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कपिल मिश्रा से हाथापाई: AAP में विरोध की आवाज से ऐसा ही सलूक होता है

आप के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ असंतोष की कोई भी आवाज न कभी सही गई है और न सुनी हुई है

Debobrat Ghose

दिल्ली सरकार से निकाले गए मंत्री कपिल मिश्रा के साथ विधानसभा के भीतर धक्का-मुक्की की गई, उन्हें घसीटा गया और पिटाई की गई. फिर, उन्हें सदन से बाहर निकाल दिया गया. ये सब विपक्ष ने नहीं किया, बल्कि उनके ही पूर्व पार्टी साथियों ने किया.

ये तो होना ही था. हैरत की बात तो ये रही कि आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के विश्वसनीय सिपहसालारों को मिश्रा पर हमला करने में (इस बार शारीरिक रूप से) इतना वक्त क्यों लगा? आप के शीर्ष नेताओं के खिलाफ असंतोष की कोई भी आवाज न कभी सही गई है और न सुनी हुई है. मिश्रा भी अपवाद नहीं रहे.


आप नेतृत्व को अपने उन असंतुष्ट पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की आवाज को दबाने का पूरा अधिकार है जो उनके खिलाफ काम करते हैं या पार्टी के कामकाज पर सवाल उठाते हैं. अगर दूसरी मुख्यधारा की राष्ट्रीय पार्टियां जैसे कांग्रेस, बीजेपी, सीपीएम, अन्नाद्रमुक या तृणमूल कांग्रेस अपने नेताओं को पार्टी के खिलाफ बोलने के लिए सजा दे सकते हैं, तो आप क्यों नहीं?

लेकिन पार्टी से बाहर हुए नेताओं के मुताबिक आप के संस्थापक सिद्धांतों के हिसाब से यह गलत है.

आम आदमी पार्टी लॉन्च करते हुए केजरीवाल ने कांग्रेस और बीजेपी से अलग राजनीति का वादा किया था. कहा गया था कि कार्यकर्ताओं की आवाज सबसे ऊपर रहेगी. हर फैसला चर्चा करके लोकतांत्रिक तरीके से होगा. पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र मुख्य सिद्धांत होगा. आप के एक पूर्व सदस्य ने बताया, ‘यही बातें मतदाताओं का दिल जीतने में इस्तेमाल हुईं लेकिन इन पर कभी अमल नहीं हुआ. जिसने भी पार्टी के फैसले पर सवाल किए, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.’

मिश्रा से पहले भी कई नाम हैं

मिश्रा से पहले भी कई लोग आए. आप विधायकों और सांसदों समेत एक लंबी सूची है जिन पर हमले हुए और जिन्हें निकाल बाहर दिया गया. इस फेहरिस्त में पहला नाम विनोद कुमार बिन्नी का है जो लक्ष्मीनगर से विधायक थे और जो 2014 में ‘केजरीवाल मंडली के पहले शिकार’ हुए. उन्होंने आप पर जन लोकपाल बिल को लेकर दिल्ली की जनता को अंधेरे में रखने का आरोप लगाया था. उन्हें आखिरकार निष्कासित कर दिया गया.

रोहिणी से एक अन्य विधायक राजेश गर्ग, उनके बाद आप वॉलेन्टियर्स ग्रुप (अवाम) के नेतृत्वकर्ता रहे करन सिंह, फिर महिलाओं का चेहरा रहीं शाजिया इल्मी, पार्टी का बौद्धिक चेहरा रहे योगेंद्र यादव, प्रशान्त भूषण, प्रोफेसर आनंद कुमार और प्रोफेसर अजित झा, पूर्व राजनयिक और हाई प्रोफाइल संस्थापक सदस्य मधु भादुड़ी के साथ कई दूसरे लोग शामिल हैं- इन सभी को अपमानित किया गया और बाहर कर दिया गया.

पार्टी के आंतरिक लोकपाल और पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल एल रामदास को भी निकाल दिया गया. पटियाला से आप सांसद धर्मवीर गांधी को पार्टी छोड़नी पड़ी और अपनी अलग पार्टी बनानी पड़ी. इनमें से कई के साथ धक्का-मुक्की की गई जैसे मिश्रा के साथ की गई.

2014 में मधु भादुड़ी ने फर्स्टपोस्ट के साथ अपना अनुभव साझा किया था, ‘जहां तक मेरा संबंध है पार्टी ने यह सुनिश्चित कर दिया कि आप कr राष्ट्रीय परिषद के सदस्य का अधिकार मुझे न रहे और काउंसिल में मैं कोई प्रस्ताव न ला सकूं. और, वास्तव में मुझे धक्का देकर जबरदस्ती हॉल से बाहर कर दिया गया.’

भादुड़ी ने खिड़की एक्सटेंशन में आधी रात के वक्त अफ्रीकी महिलाओं के घर छापेमारी के लिए आप विधायक सोमनाथ भारती के खिलाफ आवाज़ उठाई थी और वह इस मुद्दे पर एक प्रस्ताव लाना चाहती थीं.

पार्टी में नहीं सुनी जाती विरोध की आवाज

पार्टी से बाहर हुए सदस्यों के मुताबिक आप में शीर्ष नेतृत्व को एक समूह ने घेर रखा है जो केजरीवाल के करीब है. इनमें ऐसे लोग हैं जो सुनिश्चित करते हैं कि दिल्ली सीएम को या पार्टी के कामकाज या फैसले को अगर कोई भी चुनौती देता है तो उसे ‘पार्टी से बाहर फेंक दिया जाना’ चाहिए.

आप से टूट कर बने AVAM के संयोजक करन सिंह कहते हैं, ‘पार्टी से निकाले जाने से पहले ऐसे लोगों का अपमान किया जाता है, सोशल मीडिया पर उनसे गाली-गलौच की जाती है, उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित और कभी-कभी धक्का-मुक्की तक की जाती है. उस व्यक्ति के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोल कराया जाता है और उनपर हमले तेज होते हैं. मेरे मामले में मैंने सुनिश्चित किया था कि किसी पर व्यक्तिगत हमला नहीं करना है और सार्वजनिक रूप से वाद-विवाद में नहीं पड़ना है. विरोध के गांधीवादी तरीके पर बने रहना है. लेकिन पार्टी के ट्रोल्स ने सोशल मीडिया में मुझपर हमले किए.’

सिंह ने आगे बताया, ‘अब  परिस्थिति ऐसी है कि किसी मसले या विवाद पर तटस्थ रहने पर भी आप पर हमले होंगे. दिल्ली चुनाव में जीत के बाद पार्टी ने हर उस सिद्धांत से समझौता कर लिया, जिसका पालन करने का वादा किया था.’

आप विधायक राजेश गर्ग ने उस चिट्ठी को फेसबुक पर सार्वजनिक किया था, जो उन्होंने केजरीवाल के लिए लिखी थी, ‘आपको पार्टी के आम कार्यकर्ताओं के दर्द को समझने की कोशिश करनी चाहिए जिन्होंने इस देश को भ्रष्टाचार मुक्त कराने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया. क्या हम विपक्ष में रहकर अच्छा काम नहीं कर सकते? हम जनता की सेवा करने आए हैं सरकार बनाने नहीं.’

क्या केजरीवाल और उनकी पार्टी आप ने गर्ग की अपील पर ध्यान दिया है?