view all

पार्टी में अपना नैतिक अधिकार फिर से हासिल कर पाएंगे केजरीवाल?

इसके लिए केजरीवाल को अपनी पार्टी से मंडली-संस्कृति को खत्म करना होगा

Akshaya Mishra

सीज़र की पत्नी ज़रूर संदेहों से मुक्त रही होंगी. लेकिन अगर हम अरविंद केजरीवाल की बात कर रहे हैं तो उन्हें सीज़र की पत्नी से और ज्यादा विश्वासपूर्ण होना चाहिए. क्या वे ऐसे सकारात्मक योद्धा नहीं थे, जिसने देश में भ्रष्टाचार की बदसूरत इमारत को तोड़ने का वादा किया था? क्या उन्होंने भ्रष्ट लोगों के खात्मे के लिए दृढ इच्छा शक्ति के साथ राजनीति में प्रवेश नहीं किया था? राजनीतिज्ञों के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहना लगभग सामान्य सी बात है लेकिन यदि वह व्यक्ति केजरीवाल हैं तो प्रभाव असाधारण रूप से बड़ा हो जाता है.

कपिल मिश्रा के आरोप बेहद गंभीर


(फोटो: पीटीआई)

यही कारण है कि कपिल मिश्रा के दिल्ली के मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोप बेहद गंभीर हैं. इस बारे में अभी भी नहीं कहा जा सकता कि उनके पास केजरीवाल के अनुचित-कार्यों के जो सबूत हैं उनकी गहन जांच की जाएगी.

यह साबित करना मुश्किल हो सकता है कि स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने वास्तव में 50 करोड़ रुपए के जमीन सौदे में केजरीवाल के साढ़ू की मदद की थी, या आप सरकार ने जानबूझकर आरोपी को बचाने के लिए 400 करोड़ रुपए के टैंकर घोटाले की जांच नहीं होने दी जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित शामिल थीं.

उनका आरोप है कि जैन ने अपने आधिकारिक निवास पर केजरीवाल को दो करोड़ रुपए दिए थे, यहां ये मामला वार-पलटवार का नजर आता है. हुआ ये है कि जैन ने पहले ही मीडिया को बता दिया है कि वह उस दिन ( 5 मई ) को वहां मौजूद नहीं थे- और उन्होंने मिश्रा को सबूत के साथ अपने आरोप साबित करने की चुनौती भी दी. आप के नेताओं से जुड़े कई ऐसे निराधार आरोपों की इतनी सारी घटनाएं हो चुकी हैं कि अब उनकी बात पर सीधे-सीधे यकीन करना मुश्किल है.

फिर भी मिश्रा का मामला अलग है. उनके आरोप उस डंक की शक्ल में हैं जो केजरीवाल की छवि को हमेशा के लिए नुकसान पहुंचा सकते हैं. पहले कभी भी नेता पर अंदरूनी हमला इतना सीधा और इतना जहरीला नहीं था.

यह सच है कि इस तरह के हमले से ये तो सिद्ध हो जाता है कि केजरीवाल ने पार्टी में अपना सम्मान खो दिया है और कुछ लोग उन्हें अपने अस्तित्व के लिए जरूरी नहीं मानते हैं. ज्यादा बुरा तो ये है कि उन्हें लगातार एक करीबी मंडली द्वारा निर्देशित एक गुट के नेता के रूप में देखा जा रहा है - मिश्रा ने ऐसे दो लोगों का उल्लेख किया है, जिनका उन पर असर है.

कपिल मिश्रा ने कहा  है ‘ये वो केजरीवाल नहीं हैं जो कभी हमारे लिए पूज्यनीय हुआ करते थे. मुख्यमंत्री पद ने उनको बदल दिया है.’ अभी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि मिश्रा भाजपा के हांथों खेल रहे हैं या पार्टी में ही कोई है जिसके इशारों पर वो ऐसा कर रहे हैं. या ये भी हो सकता है कि उनकी नाराजगी वास्तविक हो.

लेकिन जो उन्होंने कहा वह उन हजारों आदर्शवादी स्वयंसेवकों की आवाज हो सकती है, जो केजरीवाल के राजनीति में प्रवेश करने के वक्त उनके साथ खड़े थे. जाहिर है कि केजरीवाल अब वे नहीं हैं जो उस समय थे और कोई भी दावे के साथ नहीं बता सकता कि अब वे कौन हैं.

नेता के रूप में उनकी नाकामी अपने आप में एक आदर्श मामला है. इतना ही नहीं उन्होंने उस व्यक्ति के रूप में वो स्पार्क खो दिया है जो अपने आसपास के लोगों की प्रेरणा बन सके बल्कि अब तो वे इस भारी नुकसान के बाद हालात पर काबू भी नहीं पा सकते.

जब नेता एक गुट का हिस्सा नजर आने लगे और लोगों का कद छोटा करने वाले षड्यंत्र में शामिल नजर आए तो समझ लीजिए कि बर्बादी की पक्की तैयारी है. ऐसे मामले में दूसरों पर हावी होने वाली उनकी क्षमता और उन्हें एकजुट करने वाली शक्ति उनके हाथ से निकल जाती है.

कई बौद्धिक दिग्गजों को निकाल दिक्कत में थी पार्टी

आम आदमी पार्टी तो पहले ही लंबे समय से प्रतिभाशाली और बौद्धिक दिग्गजों, जैसे योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और इस तरह के ही दूसरे लोगों के पलायन से पीड़ित थी. अब इसमें औसत दर्जे वाले सिर्फ वही नेता बचे हैं जो केवल अंदर से दूसरों की काट करने के जरिए ही जीवित रह सकते हैं. केजरीवाल को परिस्थितियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी है.

अब यह बताना मुश्किल है कि उनके पास अब कुछ वास्तविक समर्थक बचे हुए हैं, खासकर उनके नेतृत्व के पायदानों की चोटी पर जो कि इस समय खाली है. मिश्रा ने यह भी बार-बार कहा है कि वह पार्टी नहीं छोड़ेंगे. अगर राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक से उनको बाहर नहीं कर दिया जाता तो समझ लीजिये कि केजरीवाल की खुद की हालत डावांडोल है.

लेकिन उनको निकाल देना भी कोई समझदारी की बात नहीं होगी. पार्टी में से कितने ऐसे लोगों को आप बाहर फेंक सकते हैं? इससे पार्टी की गुटबाजी की समस्या हल नहीं होने वाली. कल फिर कोई आ जाएगा और यहां शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ भ्रष्टाचार का रुदन शुरू कर देगा.

आम आदमी पार्टी के लिए परेशानी बनने वाला असली मुद्दा भ्रष्टाचार नहीं है - यह तो महज असंतुष्ट नेताओं के लिए एक सुविधाजनक सहारा है - लेकिन बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिन्होंने केजरीवाल से अपनी नजदीकियों को भुनाने की कोशिश में हदें पार कर दी हैं.

क्या केजरीवाल अपने नैतिक अधिकार की फिर से स्थापना कर सकते हैं और उस नेता के रूप में उभर सकते हैं जो कि वे कभी थे? नहीं, जब तक कि वे अपने-आप को इस मंडली-संस्कृति से मुक्त करके फिर से एक बार आत्मनिर्भर नहीं हो जाते. लेकिन जिस तरह से वे हर हफ्ते पैदा हो जाने वाली ऐसी समस्याओं को ले रहे हैं, ऐसा होना थोड़ा मुश्किल ही लगता है. कपिल मिश्र ने उनकी कमजोरी का पर्दाफाश कर दिया है.