेंद्र मोदी के खिलाफ चलने से कांग्रेस को फायदा नहीं हो रहा है.

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने ये जरूर साफ कर दिया कि बीजेपी को रोकने के लिए पार्टी फिलहाल किसी भी दल को समर्थन कर सकती है. कांग्रेस के इस कदम से कई आयाम भी है. मसलन आंध्र प्रदेश में कांग्रेस क्या टीडीपी के साथ जाएगी. जहां जगनमोहन रेड्डी लगातार मजबूत हो रहें हैं. या ओडीशा में नवीन पटनायक का समर्थन करेगी जहां बीजेपी कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा मजबूत है. तेलंगाना में भी यही सवाल उठता है.

इस साल मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव है. कांग्रेस के सामने बीजेपी है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सामने बीजेपी का 15 साल का राज है. कांग्रेस से टूटकर अजित जोगी अलग पार्टी बना चुके है. रमन सिंह को हराने के लिए कांग्रेस को अब जोगी से हाथ मिलाना पड़ सकता है. वहीं मध्य प्रदेश में मायावती को भी साथ रखना कांग्रेस के लिए जरूरी रहेगा.

क्षेत्रीय पार्टियों का रहेगा दबाव

2019 से पहले कांग्रेस के ऊपर क्षेत्रीय पार्टियों का दबाव रहेगा क्योंकि क्षेत्रीय दल अपने हिसाब से गठबंधन बना रहें हैं. जिस तरह से यूपी में पहले एसपी-बीएसपी ने और फिर आरएलडी ने गठजोड़ कर लिया है. उससे साफ है कि कांग्रेस को कोई पूछने के लिए तैयार नहीं है. कांग्रेस को इस कठिन प्रयोग में अपना रास्ता भी खुद तय करना है क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को ज्यादा मौका देगीं, इसकी संभावना कम है.

क्षेत्रीय पार्टियां ये कभी नहीं चाहेगी के कांग्रेस मजबूत होकर निकले क्योंकि कमजोर कांग्रेस सत्ता के खेल में मनमानी नहीं कर पाएगी. बल्कि छोटे दलों की ज्यादा चलेगी. जैसे ममता बनर्जी और के चंद्रशेखर राव ये कोशिश कर रहें है कि एक नया मोर्चा खड़ा किया जाए. जिसको लेकर अभी बहुत सारे लोग सहमत नहीं है. कांग्रेस ये कह रही है कि बड़ा दल होने की वजह से उसे गठबंधन की अगुवाई करने का मौका मिलेगा. लेकिन कर्नाटक के खेल से संदेश ये भी है कि कांग्रेस ही अगुवा नहीं है. छोटे दल के नेता भी अगुवा हो सकते हैं.

देवगौड़ा, शरद पवार और शरद यादव

एचडी देवगौड़ा ऐसे पूर्व प्रधानमंत्री में शुमार है जिनकी सरकार खुद कांग्रेस ने गिराई थी. हालांकि अब वे कांग्रेस के आंख के तारे बने हुए हैं. कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने देवगौड़ा से बातचीत की है. यानी कांग्रेस को लग रहा है कि 2019 मे देवगौड़ा विपक्षी एकता के सूत्रधार बन सकते है. जैसे हरिकिशन सिंह सुरजीत और वीपी सिंह ने 2004 में कांग्रेस की मदद की थी. गैर बीजेपी दलों में ज्यादातर क्षेत्रीय नेता देवगौड़ा की सरकार में हिस्सा थे. ऐसे में वे दक्षिण की पार्टियों को राहुल गांधी की अगुवाई में खड़ा कर सकते हैं. दूसरे नेता शरद यादव है जो इस वक्त बीजेपी से खासे नाराज हैं. वो भी काग्रेस के लिए मददगार साबित हो सकते है.

लेकिन जहां तक शरद पवार का सवाल है. महाराष्ट्र की गद्दी पवार के लिए महत्वपूर्ण है वो बिना कांग्रेस के संभव नहीं है. इसलिए पवार कांग्रेस के साथ तो है. लेकिन मौका पड़ने पर खुद प्रधानमंत्री बनने से नहीं चूकेंगे. वहीं जिस तरह से ममता बनर्जी से लेकर चंद्रबाबू नायडू तक देवगौड़ा के संपर्क में है. विपक्षी एकता के नाम पर देवगौड़ा का नाम भी उछाला जा सकता है. हालांकि कुमारास्वामी के गद्दी की कीमत पर देवगौड़ा ऐसा जोखिम मोल नहीं लेना चाहेंगे.

गठबंधन के खिलाफ दलील

हालांकि कांग्रेस के कई नेता इस तरह गठबंधन के विरोध में दलील भी दे रहें है. जैसे यूपी का नाम ले रहें है कि मुलायम सिंह को 1990 में समर्थन देने के बाद पार्टी यूपी में वापसी नहीं कर पाई. इस तरह गुजरात में चिमन भाई पटेल को कांग्रेस ने समर्थन दिया. जिसके बाद से वो गुजरात की सत्ता से महरूम है. बिहार में आरजेडी के पीछे पार्टी चल रही है. हालांकि कोई भी नेता इसके खिलाफ खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है. राहुल गांधी का पाठ सबको याद है कि कांग्रेस अभी बड़ी लड़ाई लड़ रही है. ऐसे में छोटी बातों को तूल नहीं देना चाहिए.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)