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केजी बोपैया होंगे प्रोटेम स्पीकर, पहले भी बचा चुके हैं येदियुरप्पा की सरकार

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और विराजपेट से बीजेपी विधायक केजी बोपैया को राज्यपाल ने प्रोटेम नियुक्त किया है

FP Staff

कर्नाटक विधानसभा में शनिवार को होने वाले बहुमत परीक्षण के लिए राज्यापल ने प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति कर दी है. बीजेपी एमएलए केजी बोपैया प्रोटेम स्पीकर होंगे. कर्नाटक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बहुमत परीक्षण प्रोटेम स्पीकर की निगरानी में ही होगा. इसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि 8 बार विधायक रहे कांग्रेस के आरवी देशपांडे को वरिष्ठता के आधार पर प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया जाएगा.

राज्यपाल वजुभाई वाला के इस फैसले का कांग्रेस ने विरोध किया है. कांग्रेस का कहना है कि केजी बोपैया जब स्पीकर हुआ करते थे तब सुप्रीम कोर्ट ने उनके कार्य करने के तरीके पर सवाल उठाए थे. कांग्रेस और जेडीएस इस मामले में कोर्ट जाने की तैयारी भी कर रही है. आइए जानते हैं आखिर कौन हैं केजी बोपैया...


- केजी बोपैया विराजपेट से बीजेपी विधायक हैं.

- बोपैया कर्नाटक विधानसभा का 2009 से 2013 तक स्पीकर भी रह चुके हैं.

- इससे पहले भी वो 2008 में प्रोटेम स्पीकर रह चुके हैं. गवर्नर रामेश्वर ठाकुर ने बोपैया को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया था.

- बोपैया को बीएस येदियुरप्पा का विश्वासपात्र माना जाता है.

- अक्टूबर 2010 में अवैध खनन के मामले को लेकर कई बीजेपी विधायकों ने येदियुरप्पा के नेतृत्व पर सवाल उठाया था. इसके बाद स्पीकर बोपैया ने 11 बागी बीजेपी और 5 निर्दलीय विधायकों को अयोग्य करार दिया था. स्पीकर के इस फैसले ने कर्नाटक की बीजेपी सरकार को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

- स्पीकर केजी बोपैया ने जिस तरह ट्रस्ट वोट के दौरान निर्णय लिए थे उस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी कड़ी प्रतिक्रिया व्य्कत की थी. कोर्ट ने स्पीकर के फैसले को रद्द कर दिया था.

प्रोटेम का क्या है अर्थ

प्रोटेम लैटिन शब्‍द है जो दो अलग-अलग शब्दों प्रो और टेंपोर (Pro Tempore) से बना है. इसका अर्थ है-'कुछ समय के लिए.' किसी विधानसभा में प्रोटेम स्‍पीकर को वहां का राज्यपाल चुनता और इसकी नियुक्ति अस्थाई होती है जब तक विधानसभा अपना स्‍थायी विधानभा अध्‍यक्ष नहीं चुन ले. प्रोटेम स्पीकर नए विधायकों को शपथ दिलाता है और यह पूरा काम इसी की देखरेख में होता है. विधानसभा में जब तक विधायक शपथ नहीं लेते, तब तक उनको सदन का हिस्‍सा नहीं माना जाता.