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JNUSU चुनाव 2017: अबकी बार दिखेगा गर्ल्स पावर

यूनिवर्सिटी में इस बार के चुनावों में गायब छात्र नजीब और सीट कट का मुद्दा मुख्य रहेगा

Piyush Raj

जेएनयू यानी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनावों का बिगुल बज उठा है. लेफ्ट का गढ़ माने जाने वाले इस विश्वविद्यालय में इस बार यह चुनाव कई लिहाज से बहुत खास होने जा रहा है. 9 फरवरी, 2016 को होने वाली घटना के बाद यह दूसरा छात्रसंघ चुनाव है.

आम तौर पर जेएनयू छात्रसंघ में लेफ्ट बनाम लेफ्ट की ही लड़ाई रही है. एक-दो मौकों को छोड़कर दक्षिणपंथी छात्र संगठन एबीवीपी को यहां कभी कोई खास सफलता नहीं मिली है. लेकिन 9 फरवरी, 2016 को हुई एक घटना के बाद कैंपस की स्थिति बदल गई. इस तारीख को हुए एक कार्यक्रम के दौरान ‘देशविरोधी नारे लगाने’ और ‘देशद्रोह का आरोप’ तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार, महासचिव रामा नागा और जेएनयू के ही एक अन्य छात्र उमर खालिद सहित कई छात्रों पर लगा.


लेफ्ट यूनिटी से प्रेसिडेंट पद के लिए गीता कुमारी , उपाध्यक्ष पद के लिए सिमोन, जनरल सेक्रेटरी  पद के लिए दुग्गिराला ज्वाइंट सेक्रेटरी पद के लिए शुभांशु (दाएं से  बाएं)

इसके बाद कैंपस में लेफ्ट बनाम राइट की सीधी वैचारिक लड़ाई का माहौल बन गया. इससे पहले सितंबर, 2015 के छात्रसंघ चुनावों में एबीवीपी को करीब एक दशक के बाद छात्रसंघ के सेंट्रल पैनल में जीत मिली थी. इस चुनाव में एबीवीपी की तरफ से सौरभ शर्मा संयुक्त सचिव के पद पर चुने गए थे और एआईएसएफ के कन्हैया कुमार ने अध्यक्ष पद पर बाजी मारी थी, जबकि आइसा के तरफ से शेहला रशीद उपाध्यक्ष और रामा नागा महासचिव के पद पर चुने गए थे.

सितंबर, 2016 के जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में कभी धुर विरोधी माने जाने वाले आइसा और एसएफआई ने लेफ्ट यूनिटी बनाकर चुनाव लड़ा और भारी जीत हासिल की. हालांकि इस लेफ्ट यूनिटी में कन्हैया कुमार की एआईएसएफ और कभी सीपीएम की छात्र इकाई एसएफआई से अलग होकर बना डीएसएफ शामिल नहीं हुई थी. 2016 के इस चुनाव की दूसरी सबसे खास बात थी बापसा नामक संगठन का उभार.

दलित-बहुजन और अम्बेदकरवादी राजनीति के नाम पर उभरे इस संगठन का किसी भी राजनीतिक दल से सीधा-सीधा रिश्ता नहीं है. पिछले चुनावों में यह दल कैंपस की छात्र राजनीति में दूसरी बड़ी ताकत के रूप में उभरा था.

लेफ्ट का ही पलड़ा भारी रहेगा

इस बार जेएनयू छात्रसंघ के लिए 8 सितंबर को वोट डाले जाएंगे. इससे पहले 6 सितंबर को प्रेसिडेंशियल डिबेट होगा. इस बहस का इंतजार जेएनयू के छात्रों के साथ-साथ छात्र राजनीति में रुचि रखने वाले सभी लोगों को होता है.

ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ) की तरफ से अध्यक्ष उम्मीदवार अपराजिता राजा

इस बार अध्यक्ष पद के लिए 7 उम्मीदवार मैदान में हैं जिसमें सीपीआई के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद डी राजा की बेटी अपराजिता राजा एआईएसएफ की तरफ अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ रही हैं. अपराजिता जेएनयू में सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज में पीएचडी की स्टूडेंट हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ चुकी हैं. जेएनयू छात्रसंघ चुनावों में  भी वो 2 बार काउंसिलर पद के लिए लड़ चुकी हैं. हालांकि उन्हें एक बार भी सफलता नहीं मिली है. कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की तरफ से अध्यक्ष पद पर वृष्णिका सिंह मैदान में हैं.

एनएसयूआई की तरफ से अध्यक्ष पद की उम्मीदवार वृष्णिका सिंह यादव, ज्वाइंट सेक्रेटरी के लिए अली मुद्दीन खान, जनरल सेक्रेटरी के लिए प्रीति ध्रुवे, वाइस प्रेसिडेंट के लिए फ्रांसिस लालरेम सियाम

इस बार आइसा और एसएफआई के साथ-साथ डीएसएफ भी लेफ्ट यूनिटी पैनल में शामिल है. शुरू में एआईएसएफ के भी इस यूनिटी में शामिल होने की संभावना थी लेकिन सूत्रों की मानें तो पद और सीटों को लेकर आम सहमति नहीं बन पाई. एआईएसएफ अध्यक्ष पद के साथ-साथ संयुक्त सचिव पद पर भी लड़ रहा है. इस पद के लिए एआईएसएफ की तरफ से मेहदी हसन मैदान में हैं.

