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कर्नाटक चुनाव 2018: बीजेपी की ही राह चल रहे सिद्धारमैया को हराना टेढ़ी खीर

सिद्धारमैया का आक्रामक रूप से चुनावी मोर्चा खोलना दो मुख्यमंत्रियों- केजरीवाल और नीतीश कुमार के बीजेपी को कड़ी चुनौती देने की याद दिलाता है

Amitabh Tiwari

कर्नाटक में चुनाव का मौसम गर्मा गया है. रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेंगलुरु में एक बड़ी रैली की. सारा दिन ट्विटर पर #KarnatakaTrustsModi #NammaKarnatakaFirst ट्रेंड कर रहे थे. अपने चिरपरिचित अंदाज में उन्होंने कर्नाटक सरकार को 10% सरकार की संज्ञा दी और कृषि के संदर्भ में TOP शब्द का इस्तेमाल किया.

गुजरात में बीजेपी ने जितनी मुश्किल के बाद जीत हासिल की है उसके बाद कर्नाटक के चुनाव बेहद अहम साबित हो रहे हैं. कांग्रेस मोदी के गृह राज्य में बीजेपी को जबरदस्त चुनौती देकर काफी उत्साहित है. साथ ही पार्टी इंडिया टुडे मूड ऑफ द नेशन पोल में राहुल गांधी की बढ़ती रेटिंग से भी ऊर्जा में आ गई है.


पंजाब में जीत के बाद कांग्रेस के लिए यह दूसरा बड़ा राज्य है जहां से 10 से ज्यादा सांसद आते हैं और जहां कांग्रेस सत्ता में है. कर्नाटक में हार साल के अंत में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होने वाले चुनावों के लिहाज से बड़ा झटका होगा. इन राज्यों में चुनाव के तुरंत बाद 2019 में लोकसभा के चुनाव होने है. इस तरह से इन चुनावों को सेमीफाइल्स माना जा सकता है.

हालांकि, 1985 में रामकृष्ण हेगड़े के बाद से कोई भी पार्टी कर्नाटक में सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है और राज्य के लोगों में मौजूदा सरकारों को हटाने का मजबूत ट्रेंड है, लेकिन सिद्धारमैया के आक्रामक पटलवार बीजेपी तक के रणनीतिकारों को चौंका रहे हैं. वह उन्हीं तरकीबों का इस्तेमाल कर रहे हैं जैसा कि बीजेपी दूसरे राज्यों में करती है. साथ ही वह अमित शाह से सीखे सबकों को उनपर ही चला रहे हैं.

यहां हम उन छह वजहों का जिक्र कर रहे हैं जिनसे बीजेपी के लिए सिद्धारमैया को पटखनी दे पाना काफी मुश्किल लग सकता है.

- आश्चर्यजनक स्वागत या बेदर्द झटका?

पीएम मोदी का बेंगलुरु में आश्चर्यजनक स्वागत हुआ. सीएम सिद्धारमैया ने मोदी के स्वागत में ट्वीट किया और उसमें अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया. आमतौर पर बीजेपी नेता और पार्टी के हैंडल से इस तरह के ट्वीट जारी होते हैं, लेकिन सीएम के ट्वीट ने दिनभर की पूरी सुर्खियां अपने नाम कर लीं. मोदी ने इस तरह के स्वागत की उम्मीद नहीं की होगी. साथ ही उन्होंने उनकी स्पीच का एजेंडा भी तय करने की कोशिश की और मोदी से महादायी विवाद पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की.

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा जबकि सिद्धारमैया ने इस तरह की चीज उठाई है. जब पिछले महीने अमित शाह मैसूर में रैली के लिए थे, उस वक्त कांग्रेस के समर्थन वाले किसानों के समूह ने गोवा के साथ जल विवाद को लेकर बंद बुलाया था. इसके चलते शाह की रैली में कम उपस्थिति रही थी. शाह ने इसके लिए सरकार के अपनी मशीनरी का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था.

- लिंगायतों के लिए अलग धर्म की मांग का समर्थन

हालांकि, बीजेपी हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश कर रही है ताकि कांग्रेस का एएचआईएनडीए प्लान फेल हो जाए, लेकिन सिद्धारमैया बीजेपी के कोर लिंगायत वोटों को बांटने की चाल चल रहे हैं. वह लिंगायतों के एक तबके की अलग धर्म के तौर पर मान्यता देने की मांग का समर्थन कर रहे हैं. राज्य की आबादी में लिंगायतों की हिस्सेदारी 15-17 पर्सेंट है. साथ ही ये वोकालिगा के साथ राज्य में दबदबा रखते हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 63 पर्सेंट लिंगायत वोट मिले थे. बीजेपी के सीएम कैंडिडेट येदियुरप्पा लिंगायत हैं. इस मामले को राज्य अल्पसंख्यक आयोग को भेज दिया गया है. कांग्रेस ने पिछले साल उपचुनाव में 2 लिंगायत बहुतायत वाली सीटों को अपने पास कायम रखने में सफलता हासिल की थी.

- हिंदुत्व बनाम कन्नड़ गौरव

बीजेपी की योजना राज्य में हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण करने की है और पार्टी हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है. लेकिन सिद्धारमैया ने इसे बेअसर करने के लिए कन्नड़ गौरव का पत्ता चला है. एक कांग्रेसी नेता ने कहा, ‘वह सहनशीलता, साझा विरासत और सामाजिक सद्भाव के कन्नड़ गौरव के तत्वों को पेश कर रहे हैं जिनके लिए राज्य मशहूर है.’ उन्होंने राज्य के लिए अलग झंडा, भाषा को फिर से जिंदा करने और इसे आगे बढ़ाने, हिंदी के साइनबोर्ड्स, महादायी वॉटर शेयरिंग जैसे मसलों को उठाया है ताकि कन्नड़ सेंटीमेंट को जगाया जा सके. यह बीजेपी के गुजरात में खेले गए गुजराती अस्मिता जैसा ही है.

