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जोकीहाट में तस्लीमुद्दीन की विरासत जीती है, यहां न नीतीश हारे और न ही तेजस्वी जीते

जोकीहाट विधानसभा के अबतक हुए 14 चुनावों में नौ बार तस्लीमुद्दीन परिवार का कब्जा रहा है.

Kanhaiya Bhelari

अरे, ये क्या? मोहम्मद तस्लीमुद्दीन बदजुबानी पर उतर आये हैं. बिहार के डीफेक्टो सीएम लालू यादव को उनके मुंह पर ही अनाप सनाप बोले जा रहे हैं. स्वभाव के प्रतिकूल राजद सुप्रीमो मौनिया बाबा बनकर उनको टॉलरेट कर रहे हैं और उपस्थित लोग भौचक्के होकर सबकुछ देख सुन रहे हैं. पेटभर गाली चालीसा सुनाकर तस्लीमुद्दीन तमतमाते हुए कमरे से बाहर चले गए.

मैं भी अप्रत्याशित होनी का गवाह था. हिम्मत बटोरकर मैंने लालू यादव से पूछा, 'आपको लतखोर तक बनाकर आपके पूर्व मंत्री चले गए और आप चूं तक नहीं बोले?' लालू यादव का हाव-भाव और बॉडी लैंग्वेज साफ तौर पर बता रही थी कि वो तस्लीमुद्दीन की देहाती गाली से वैसे ही अप्रभावित हैं जैसे ‘चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग’.


मेरे प्रश्न का अपने स्वभाविक अंदाज में तत्कालीन बिहार के ‘राजा’ ने जवाब दिया 'जानते हो ई आदमी सीमांचल का गांधी है. जबतक धरती पर जिंदा रहेगा 4 लोकसभा और 23 विधानसभा का भाग्य अपनी जेब में रखे रहेगा. मरने के बाद इसका परिवार इसकी राजनीतिक कमाई को सात पुस्त तक खाएगा. गाली देकर गुस्सा निकाल लिया है. अब पार्टी नहीं छोड़ेगा'.

ये वाकया करीब 20 वर्ष पहले का है. जो दिल्ली के बिहार निवास के सीएम सूट में घटित हुआ था. तब राबड़ी देबी बिहार की मुख्यमंत्री थीं. लेकिन आज विधानसभा उपचुनाव के परिणाम को लेकर जो पॉलिटीकल डेवलपमेंट है उस संदर्भ में यह वाकया सौ प्रतिशत मौंजू है. ये वाकया बताता है कि जोकीहाट विधानसभा में राजद प्रत्याशी की जीत का सेहरा किसके सर बांधना न्यायोचित होगा. कौन जीता, कौन हारा? यकीनन मरहूम मोहम्मद तस्लीमुद्दीन की राजनीतिक खेती ने राजद को जीत का तगमा दिया, न की तेजस्वी यादव की सो कॉल्ड सियासी तेजी ने.

यह कहना किसी भी कोण से सही नहीं होगा कि विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने सीमांचल की जंग में सीएम नीतीश कुमार को दो बार पटक दिया. अप्रैल में हुए अररिया लोकसभा एवं अभी के जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में. राम नाम की तरह पूरे सीमांचल में तस्लीमुद्दीन नाम केवलम है.

1959 में सरपंच तथा 1964 में मुखिया बनकर राजनीति की शुरुआत करने वाले मोहम्मद तस्लीमुद्दीन सबसे पहले 1969 में जोकीहाट से विधानसभा में पहुंचे. इन्सीडेन्टली, अररिया जिले की इस विधानसभा का गठन भी 1969 में ही हुआ था. तब से अब तक यहां 14 बार विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं.

तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद इस सीट पर उनके परिवार के सदस्य को मिलने वाली जीत पर सवाल खड़े हो रहे थे, जिसे उनके छोटे बेटे ने जीत कर अपने विरोधियों को जवाब तो दे ही दिया. साथ ही साथ ये भी क्लीयर कर दिया कि उनके पिता की राजनीतिक पूंजी अभी बरकरार है.

जोकीहाट विधानसभा के अबतक हुए 14 चुनावों में नौ बार तस्लीमुद्दीन परिवार का कब्जा रहा है. पांच बार खुद मोहम्मद तस्लीमुद्दीन विधायक चुने गए जबकि चार बार उनके बेटे सरफराज ने भी जीत दर्ज की. सरफराज के लोकसभा में जाने के बाद ये सीट खाली हुई थी जिसे उनके भाई शहनवाज आलम ने जीत कर अपने परिवार का कब्जा बरकरार रहा.

सीमांचल के लोगों के दिल में मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के लिए कितना प्यार है इसका पता इस बता से चलता है कि वो जिस दल के उम्मीदवार रहे उसी दल ने बाजी मारी. 1977 और 1985 विधानसभा चुनाव में बतौर जनता पार्टी के प्रत्याशी विजयी बने तो 1995 एसेम्बली इलेक्शन में लालू प्रसाद से बकझक करके जनता दल छोड़कर भाग गए और बिहार में कम ख्यातिप्राप्त समाजवादी पार्टी के टिकट पर जंग फतह किए.

लालू यादव फिर मिलकर झट से जनता दल के टिकट पर 1996 में किशनगंज लोकसभा से चुने जाने के बाद देवगौड़ा की सरकार में गृह राज्य मंत्री बन गए. 2010 विधानसभा से ठीक पहले नीतीश कुमार के साथ भी रहकर सीमांचल के कई सीटों को जिताने का काम किया था.