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सबसे संगीन आरोप और संकट के जिम्मेदार केजरीवाल खुद

जनता का नुकसान: भविष्य के बेहतर प्रयोगों पर जनता अब आसानी से भरोसा करने वाली नहीं है

Naveen Joshi

अरविंद केजरीवाल पर उनके ही एक कैबिनेट मंत्री कपिल मिश्रा के भ्रष्टाचार के संगीन आरोप कानूनन साबित हों या नहीं, आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार की साख जिस तेजी से दिल्ली और देश की जनता की नजरों में गिरती जा रही है उसे साबित करने की जरूरत नहीं.

लगातार विवादों और आरोपों से घिरती जा रही ‘आप’ मतदाताओं की नजरों से तो उतर ही रही है, पारदर्शी और ईमानदार वैकल्पिक राजनीति की सम्भावनाओं को बड़ी क्षति पहुंचा रही है.


क्या कपिल मिश्रा के पास सबूत हैं?

केजरीवाल को दो करोड़ रुपए लेते अपनी आंखों से देखने का कपिल मिश्रा के आरोप की जांच में सबूत मांगे जाएंगे. क्या कपिल मिश्र के पास इसके सबूत हैं? क्या ऐसे प्रमाण हैं जिनके आधार पर वे सत्येंद्र जैन को शीघ्र जेल भिजवाने का दावा कर रहे हैं?

दिल्ली के उपराज्यपाल से उनकी मुलाकात सिर्फ भभकी है या उसमें कुछ दस्तावेजी आधार भी हैं? केजरीवाल हाल के महीनों में चाहे जितने एकाधिकारवादी, अराजक और बड़बोले दिखायी दिये हों, उन पर स्वयं रिश्वत लेने का आरोप स्तब्धकारी और अविश्वसनीय लगता है.

केजरीवाल पर लगे आरोप सच हैं या झूठ?

उनकी ‘तानाशाही’ से आजिज आकर ‘आप’ छोड़ने और स्वराज इंडिया पार्टी बनाने वाले योगेंद्र यादव ने भी अपनी ट्विटर-प्रतिक्रिया में केजरीवाल पर घूस लेने के आरोप पर अविश्वास ही जाहिर किया है.

यह भी तथ्य है कि यह आरोप उस शख्स ने लगाया है जो दिल्ली की सड़कों पर पारदर्शिता की लड़ाई और ‘आप’ की स्थापना के दिनों से केजरीवाल का बराबर का साथी रहा है. कपिल मिश्रा ने ‘आप’ की अंदरूनी लड़ाई और केजरीवाल के खिलाफ विरोधी दलों के अभियान के दौरान केजरीवाल का पूरा साथ दिया था.

आखिर मिश्रा ने क्यों लगाया यह आरोप?

आखिर ऐसी क्या बात है कि उनका साथी ही अचानक केजरीवाल पर अब तक का सबसे संगीन आरोप लगाने लगा? जैसा कि ‘आप’ की तरफ से आरोपों की सफाई में मनीष सिसोदिया ने कहा, क्या मंत्रिमंडल से हटाये जाने पर ही कपिल मिश्रा केजरीवाल से इस हद तक खफा हो गये? सिसोदिया के मुताबिक दिल्ली में पानी के संकट से निपटने में कपिल मिश्रा की अक्षमता के कारण मुख्यमंत्री ने उन्हें मंत्रिमंल से हटाने का फैसला किया.

मंत्रिमंडल में फेरबदल, कुछ को हटाना और दूसरों को शामिल करना सभी राज्य सरकारों में होता है. हटाये जाने वाले मंत्रियों का नाराज होना स्वाभाविक है लेकिन इस तरह के संगीन आरोप लगाना विरला वाकया है.

इस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के पीछे इतनी सी वजह समझ में नहीं आती. रिश्वत लेने का आरोप चाहे जितना अपुष्ट और अविश्वसनीय हो, कुछ दूसरे कारण अवश्य होंगे.

सत्येंद्र जैन पर पाक-साफ नहीं

सत्येंद्र जैन केजरीवाल के मंत्री हैं, उनके करीबी भी और उनका दामन भी आरोपों से साफ नहीं है. दिल्ली के पानी टैंकर घोटाले में जो रिपोर्ट कपिल मिश्रा ने चंद रोज पहले केजरीवाल को सौंपी थी, उस पर केजरीवाल या सरकार का मौन भी सवालों के घेरे में है.

यह वजह तो साफ है ही कि केजरीवाल के तौर-तरीकों ने ‘आप’ में अराजक स्थिति पैदा कर रखी है. वे अपनी जगह भले ईमानदार हों लेकिन इतने व्यावहारिक कतई साबित नहीं हुए कि उस ऐतिहासिक अवसर का सार्थक उपयोग कर पाते जो उन्हें जनता ने उन्हीं की बातों से प्रभावित होकर दिया था.

उलटे, वे लगातार विवाद पैदा करते रहे. उनके मंत्री और वे खुद आरोपों से घिरते गये. अगर कारण भितरघात या साजिश है तो यह जानते हुए भी कि कपिल मिश्रा कुमार विश्वास खेमे के आदमी हैं, केजरीवाल ने उन्हें अपनी सरकार से हटा कर एक नया मोर्चा क्यों खोल दिया?

जबकि दो रोज पहले ही अमानतुल्लाह को पार्टी से निलंबित करके कुमार विश्वास से भाईचारा पुनर्स्थापित किया था? अमानतुल्लाह ने राजनीति के गलियारों की सुन-गुन को खुलेआम कह दिया था कि कुमार विश्वास भाजपा के इशारे पर पार्टी के खिलाफ काम कर रहे हैं.

क्या बीजेपी को मौका नहीं दे रही है आप?

कुमार विश्वास को खुश करना और उनके करीबी को मंत्रिमंडल से बाहर करना, केजरीवाल का कैसा दांव है? क्या इससे वे भाजपा को ही मौके नहीं दे रहे?

एमसीडी चुनावों में बड़ी विजय के बाद अगर मोदी-शाह की भाजपा दिल्ली की ‘आप’ सरकार को अस्थिर करने की चाल चल रही हो तो क्या आश्चर्य.

अरुणाचल एवं उत्तराखंड के थोड़ा पुराने और गोवा व असम के ताजा भाजपाई खेल गवाह हैं कि वह दिल्ली में भी ताक लगाये बैठी होगी.

अगर अरविंद केजरीवाल यह जानते हैं कि ‘आप’ सरकार मोदी व शाह के लिए आंख की किरकिरी है तो वे बार-बार उन्हें यह मौका क्यों दे रहे हैं कि वे इस किरकिरी को दूर करने कोशिश करते रहें?

अपनी स्थापना के सिर्फ दो साल के भीतर दिल्ली की सत्ता पा लेने वाली आम आदमी पार्टी उतनी ही तेजी से विघटन की कगार पर है. एक और टूट सामने खड़ी है.

पार्टी बचे या टूटे, केजरीवाल बेईमान साबित हों या नहीं, वैकल्पिक राजनीति की उम्मीद ध्वस्त हो रही है. यह सबसे बड़ा नुकसान है. भविष्य के बेहतर प्रयोगों पर जनता आसानी से भरोसा करने वाली नहीं.