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कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018: इन मुद्दों और चेहरों से तय होगा जीत का फॉर्मूला

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान हो गया है, राज्य में 12 मई को वोटिंग होगी और 15 मई को नतीजे आएंगे

Abhishek Tiwari

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान हो चुका है. राज्य के 224 विधानसभा सीटों पर 12 मई को वोटिंग होगी और 15 मई को नतीजे सामने आएंगे. यह चुनाव सिर्फ बेंगलुरु के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं रहने वाला है बल्कि इसके नतीजे दिल्ली की राजनीति पर भी दूरगामी परिणाम डालेंगे.

कर्नाटक दक्षिण का एक बड़ा राज्य है. यहां के नतीजे इसलिए मायने रखते हैं क्योंकि इसके बाद कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और अगले ही साल इस समय लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार जोरों पर होगा. ऐसे में इस चुनाव के नतीजे लोगों पर प्रभाव डालने वाले रहेंगे.


एक तरफ कांग्रेस जहां राज्य में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, तो दूसरी तरफ जीत की रथ पर सवार बीजेपी यहां हार गई तो मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का बढ़ा मनोबल बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर देगा.

अमित शाह लगातार कर्नाटक के दौरे कर रहे हैं. उन्होंने सोमवार को ही कहा था कि राज्य में बीजेपी की सुनामी है. इस बात में कितना दम है यह तो 15 मई को पता चलेगा.

बीजेपी ने लगभग एक साल पहले ही इस चुनाव की तैयारी शुरू करते हुए बीएस येदियुरप्पा को कर्नाटक बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त किया था. कुछ ही दिन बाद इस बात का ऐलान कर दिया गया कि येदुरप्पा के नेतृत्व में ही बीजेपी चुनावी मैदान में उतरेगी.

लिंगायतों का मुद्दा चुनाव में छाया रहेगा

राज्य में वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय राजनीतिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं. ऐसा माना जाता है कि लिंगायत बीजेपी के मतदाता है. लिंगायतों की कई सालों से अपने लिए अलग धर्म की मांग रही थी. जिसे मानते हुए सिद्धारमैया सरकार ने उनको अलग धर्म की मान्यता देने वाले प्रस्ताव को केंद्र के पास भेज दिया है. इस कदम से उन्होंने बीजेपी के एक बड़े वोटबैंक में काफी तरीके से सेंधमारी कर दी है. राज्य में 17 प्रतिशत लिंगायत मतदाता है.

राज्य में 15वें फाइनेंस कमीशन को भी मुद्दा बनाया जा रहा है. सिर्फ कर्नाटक में ही नहीं इसे पूरे दक्षिण भारत में एक महत्वपूर्ण मुद्दे के तौर पर उछाला जा रहा है. 15वें फाइनेंस कमिशन को लेकर कर्नाटक में मुद्दा यह बनाया गया है कि इसके माध्यम से केंद्र की बीजेपी सरकार की कोशिश है कि दक्षिण के राजकोषीय संतुलन को बिगाड़ दिया जाए.

सत्ताधारी कांग्रेस इसको मुद्दा बना रही है. कांग्रेस का कहना है कि केंद्र की बीजेपी सरकार पैसे का स्थानांतरण दक्षिण से उत्तर की तरफ कर रही है. चुनाव प्रचार के दौरान इस मुद्दे को कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ जरूर इस्तेमाल करेगी.

राज्य में कांग्रेस के खेवनहार हैं सिद्दारमैया

राज्य में कांग्रेस का चेहरा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ही है. उसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष लगातार राज्य के दौरे कर रहे हैं और पार्टी के लिए जीत सुनिश्चित करने की कोशिश में लगे हैं. सिद्धारमैया बीजेपी के सबसे बड़ी चुनौती हैं. वो संकेतों की राजनीति करने के साथ-साथ बीजेपी की हर रणनीति का तोड़ अपने तरीके से निकाल रहे हैं.

कर्नाटक में येदुरप्पा के सरकार के समय राज्य के लिए अलग झंडे की मांग उठी थी. जिसे उस समय की यूपीए सरकार ने खारिज कर दिया था. यहीं मांग पिछले साल कर्नाटक में फिर सुनाई दी. अभी हाल ही में सिद्धारमैया ने संकेतों की राजनीति करने में बीजेपी को पछाड़ कर राज्य के लिए नए झंडे की मंजूरी दे दी. राज्य का आधिकारिक झंडा बनाने के लिए उन्होंने प्रस्ताव को केंद्र के पास भेज दिया है. अब गेंद केंद्र के पाले में हैं.

राज्य के लिए अलग झंडा और लिंगायतों को अलग धर्म की मान्यता के प्रस्ताव का असर मतदान पर कितना पड़ेगा यह तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा.

बीजेपी के लिए येदुरप्पा ही सबकुछ

भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले येदियुरप्पा राज्य में बीजेपी के लिए सबकुछ हैं. तमाम आरोप लगने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें अपना चेहरा बनाया है. पार्टी विद डिफरेंस कहीं जाने वाली बीजेपी का यह निर्णय बताता है कि येदुरप्पा को फिर से आगे करना पार्टी की मजबूरी है. बीजेपी जानती है कि येदुरप्पा को नजरअंदाज कर राज्य में जीत का स्वाद नहीं चखा जा सकता.

येदुरप्पा कर्नाटक में किसानों के मुद्दे को उठाने के साथ-साथ सिद्धारमैया सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगा रहे हैं. येदुरप्पा का सीधा हमला हमेशा मुख्यमंत्री पर होता है. बीजेपी उनपर सांप्रदायिकता का आरोप भी लगा रही है. बीजेपी का कहना है कि वोट के लिए सिद्धारमैया ने लिंगायतों को अलग धर्म का मान्यता देने का काम किया है. बीजेपी इसे चुनावी मुद्दा बना रही है.

कर्नाटक में जेडीएस का भी है असर

इन दो पार्टियों के अलावा एक मुख्य पार्टी जनता दल सेकुलर (जेडीएस) भी है. पूर्व प्रधानमंत्री की एचडी देवगौड़ा की इस पार्टी पिछले चुनावों में बीजेपी से भी ज्यादा वोट मिले थे. इस बार जेडीएस बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में हैं. जेडीएस का प्रभाव राज्य के लगभग 50 सीटों पर है. अब देखने वाली बात यह होगी कि इस बार जेडीएस को कितनी सीटें मिलती हैं और राज्य में नतीजों के बाद क्या गणित बनता है.

पिछले विधानसभा चुनाव का गणित

2013 में हुए विधासभा चुनावों में कांग्रेस को 36.53 वोट प्रतिशत के साथ 122 सीटें, बीजेपी को 19.89 वोट प्रतिशत के साथ 44 और जेडीएस को 20.19 प्रतिशत वोट के साथ 40 सीटें प्राप्त हुई थी. इसके एक साल बाद हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने मोदी लहर में राज्य की 28 सीटों में से 17 पर जीत दर्ज की थी, कांग्रेस के खाते में 9 सीट और जेडीएस को 2 सीटें मिली थी.

राज्य की स्थिति

राज्य की कुल जनसंख्या 6.4 करोड़ हैं. जिसमें 4.9 करोड़ वोटर हैं. युवा मतदाताओं की तादाद 15.4 लाख है.

राज्य में कुल 224 विधानसभा सीटें है.

कर्नाटक में 84 फीसदी हिंदू, 12.92 फीसदी मुसलमान, 1.87 फीसदी ईसाई और 0.72 प्रतिशत जैन हैं.