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जेएनयू छात्रसंघ चुनाव: कैंपस से क्यों गायब हैं कन्हैया कुमार!

कन्हैया की गैरहाजिरी इसलिए भी चर्चा का विषय हैं क्योंकि वो जिस छात्र संगठन एआईएसएफ के बैनर से वह छात्रसंघ में चुने गए थे वह भी इन चुनावों में शिरकत कर रही है

FP Staff

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव अपने चरम पर है और जेएनयू के सबसे चर्चित चेहरा कन्हैया कुमार इस चुनाव से दूर हैं. कन्हैया ने सितंबर 2015 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष पद का चुनाव सिर्फ प्रेसिडेंशियल  डिबेट के दम पर जीत लिया था.

इसके बाद कैंपस में 9 फरवरी, 2016 को हुई घटना के बाद उनपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ और उनकी गिरफ्तारी भी हुई. इसके बाद कन्हैया के पुराने भाषण और उनका आजादी का नारा पूरे देशभर में प्रसिद्ध हो गया था.


जेएनयू छात्रसंघ में अब तक जितने भी लोग चुने गए हैं, उनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध कन्हैया कुमार ही हुए हैं. जेल से छूटने के बाद कन्हैया कुमार ने जेएनयू में जो भाषण दिया था, उसे देशभर की मीडिया ने लाइव दिखाया था. इस भाषण के बाद कन्हैया के नाम घर-घर में चर्चित हो गया था.

कन्हैया आज भी मीडिया की सुर्खियों में छाए रहते हैं. उन्होंने अपने अनुभवों पर ‘बिहार से तिहाड़’ नामक किताब भी लिखी है. टीवी चैनलों पर होने वाले बहसों में अक्सर उन्हें आप देख सकते हैं.

क्या है कन्हैया कुमार के न होने की वजह

इतने प्रसिद्ध व्यक्ति का जेएनयू के छात्रसंघ चुनाव में न रहना नए-पुराने दोनों तरह के छात्रों को अखर रहा है. स्टूडेंट्स आपस में इस पर बातचीत भी कर रहे हैं और अलग-अलग कयास भी लगा रहे हैं. कन्हैया की गैरहाजिरी इसलिए भी चर्चा का विषय हैं क्योंकि वो जिस छात्र संगठन यानी एआईएसएफ के बैनर से छात्रसंघ में चुने गए थे वह भी इन चुनावों में शिरकत कर रही है. एआईएसएफ और जेएनयू कैंपस में लंबे समय से सक्रिय और सीपीआई नेता डी राजा की बेटी अपराजिता अध्यक्ष पद पर लड़ रही हैं और संयुक्त सचिव पद पर मेहदी हसन अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.

कन्हैया सार्वजनिक रूप से कई बार यह कह चुके हैं कि वे सीपीआई के सदस्य नहीं हैं लेकिन एआईएसएफ के सदस्य हैं. कन्हैया जैसे फेमस छात्र नेता का रहना इन चुनावों में एआईएसएफ के लिए फायदेमंद रहता.

जब कुछ पत्रकारों ने अपराजिता से कन्हैया के छात्रसंघ चुनाव में नहीं दिखने की वजह पूछी तो उनका कहना था कि कन्हैया कुमार एआईएसएफ और सीपीआई के यूथ विंग एआईवाईएफ द्वारा 15 जुलाई से 12 सितंबर तक देशभर में चलाए जा रहे छात्र-युवा यात्रा में व्यस्त हैं और वे उनके लिए भी वक्त निकालकर प्रचार करने आएंगे.

अपराजिता के इस बयान में भले ही ऊपरी तौर पर सच्चाई हो लेकिन यह भी एक परंपरा रही है कि जेएनयू छात्रसंघ चुनावों के दौरान सभी प्रमुख छात्र संगठनों के नए-पुराने नेता अन्य संगठनात्मक कामों को छोड़कर चुनाव अभियान में लगते हैं. यहां तक कि पार्टी द्वारा भी इसी तरह का निर्देश दिया जाता है.

ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ) की तरफ से अध्यक्ष उम्मीदवार अपराजिता राजा.

ऐसे में कन्हैया के गायब रहने की असली वजह अपराजिता से उनके वैचारिक मतभेदों को माना जा रहा है. हालांकि दोनों ने खुलकर कभी भी एक-दूसरे के खिलाफ कुछ नहीं कहा है लेकिन अंदरखाने से हमेशा इनके बीच मतभेद होने की खबरें उड़ती रहती हैं.

इसके साथ-साथ यह भी कहा जा रहा है कि कन्हैया कुमार को यह डर है कि अगर उनका संगठन एआईएसएफ जेएनयू छात्रसंघ के इस चुनाव में हार गया तो उनकी छवि को नुकसान हो सकता है. एआईएसएफ की हार का मतलब होगा उनके करिश्माई व्यक्तित्व पर एक सवालिया निशान और कन्हैया यह नहीं चाहते हैं.

इस वजह से हर तरह की अफवाहों पर लगाम लगाने के लिए हो सकता है कि कन्हैया कुमार आखिरी एक-दो दिनों में प्रचार के लिए आएं. इससे उनके ऊपर हार की जिम्मेवारी भी नहीं आएगी और अंदरुनी मतभेद की खबरें भी इससे खारिज हो जाएंगी.

क्यों अखर रही है कन्हैया की गैरहाजिरी

ऐसा करके कन्हैया कुमार अपनी छवि को भले बचा ले जाएं लेकिन जो लोग जेएनयू को करीब से जानते हैं उनका मानना है कि कन्हैया को इन चुनावों में शुरू से रहकर अपराजिता का प्रचार करना चाहिए था. चाहे किसी भी तरह का राष्ट्रीय अभियान हो जेएनयू के बड़े नेता कभी भी चुनावों के वक्त कैंपस से दूर नहीं रहते हैं. वो यथासंभव अपनी पार्टी के लिए वोट बटोरने की कोशिश करते हैं.

पिछले साल अंदरुनी मतभेद की वजह से एआईएसएफ ने चुनाव में शिरकत नहीं की थी. यह बहुत ही अद्भुत बात थी क्योंकि जेएनयू में पहली बार ऐसा हुआ था कि जिस पार्टी का पिछले चुनावों में अध्यक्ष बना हो वो अगले चुनाव लड़ी ही नहीं.

कन्हैया की गैरहाजिरी इस लिए भी लोगों को नागवार लग रही है क्योंकि लेफ्ट यूनिटी के लिए शेहला रशीद प्रचार अभियान में लगी हैं. शेहला भी एक चर्चित चेहरा हैं और जेएनयू के स्टूडेंट्स के बीच उनकी अच्छी पैठ भी है. लेफ्ट यूनिटी को इसका फायदा भी मिल रहा है. इसी तरह उमर खालिद भी अपने संगठन के लिए पूरे जोरशोर से लगे हैं.

कई स्टूडेंट्स का मानना है कि कन्हैया के रहने से अपराजिता के लिए चुनाव जीतने की संभावना बढ़ती. कन्हैया अभी भी जेएनयू के छात्र हैं और अपने भाषणों से वो नए-पुराने छात्रों को एआईएसएफ की ओर खींच सकते थे.