कैडर वोटों और संख्या बल के अनुसार इस बार भी लेफ्ट यूनिट का पलड़ा अभी तक भारी माना जा रहा है. लेफ्ट यूनिटी की तरफ से आइसा की गीता कुमारी अध्यक्ष पर अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं.

आंतरिक विवाद से जूझ रही है जेएनयू की एबीवीपी

गीता जेएनयू से फ्रेंच भाषा में बीए करने बाद फिलहाल जेएनयू के ही सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज से एमफिल कर रही हैं. वो दो बार स्कूल ऑफ लैंग्वेज से कौंसिलर भी रह चुकी हैं और जेएनयू में यौन उत्पीड़न की घटनाओं की जांच करने वाले जीएसकैश के लिए भी चुनाव जीत चुकी हैं. हरियाणा से आने वाली गीता के पिता सैनिक हैं.

लेफ्ट यूनिटी के तरफ से उपाध्यक्ष पद के लिए आइसा की सिमोन जोया खान, महासचिव पद के लिए एसएफआई के दुग्गिराला श्रीकृष्णा और संयुक्त सचिव पद पर डीएसएफ के सुभांशु सिंह मैदान में हैं.

उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट

लेफ्ट यूनिटी को इस चुनाव में सबसे कड़ी टक्कर बापसा (बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट एसोसिएशन) से मिलने की उम्मीद है. उसकी तरफ से अध्यक्ष पद पर शबाना अली, उपाध्यक्ष के लिए सुबोध कुमार, महासचिव पद पर करम विद्यानाथ खुमान और संयुक्त सचिव पद पर विनोद कुमार अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. शबाना वाराणसी की रहने वाली हैं और जेएनयू के स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स से पीएचडी कर रही हैं.

बापसा की तरफ से अध्यक्ष पद पर शबाना अली, उपाध्यक्ष के लिए सुबोध कुमार, महासचिव पद पर करम विद्यानाथ खुमान और संयुक्त सचिव पद पर विनोद कुमार (बाएं से दाएं)

पिछले दो बार से मजबूत दावेदारी पेश कर रही एबीवीपी इस बार आतंरिक विवाद से जूझ रही है. एबीवीपी के तरफ से निधि त्रिपाठी अध्यक्ष पद के लिए, दुर्गेश कुमार उपाध्यक्ष के लिए, निकुंज मकवाना महासचिव पद के लिए और पंकज केशरी संयुक्त सचिव पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. लेकिन एबीवीपी को इस बार अपने सबसे मजबूत गढ़ माने जाने साइंस स्कूल से ही चुनौती मिल रही है.

लापता छात्र नजीब और कम सीटों का मुद्दा रहेगा हावी

एबीवीपी से विद्रोह करके साइंस स्कूल के गौरव कुमार अध्यक्ष पद पर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. संयुक्त सचिव पद पर उनके ही एक साथी शिवेंद्र कुमार पांडेय ताल ठोक रहे हैं. सूत्रों की मानें तो इन दोनों उम्मीदवारों को जेएनयू के ही एक प्रोफेसर का सहयोग मिल रहा है. ये प्रोफेसर आरएसएस के करीब माने जाते हैं. फिर भी जेएनयू में एबीवीपी को छात्रों के एक खास हिस्से का समर्थन मिलते रहा है.

एबीवीपी के उम्मीदवार

देशद्रोह का आरोप झेल रहे छात्र उमर खालिद की पार्टी BASO (भगत सिंह अंबेडकर स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन) भी मैदान में है. हालांकि सेंट्रल पैनल के लिए उनकी पार्टी की ओर से कोई उम्मीदवार नहीं है लेकिन काउंसिलर पद के लिए उन्होंने दो उम्मीदवार खड़े किए हैं.

इस बार के चुनावों में गायब छात्र नजीब और सीट कट का मुद्दा मुख्य रहेगा. सभी पार्टियों और उम्मीदवारों ने अपने-अपने घोषणापत्र में इसे अपनी जगह दी है. इसके साथ-साथ हॉस्टल और स्टूडेंट्स के अन्य मुद्दों के साथ-साथ विचारधारा की लड़ाई सबसे अहम होगी.

बहरहाल अंतिम बाजी किसके हाथ लगेगी इसका पता 9-10 सितंबर तक ही लग पाएगा. हालांकि वोटों की गिनती 8 सितंबर को ही देर रात शुरू हो जाएगी लेकिन जेएनयू में बैलेट पेपर पर वोटिंग होती है, इस वजह से परिणाम आने में एक-दो दिन का वक्त लग जाता है.