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कर्नाटक चुनाव: जाति ही होगी सबसे मजबूत फैक्टर, तय करेगी जीत-हार

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि सिद्धारमैया के खिलाफ अपर कास्ट वोटर्स बड़ी संख्या में लामबंद होते हैं तो उन्हें अपने कोर वोट बैंक अहिंदा (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित) को मजबूत बनाना होगा

FP Staff

कर्नाटक में 224 विधानसभा सीटों के लिए शनिवार को वोटिंग हैं. यहां सत्ताधारी कांग्रेस, मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी और जेडीएस तीनों ही सत्ता में आने का दावा कर रहे हैं. वहीं इन पार्टियों के नेता और राजनीतिक एनालिस्ट्स चुनाव के बाद की संभावनाओं पर चर्चा कर रहे हैं.

कर्नाटक जैसे राज्य में जहां जातियों का अपना अलग समीकरण है, वहां हर बहस कास्ट एनालिसिस पर जाकर खत्म होती है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और कांग्रेस दोबारा सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त हैं और वह इसके लिए कई तरह की थ्योरी मीडिया के सामने रख रहे हैं. वहीं बीजेपी को जीत की पूरी उम्मीद है और उसके पास अपना अलग डेटा है. वहीं जेडीएस सत्ता में आने के लिए त्रिशंकु विधानसभा बनाने की पूरी कोशिश में है और उसकी अपनी अलग गणनाएं हैं.


लेकिन लगभग सभी को पता है कि चुनाव के बाद ये चार संभावनाएं ही हो सकती हैं:

पहली संभावना

कांग्रेस दोबारा चुनाव जीते. चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस को कम से कम 40 प्रतिशत वोट हासिल करना होगा. इसके लिए उसे बीजेपी को 35 प्रतिशत और जेडीएस को 20 प्रतिशत से नीते धकेलना होगा. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि सिद्धारमैया के खिलाफ अपर कास्ट वोटर्स बड़ी संख्या में लामबंद होते हैं तो उन्हें अपने कोर वोट बैंक अहिंदा (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित) को मजबूत बनाना होगा.

'लीक्ड' कास्ट सेंसस के मुताबिक कर्नाटक में अपर कास्ट वोटर करीब 35 प्रतिशत हैं और एसटी को मिलाकर अहिंदा वोटर करीब 60 प्रतिशत हैं. लेकिन इससे कांग्रेस की राह आसान नहीं होगी क्योंकि इस ग्रुप में कई जातियां और पंथ हैं. सिर्फ ओबीसी की 99 जातियां हैं. सिद्धारमैया की जाति कुरुबा राज्य की जनसंख्या का 7 प्रतिशत और ओबीसी का 30 प्रतिशत है. ओबीसी में भी जातिगत समीकरण और अनुक्रम हैं. कुछ जातियां उच्च मानी जाती हैं और कुछ जातियां निचली.

यदि अपर कास्ट दूर होते हैं तो मुस्लिम, ईसाई, दलित, कुरुबा और एसटी वोटर कांग्रेस का साथ देंगे. यहां करीब 16 प्रतिशत मुस्लिम, 2-3 प्रतिशत ईसाई, 7 प्रतिशत कुरुबा, 19.5 प्रतिशत दलित और 5 प्रतिशत एसटी हैं. 1970 के शुरुआती दौर में देवराजु उर्स के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने इसी संयोजन के साथ कर्नाटक की राजनीति से अपर कास्ट लिंगायत और वोक्कालिग्गा के प्रभाव को खत्म किया था. पिछले 20 सालों में यह कॉम्बिनेशन बंट गया है और इन समूहों ने किसी एक पार्टी के लिए वोट नहीं किया है.

सिद्धारमैया इन सभी थ्योरियों को खारिज करते हुए कहते हैं कि सभी जातियां और धर्म कांग्रेस के लिए वोट करेंगे. उन्होंने कहा था, 'सभी जातियों और धर्मों में अमीर-गरीब लोग हैं. सभी की अपनी विचारधारा है. यह कहना गलत होगा कि एक विशेष जाति एक विशेष पार्टी के लिए वोट करती है. कांग्रेस सबकी है. हमनें अहिंदा के लिए काफी कुछ किया है. मैं यह कहते हुए गर्व महसूस करता हूं कि मैं एक अहिंदा हूं. लेकिन मैं अन्य जातियों, विशेषकर अपर कास्ट के खिलाफ नहीं हूं. हमारी सरकारी योजनाओं ने ब्राह्मणों, लिंगायतों और वोक्कालिगा को भी फायदा पहुंचाया है. मुझे विश्वास है कि वे हमारा साथ देंगे.'