उन्होंने स्कूलों में (आईसीएसई और सीबीएसई समेत) कन्नड़ को एक अनिवार्य विषय बनाने, कन्नड़ मीडियम स्टूडेंट्स को राज्य के सविल सर्विसेज में 5 पर्सेंट रिजर्वेशन देने और सरकारी हॉस्पिटल कार्ड्स को कन्नड़ में प्रिंट करने जैसे कामों से इसकी शुरुआत की है. कन्नड़ एक ऐसा साझा धागा है जो कि एलआईबीआरए, वोकालीगा और एएचआईएनडीए सभी को एकसाथ जोड़ता है. उन्होंने जम्मू और कश्मीर की तर्ज पर कर्नाटक के एक अलग झंडे के इस्तेमाल की वकालत की है और इसकी वैधता की जांच करने के लिए एक कमेटी का गठन किया है. ताज होटल अपने परिसरों में इसे पहले से फहरा रहा है.

महादायी नदी उत्तरी कर्नाटक की जीवनरेखा है और इसके पानी के बंटवारे को लेकर गोवा और कर्नाटक के बीच विवाद चल रहा है. इस मसले ने बीजेपी को बैकफुट पर डाल दिया है. उन्होंने मेट्रो में लगे हिंदी साइनबोर्ड्स को लेकर आपत्ति जताई और आखिरकार इन्हें हटा लिया गया. इन सबसे बीजेपी के रणनीतिकार चक्कर में पड़ गए हैं. बीजेपी और आरएसएस को लगता है कि हिंदी एकमात्र ऐसी भाषा है जो कि पूरे देश को एक धागे में पिरोती है.

- जातियों की जनगणना से बीजेपी की बढ़ी मुश्किलें

सिद्धारमैया सरकार ने बड़े पैमाने पर जातियों की जनगणना कराई है. इसके नतीजे सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. यह जनगणना केंद्र सरकार के कराए जाने वाले कास्ट सेंसस जैसी ही है. केंद्र सरकार के जातिगत जनगणना के आंकड़े भी सार्वजनिक नहीं हुए हैं, जबकि विपक्ष ने इसकी मांग पूरे जोरशोर से की.

सिद्धारमैया ने जानबूझकर चुनिंदा जानकारियां लीक कीं जिससे पता चल रहा है कि लिंगायत और वोकालिगा जैसे दबदबे वाले जाति समूहों की आबादी में बड़ी गिरावट आई है. इससे वोटरों में भ्रम पैदा हो रहा है और यह बीजेपी और जेडीएस के रणनीतिकारों को भी भ्रम में डाल रहा है. सर्वे से पता चला है कि सिद्धारमैया और कांग्रेस पार्टी को इसकी भीतरी जानकारी होने से फायदा होगा.

- आरक्षण को बढ़ाकर 70 पर्सेंट करना

सिद्धारमैया ने वादा किया है कि वह तमिलनाडु फॉर्मूले के आधार पर पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को 70 पर्सेंट तक आरक्षण देंगे. फिलहाल यह आरक्षण 50 पर्सेंट है. हालांकि, इसी तरह की तरकीब गुजरात में कामयाब नहीं हुई है, लेकिन सीएम इस पर दांव लगा रहे हैं. गुजरात में दबदबा रखने वाली जाति पटेल को आरक्षण का वादा किया गया, जिससे दलित और ओबीसी नाराज हो गए. लेकिन, यहां वह आरक्षण का दायरा बढ़ाने की बात जनगणना के आंकड़ों के आधार पर कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि एएचआईएनडीए वोट बैंक को और कंसॉलिडेट करने की काफी गुंजाइश है.

- गुजरात बनाम कर्नाटक मॉडल

सिद्धारमैया अपनी सरकार की उपलब्धियों को आक्रामक तरीके से पेश कर रहे हैं. चार्ट, व्हॉट्सएप संदेशों से बताया जा रहा है कि किस तरह से कर्नाटक ने गुजरात के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है. इन संदेशों को गुजरात चुनावों के दौरान सोशल मीडिया पर बड़े लेवल पर फैलाया गया. इस तरह से उन्होंने बीजेपी के बेस्ट गवर्नेंस मॉडल को सीधे चुनौती देने में कोई गुरेज नहीं किया. कर्नाटक बनाम गुजरात पर ग्राफिक्स को प्रमुख सामाजिक-आर्थिक पैरामीटर्स पर जारी किया गया, इनमें कर्नाटक को ज्यादातर फैक्टर्स पर गुजरात से आगे दिखाया गया है.

आखिर में, हालांकि, पीएम मोदी ने रविवार को एक बड़ी रैली की, लेकिन, जैसा हमने पहले भी देखा है कि रैली में आई भीड़ का मतलब यह नहीं है कि वह वोट में तब्दील हो जाएगी. इसके अलावा, शहरी इलाके हमेशा से बीजेपी के मजबूत गढ़ रहे हैं. सिद्धारमैया का आक्रामक रूप से चुनावी मोर्चा खोलना दो मुख्यमंत्रियों- केजरीवाल और नीतीश कुमार के बीजेपी को कड़ी चुनौती देने की याद दिलाता है. 1985 के बाद से कोई सीएम कर्नाटक में वापसी नहीं कर पाया है. क्या सिद्धारमैया इस ट्रेंड को पटलने में कामयाब होंगे? यही चीज इस लड़ाई को और रोचक बना रही है.