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कर्नाटक चुनाव में वोटर पर बड़ा दांव, BJP-कांग्रेस के घोषणापत्रों से निकला 'लॉलीपॉप' का पिटारा

वोट एक कमोडिटी बन चुका है और तमाम राजनीतिक पार्टियों को लगता है कि उन्हें तरह-तरह के प्रलोभनों के जरिए इसे 'खरीदना' चाहिए.

Srinivasa Prasad

कर्नाटक के वोटर कृप्या इस बात को नोट कर लें. आपके वोटों की बोली लगने जा रही है. जी नहीं, हम नोट के लिए वोट की बात नहीं कर रहे हैं, जिसका नजारा चुनाव की तारीख यानी 12 मई से कुछ दिन पहले देखने को मिलेगा. दरअसल हम राज्य विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और बीजेपी के घोषणापत्रों में किए गए वादों की बात कर रहे हैं. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का घोषणा पत्र 27 अप्रैल को जारी किया गया, जबकि बीजेपी ने 4 मई

को घोषणापत्र जारी किया. इसमें कई बातें कही गई हैं, लेकिन जरा इसकी बानगी देखिएः


जैसा कि आप ऊपर दी गई जानकारी के माध्यम से देख सकते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी के कई वादे कैटेगरी, कंटेंट और साइज के मामले में एक ही तरह के जान पड़ते हैं. ऐसे में यह बात पूरी तरह से साफ है कि वोट एक कमोडिटी बन चुका है और तमाम राजनीतिक पार्टियों को लगता है कि उन्हें तरह-तरह के प्रलोभनों के जरिए इसे 'खरीदना' चाहिए. नामदारी और कामदारी दोनों की तरफ से ट्विटर और वॉट्सऐप ग्रुपों पर इसके लिए बोली लगाने का मामला पूरी तरह से गर्माया हुआ है.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का घोषणापत्र जारी करते हुए पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे जनता की 'मन की बात' करार दिया. बीजेपी के कर्नाटक अध्यक्ष और सीएम उम्मीदवार बी एस येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी के घोषणापत्र की तारीफ करते हुए कहा कि इसे (घोषणापत्र को) पेश करने के बाद कम से कम और 2-3 फीसदी वोट उनके पक्ष में जरूर आएंगे.

हालांकि, उन्होंने इस बारे में विस्तार से नहीं बताया कि किस आधार पर उन्होंने वोटों के रुझान से जुड़े इस आंकड़े का विश्लेषण किया है.

कौन किसकी नकल कर रहा है?

सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में तमाम अन्य पार्टियों के घोषणापत्र से जुड़े पहलुओं की नकल की है, लेकिन खुद अब बीजेपी पर आरोप लगा रही है.कांग्रस का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी अब उसके (कांग्रेस) घोषणापत्र में किए गए 'वादों' की नकल कर रही है.

दरअसल, कांग्रेस पार्टी ने अन्य पार्टियों के घोषणापत्रों से लैपटॉप, स्मार्टफोन और यहां तक कि सैनिटरी नैपकिन के वादों की नकल की. इसके बावजूद कांग्रेस यह दावा करने से बाज नहीं आ रही है कि बीजेपी ने इस संबंध में कांग्रेस के घोषणापत्र की नकल करते हुए अपने वादों की लिस्ट तैयार की है.

कांग्रेस द्वारा अन्य पार्टियों के घोषणापत्र की नकल किए जाने की एक और मिसाल कर्नाटक में इंदिरा कैंटीन योजना है. इसे तमिलनाडु में जयललिता द्वारा शुरू की गई अम्मा कैंटीन की तर्ज पर शुरू किया गया. अब बीजेपी ने भी बिना शर्म और हिचकिचाहट के मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा कैंटीन का प्रस्ताव दिया है. इस सवाल का जवाब मिलना मुश्किल है कि कौन किसकी नकल कर रहा है? हालांकि, क्या यह मायने रखता है?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में लोकलुभावन वादों की बरसात

बीजेपी के घोषणापत्र में ऊपर जिक्र की गई बातों के अलावा बाकी जो चीजें हैं, वे ऐसी नहीं जान पड़ती हैं, जिसके कारण वोटर सर से पांव तक बीजेपी से प्रेम करने के लिए प्रेरित हो जाएंगे. इनमें किसानों, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और दलित समुदाय के वोटरों को लुभाने के लिए पार्टी की कोशिश नजर आती है. हालांकि, ये वादे कतई इस बात की गारंटी नहीं हैं कि वोट देने के लिए बूथ पर लाइन में लगने वाले सभी मतदाता ईवीएम में कमल निशान पर ही बटन

दबाएंगे.