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि यदि दो तिहाई अहिंदा वोटर्स कांग्रेस का समर्थन करते हैं तो अपर कास्ट का थोड़ वोट भी कांग्रेस की नैया पार लगा देगा.

दूसरी संभावना

बीजेपी सरकार बनाती है. बीजेपी का कोर वोट बैंक लिंगायत हैं जो राज्य की 14 प्रतिशत आबादी हैं. कुछ लिंगायत संगठनों का दावा है कि वे 17 प्रतिशत से ज्यादा हैं. लिंगायतों के अलग धर्म की मांग और कांग्रेस के उनको पूरा समर्थन देने से मामला थोड़ा उलझ गया है. कांग्रेस का कहना है कि कई लिंगायत अब बीजेपी को अपनी पार्टी नहीं मानते हैं और वे कांग्रेस के लिए वोट कर सकते हैं. लेकिन बीजेपी को विश्वास है कि लिंगायतों का ज्यादातर वोट बीजेपी को मिलाग. यदि बीजेपी ओबीसी, दलित और एसटी वोटों को बांटने में सफल होती है और लिंगायत और अन्य अपर कास्ट वोटरों का सहयोग उसे मिलता है तो बीजेपी जीत सकती है. यह सच है कि बीजेपी को पिछले 15 सालों से ओबीसी और दलितों की कई जातियों का समर्थन मिलता आ रहा है. हालांकि लिंगायत वोटों में कमी, कुछ ओबीसी, दलित और एसटी वोट से बीजेपी का जीतना मुश्किल है. नहीं तो बीजेपी को राज्य में मौका मिल सकता है.

तीसरी संभावना

जेडीएस एक त्रिशंकु विधानसभा बनाने में सफल होती है. इसके लिए जेडीएस को अपने कोर वोटबैंक वोक्कालिगा के अलावा अन्य वोटर्स की भी आवश्यकता होगी. 'लीक्ड' कास्ट सेंसस के मुताबिक कर्नाटक में वोक्कालिगा केवल 11 प्रतिशत हैं. हालांकि वे दावा करते हैं कि वे 15-16 प्रतिशत हैं. वोक्कालिगा समुदाय के समर्थन से जेडीएस काफी सीटें जीत सकती है. लेकिन 40 सीटों से ज्यादा पाने के लिए गौड़ा की पार्टी नॉन-गौड़ा जातियों और अल्पसंख्यक वोटों की जरूरत होगी. 2004 में जेडीएस ने 58 सीटें जीती थीं, तब ओबीसी, दलित और मुस्लिम वोटरों की मदद से वह एक त्रिशंकु विधानसभा बनाने में सफल हुए थे. तब सिद्धारमैया उनके साथ थे. कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस के बीच ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों के वोट बंटने से एक त्रिशंकु विधानसभा बन सकती है. पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ राजनीति में बने रहने के लिए इसकी उम्मीद कर रहे हैं.

चौथी संभावना

कांग्रेस या बीजेपी को 100 या 90 से ज्यादा सीटें मिल सकती है. दूसरे नंबर पर आने वाली पार्टी पहली से ज्यादा पीछे नहीं होगी लेकिन तीसरी पार्टी जेडीएस से काफी आगे होगी. ऐसा तभी होगा जब अपर कास्ट, ओबीसी और दलितों के वोट कांग्रेस और बीजेपी में बराबर-बराबर बंट जाएं और जेडीएस को बड़ी मात्रा में नॉन-वोक्कालिगा वोट न मिलें. ऐसे में जेडीएस बेहद कमजोर हो जाएगा और वह बंट भी सकता है.

एक बात तो तय है कि राजनीतिक पंडित और नेता नतीजों के दिन तक इन संभावनाओं पर चर्चा करेंगे और बाद में इसी जातिगत समीकरणों के आधार पर चुनाव का पोस्टमार्टम करेंगे.

(न्यूज-18 के लिए डीपी सत्तीश की रिपोर्ट)