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कैराना और नूरपुर उपचुनाव: यूपी में पूरब के बाद अब पश्चिम में बीजेपी अौर विपक्ष की जंग

इस उपचुनाव की सबसे खास बात यह है कि दोनों सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हैं. बीजेपी के लिए यह सियासत की जड़ें जमाने का उर्वर इलाका रहा है

Ranjib

साल 2019 में होनेवाले लोकसभा के चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में पक्ष और विपक्ष के बीच फिर एक बार उपचुनावों के जरिए एक-दूसरे का दम देखने का माहौल बन गया है. शामली जिले की कैराना लोकसभा और बिजनौर की नूरपुर विधानसभा सीट पर 28 मई को उपचुनाव होना है. गोरखपुर और फूलपुर में विपक्षी दलों की साझा ताकत के आगे हार चुकी बीजेपी के लिए इन दोनों सीटों को बचाना बड़ी चुनौती है. दोनों सीटें उसके ही पास थीं. कैराना से बीजेपी सांसद हुकुम सिंह और नूरपुर में पार्टी के विधायक लोकेंद्र सिंह के निधन के कारण उपचुनाव हो रहे हैं.

इस उपचुनाव की सबसे खास बात यह है कि दोनों सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हैं. बीजेपी के लिए यह इलाका उसकी सियासत की जड़ें जमाने का उर्वर इलाका रहा है. कैराना की चर्चा, मुजफ्फरनगर के दंगों और उसके बाद हुकूम सिंह की ओर से यहां से हिंदुओं के पलायन का आरोप लगाने से गरमाती रही सियासत के लिए ज्यादा होती रही है. जबकि यह जगह भारतीय शास्त्रीय संगीत का बड़ा केंद्र भी रहा है. मशहूर किराना घराना का ताल्लुक यहीं से है, जिसने ख़याल गायकी को नई ऊंचाइयां दीं, लेकिन कैराना अब संगीत से ज्यादा सियासत के लिए मशहूर है.


बीएसपी खुद उपचुनाव नहीं लड़ेगी

गोरखपुर और फूलपुर दोनों पूर्वी उत्तर प्रदेश में हैं. पूरब में बीजेपी को मिली हार का हिसाब वह पश्चिम में करना चाहती है. वहीं विपक्ष चाहता है कि 2019 के पहले यह संदेश जाए कि पूरब से पश्चिम तक बीजेपी की ताकत घट रही है. यही वजह है कि कैराना और नूरपुर के उपचुनावों के खास सियासी मायने हैं. बीजेपी कैराना से स्वर्गीय हुकूम सिंह की बेटी मृगांका और नूरपुर से लोकेंद्र सिंह की पत्नी अवनी सिंह को लड़ाने की तैयारी में है. इन दोनों सीटों पर विपक्ष क्या करता है यह देखनेवाली बात होगी.

एसपी और बीएसपी दोनों गोरखपुर और फूलपर के बाद कई बार कह चुके हैं कि उनका साथ जारी रहेगा लेकिन कैराना और नूरपुर के उपचुनाव में क्या बीएसपी पूरब की तरह पश्चिम की इन दोनों सीटों की तरह एसपी को समर्थन की घोषणा करेंगी? बीएसपी खुद उपचुनाव नहीं लड़ेगी यह तय है लेकिन गोरखपुर और फूलपुर के बाद वह उपचुनावों से दूर रहेगी. ऐसा मायावती कह चुकी हैं. कैराना में अपना प्रत्याशी उतारने का दावा एसपी का है क्योंकि 2014 में वह यहां दूसरे नंबर पर थी. जबकि कांग्रेस चाहती है कि राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी को उतारा जाए.

संसदीय सीट के परिसीमन के बाद सहारनपुर जिले की गंगोह और नकुड़ भी कैराना लोकसभा सीट का हिस्सा है. सहारनपुर की इन सीटों पर कांग्रेस नेता इमरान मसूद का अपना प्रभाव है. यानी पश्चिम की इन सीटों पर विपक्षी पाले में फिलहाल खुद ही रस्साकशी है. गोरखपुर और फूलपुर दोनों जगहों पर कांग्रेस ने भी उम्मीदवार उतारा था लेकिन उसे बुरी हार मिली थी. ऐसे में कैराना और नूरपुर में उसका रुख क्या होता है यह देखना दिलचस्प होगा. एसपी का एक खेमा भी चाहता है कि कैराना में पार्टी की ओर से अल्पसंख्यक वर्ग के किसी को उतारने की जगह जयंत चौधरी का समर्थन किया जाए ताकि बीजेपी ध्रुवीकरण न कर सके.

योगी ने किया सरचार्ज माफ करने का वादा

विपक्षी दलों के नेताओं का मानना है कि अल्पसंख्यक और अनुसूचित जाति के वोटरों की बड़ी तादाद की मदद से कैराना में भी बीजेपी को हराया जा सकता है. नूरपुर के बारे में यह माना जा रहा है कि वहां एसपी अपना प्रत्याशी उतारेगी क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में वह रनर अप थी. नूरपुर में किसी और विपक्षी दल के अपना उम्मीदवार बनाने की संभावना कम है.

विपक्ष की ओर से घरने की कोशिशों के कारण बीजेपी को भी चुनौती का अहसास है. बीते दिनों लखनऊ दौरे पर आए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सरकार और संगठन के साथ उपचुनावों की रणनीति पर भी चर्चा की थी. उपचुनावों की घोषणा से ऐन पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी यूपी के किसानों के बिजली बिलों पर सरचार्ज माफ करने की घोषणा की है. इसे उपचुनावों से ही जोड़ कर देखा जा रहा है.