बीजेपी द्वारा किसानों को किए गए वादे कुछ इस तरह से हैं:

- अगर बीजेपी सत्ता में आती है, तो किसानों द्वारा राष्ट्रीय और सहकारी बैंकों से लिए गए 1लाख तक के सभी लोन को माफ करने के लिए राज्य कैबिनेट की पहली बैठक में फैसला लिया जाएगा.

- किसानों को पार्टी की तरफ से यह भी आश्वासन दिया गया है कि उन्हें अपनी उत्पादन लागत का डेढ़ गुना दाम दिया जाएगा.

- इसी के साथ उन्हें खेती की उन्नत तकनीक के अध्ययन के लिए सरकारी खर्चे पर इजराइल और चीन भेजा जाएगा.

जाहिर तौर पर किसानों के लिए वादों की कमी नहीं है. वैसे, उनकी सबसे अहम जरूरत पानी है. या जब फसलों के लिए पानी उपलब्ध हो जाता है, तो उनकी फसल के लिए उन्हें सही कीमत मिलनी चाहिए.

गाय का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है

आप सोच रहे होंगे कि पवित्र गाय का मुद्दा पिछले कुछ वक्त से खबरों में नहीं हैं. हालांकि, अब इसकी वापसी हो गई है. इसकी वापसी गलत वक्त पर गलत पार्टी के लिए (बीजेपी) और गलत राज्य में हुई है. पार्टी ने अपने घोषणापत्र में गौहत्या रोकने का वादा कर इस मुद्दे की वापसी की है.

बीजेपी दो बिलों को फिर से लाने का वादा कर रही है. पहला बिल पशुओं की हत्या को रोकने के लिए जबकि दूसरा गायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लाया जाएगा. साल 2008 में सत्ता में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने इसे पेश किया था. हालांकि, कांग्रेस द्वारा 2013 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद इन बिलों को वापस ले लिया गया.

कांग्रेस ने जब इन दो बिलों को वापस लिया था, तो बीजेपी ने ऐलान किया था कि राज्य में अगली बार सत्ता में आने पर वह इन बिलों को फिर से पेश करेगी. इसके अलावा, गौ सेवा आयोग को भी बहाल करेगी. बीजेपी ने यह आयोग बनाया था, जिसे बाद में कर्नाटक की सरकार ने खत्म कर दिया. बीजेपी गाय और बीफ पर वादे नहीं भूलती है. इस बात में किसी को शक नहीं होना चाहिए.

ध्यान रहे कि बीजेपी को गाय से जुड़े मुद्दे उठाने को लेकर निर्देश किसी डॉक्टर ने नहीं दिया था. खास तौर पर चुनाव प्रचार अभियान के उस मोड़ पर जब पार्टी के नेताओं का मानना है कि उसकी किस्मत काफी हद तक नरेंद्र मोदी के प्रचार अभियान के सीन में आने पर निर्भर करती है. गायों से जुड़े मुद्दों की चर्चा कर भारतीय जनता पार्टी भले ही जनता के एक तबके का कुछ समर्थन हासिल करने में सफलता हासिल कर ले, लेकिन यह सफलता अन्य समुदायों के कई

वोटरों की कीमत पर ही मिल सकेगी.

ऐसा नहीं है कि कर्नाटक में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग गाय को देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले कम पवित्र मानते हैं. हालांकि, गायों की रक्षा और यहां तक कि राम मंदिर जैसे मुद्दों की भावनात्मक अपील आमतौर पर उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण भारत में कम है.

मोदी सरकार के सत्ता में आने के 4 साल बाद भी गोहत्या पर किसी तरह का नया कानून (यहां तक कि पवित्र पशु की रक्षा की पाक नीयत से भी ) लोगों के दिमाग में कथित गौरक्षकों की गुंडागर्दी और हिंसात्मक गतिविधियों की याद ताजा कर सकता है. जहां तक कर्नाटक का सवाल है, तो यह बीजेपी के लिए अच्छी बात नहीं है.

बीजेपी के 2013 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हारने की वजहों में हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों को लेकर पार्टी की सनक और कथित नैतिकता का पाठ

पढ़ाने को लेकर भगवा दल की गतिविधियां आदि भी शामिल थीं. हालांकि, बीजेपी एक चीज के बारे में पूरी तरह निश्चिंत रह सकती है और वो यह कि कांग्रेस कम से कम गौरक्षा पर बीजेपी की तरफ से किए गए वादों की नकल नहीं करेगी.