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कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018ः सत्ता की चाभी लिंगायत वोटरों के हाथों में, जानिए आंकड़े

कर्नाटक का क़िस्सा बड़ा अजीब सा रहा है, 1989 के बाद से किसी भी पार्टी की यहां लगातार दो बार सरकार नहीं बनी है

FP Staff

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार खत्म हो गए हैं अब असली मुकाबले की बारी है. इस बार यहां सत्तारूढ़ कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल (सेक्युलर) के बीच त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद जताई जा रही है. अगर किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तो फिर जनता दल (सेक्युलर) किंग मेकर के तौर पर सामने आ सकती है. कर्नाटक में 223 विधानसभा सीटों के लिए 12 मई को वोट डाले जाएंगे.

कर्नाटक का क़िस्सा बड़ा अजीब सा रहा है. 1989 के बाद से किसी भी पार्टी की यहां लगातार दो बार सरकार नहीं बनी है. 1985 में आखिरी बार सिद्धारमैया के गुरु रामकृष्ण हेगड़े ने लगातार दो बार सरकार बनाई थी. इसके बाद किसी भी राजनीतिक दल ने ये कारनामा नहीं किया है.


इसकी बड़ी वजह है वोट शेयर में लगातार बदलाव. हर बार चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के वोट शेयर में जबरदस्त उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं. ऐसे में इस बार अगर यही ट्रेंड रहा तो एक बार फिर से आपको चौंकाने वाले नतीजे देखने को मिल सकते हैं.

पिछले 8 चुनावों में कर्नाटक में किस तरह की रही वोटिंग?

1983 से लेकर अब तक तीनों मुख्य दलों के वोटर शेयर और सीटों में बदलाव देखने को मिले हैं. लिंगायत समुदाय ने कर्नाटक के चुनाव को काफी दिलचस्प बना दिया है. उत्तरी कर्नाटक में लिंगायत समुदाय किसी भी पार्टी की जीत के लिए अहम फैक्टर साबित हो सकता है. कर्नाटक की 223 सीटों में से एक तिहाई सीट इसी इलाके से है.

भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी प्रचार के दौरान लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया है. बीएस येदियुरप्पा उत्तर कर्नाटक से चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में यहां के 14 ज़िलों यानी 96 विधानसभा सीटों पर उनका प्रभाव दिख सकता है.

2013 में येदियुरप्पा ने विधानसभा चुनावों के दौरान अपनी नई पार्टी (कर्नाटक जनता पार्टी) बनाई थी. ऐसे में बीजेपी तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी. जबकि कांग्रेस की सरकार बनी थी. कांग्रेस को लिंगायत के करीब 15 फीसदी वोट मिले थे. साल 2008 से 2013 के बीच बीजेपी को लिंगायत के वोटों का नुकसान उठाना पड़ा है.

(न्यूज-18 के लिए शेख सालिक़ की रिपोर्ट)