view all

कर्नाटक चुनाव 2018: अपनी सीट पर किसानों की नाराजगी से कैसे निपटेंगे येदियुरप्पा

लगातार तीन साल से सूखे का सामना करने के चलते शिकारीपुरा के ज्यादातर किसानों ने धान की बजाय ज्वार उपजाना शुरू कर दिया है

Bhasha

बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा का निर्वाचन क्षेत्र शिकारीपुरा पिछले तीन साल से लगातार सूखे की चपेट में है. वहीं , तालुका के कई गांवों के लोग इस बात से नाराज हैं कि उनके नेता येदियुरप्पा का राज्य और केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व होने के बावजूद राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) शुरू नहीं किया है.

दोपहर का भोजन करने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठे किसान शांतप्पा ने सूरज की तपिश से सूखती मक्का की फसल को देखते हुए चिंता जाहिर की. दरअसल उन्हें अपनी उपज को 1,000 रुपए प्रति क्विंटल की कम कीमत पर खुले बाजार में बेचने का डर सता रहा है.


हालांकि , पूरे परिवार ने पांच एकड़ जमीन में मक्का उगाने के लिए कमरतोड़ मेहनत की है. लेकिन फसल की बिक्री से मिलने वाली राशि उपज की लागत निकालने तक के लिए पर्याप्त नहीं होगी.

कम बारिश के चलते बंद हो गई है धान की खेती

लगातार तीन साल से सूखे का सामना करने के चलते शिकारीपुरा के ज्यादातर किसानों ने धान की बजाय ज्वार उपजाना शुरू कर दिया है. ज्वार की फसल कम पानी से और कम समय में तैयार हो जाती है.

गणेश कूडहल्ली (44) नाम के एक व्यक्ति ने बताया, ‘इस बार एमएसपी खरीद के लिए क्षेत्रीय विपणन केंद्र नहीं खुला. हमारे नेता ने वादा किया है कि यदि बीजेपी सत्ता मे आई तो वह मक्का के लिए 1,500 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी सुनिश्चित कराएंगे.’

उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार ने 2017-18 फसल वर्ष (जुलाई-जून) के लिए 1,425 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी की घोषणा की है लेकिन किसानों को लगता है कि उन्हें यह नहीं मिल रहा है. हम सचमुच में नहीं जानते कि कौन जिम्मेदार है, केंद्र या राज्य सरकार.’

सुरेश कुमार नाम के एक अन्य किसान ने कहा, ‘हमने कम बारिश होने के चलते धान की खेती बंद कर दी. इस क्षेत्र में सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं हैं. इसीलिए, हम आजीविका के लिए मक्का की खेती कर रहे हैं.’

कुमार ने रोष जाहिर करते हुए कहा, ‘किसानों के नाम पर राजनीति की जा रही है.’ उन्होंने कहा कि वह 12 मई के विधानसभा चुनाव में मतदान के दौरान ‘उपयुक्त में से कोई नहीं’ (नोटा) का इस्तेमाल करने के बारे में सोच रहे हैं.

वहीं, तालुक के एक अधिकारी ने बताया, ‘पिछले साल मक्का की उपज का आधे से भी कम हिस्सा एमएसपी पर खरीदा गया. लेकिन समूचा भंडार राज्य संचालित भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों में पड़ा रहा. कोई अतिरिक्त भंडारण नहीं है. इसलिए, एमएसपी पर खरीद शुरू नहीं की गई.’