view all

जेएनयू की जंग: सोशल मीडिया बना जेएनयू कल्चर का नया ढाबा

जेएनयू के हर हॉस्टल में रूम टू रूम वाई फाई पहुंच जाने से सब वार रूम में बदल गया है

Jainendra Kumar

जेएनयू चुनाव के नजदीक आते ही सभी दलों ने एक दूसरे पर आक्रमण शुरू कर दिया है. सोशल मीडिया जेएनयू कल्चर का नया ढाबा बन चुका है. रूम टू रूम वाई फाई पहुंच जाने से सब वार रूम में बदल गया है. ब्रह्मपुत्र सतलुज पर आक्रमण करता है तो मुनिरका उसके बचाव में आता है और अगर साबरमती से कुछ पोस्ट होता है तो गंगा और नर्मदा उसके बचाव में आ जाता है. झेलम, पेरियार, ताप्ती, चंद्रभागा सहित सब हॉस्टल इसमें शामिल है. इस खेल में सभी पार्टियां शामिल हैं.

आक्रमण के तीन कोण हैं. लेफ्ट यूनिटी, बापसा और एबीवीपी. सब एक दूसरे पर आक्रमण कर रहे हैं. एबीवीपी जेएनयू ने 'मैं वामपंथ बोल रहा हूं नाम से एक ऑडियो क्लिक अपने पेज पर शेयर किया है जिसमें अपनी बात को वामपंथ के सहारे कहने की कोशिश की है. एबीवीपी के सोनू सांग का जेएनयू वर्जन भी लोग खूब सुन रहे हैं. डीयू की आइसा ने भी एबीवीपी पर सोनू सांग बनाया है जो जेएनयू में भी खूब चल रहा है. बापसा के समर्थक फेसबुक पर लेफ्ट के खिलाफ हल्ला बोले हुए हैं. लेफ्ट में आइसा सबसे मुखर होकर डिफेंस और अटैक कर रही.


'कन्हैया कोई सनी लियोनी थोड़े है' 

यूजीबीएम प्रेसिडेंटसियल डिबेट के ठीक एक दिन पहले होता है और एक तरह से उसका रिहर्सल भी होता है. इसमें उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव अपनी बात छात्रों के सामने शेयर करते हैं.

इस बार यूजीबीएम थोड़ा लेट से शुरू हुआ और फिर अचानक थम भी गया. बापसा ने इलेक्शन कमीशन पर भेदभाव का आरोप लगाया. उसका आरोप था कि कमीशन सिर्फ उनके उम्मीदवार को बोलने के दौरान टोक रही थी. इलेक्शन कमीशन का कहना है कि बापसा वालों ने इस बात को लेकर उनके साथ बदतमीजी की. इलेक्शन कमीशन ने माफी मांगने को कहा. बापसा भी अड़ी रही. फिर बापसा ने आश्वस्त किया कि हम आगे इलेक्शन कमीशन को कोआपरेट करेंगे तब जाकर 3 घंटे बाद फिर से यूजीबीएम शुरू हुआ.

यूजीबीएम में आम तौर पर काम भीड़ होती है. लेकिन माहौल मेले जैसा होता है. हम भी मेले में घूम रहे थे. एक कोने में कई लोग खड़े थे. एक ने कहा कि कन्हैया आ गया है अपराजिता को फायदा होगा. दूसरे ने कुछ कैलकुलेट करते हुए कहा कि 100 वोट कम हो जाएगा उसके आने से.

तीसरे ने भी पहले को निशाने पर ले लिया और कहा कि कन्हैया कोई सनी लियोनी थोड़े है कि उसके आने से माहौल बन जाएगा. कन्हैया का नापसंद करने वाले जितना बाहर हैं उतना कैंपस में भी हैं लेकिन दोनों की वजह दूसरी है.

यूजीबीएम में पहले संयुक्त सचिव, फिर सचिव और अंत में उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार बोलते हैं . बोलने के बाद सबके बीच आपस में प्रश्नोत्तर का भी सेशन होता है .

एनएसयूआई इस कैम्पस की सबसे कमजोर पार्टी है. जब उनकी सचिव पद की उम्मीदवार ने अच्छा भाषण दिया तो एनएसयूआई का खेमा ताली बजाने लगा लेकिन बाकी लोग शांत रहे. एनएसयूआई के सन्नी धीमान ने झेंप मिटाने के लिए नारा लगाया

'देखो कैसे पड़ गया ठंढा'

जिसका अगली पंक्ति होनी थी- खाकी निकर भगवा झंडा. लेकिन कोई आवाज कहीं से नहीं आई. यही दृश्य जेएनयू में एनएसयूआई की सच्चाई है.

एबीवीपी के सचिव पद के उम्मीदवार जब प्रश्नोत्तर सेशन में माइक पर आए तो समर्थकों ने नारा लगाया:

वामपंथ का गया जमाना

निकुंज मकवाना निकुंज मकवाना .

लेकिन जैसे ही फिर से इस नारे को दुहराया तो बापसा ने अपना दावा पेश कर दिया:

वामपंथ का गया जमाना

नाम शबाना नाम शाबाना

बापसा का उत्साह

सबसे मजेदार दृश्य तब होता है जब किसी पार्टी का उम्मीदवार अच्छा बोल नहीं पा रहा लेकिन अचानक कोई अच्छी बात बोल जाता है तो उसके समर्थक ताली पीटते पीटते जान बेघर कर देता है . इस चुनाव में बापसा का उत्साह कहें या अतिउत्साह लेकिन वह ताली पीटने में सबसे आगे है .

लेफ्ट यूनिटी इस चुनाव में सबसे समझदारी का परिचय दे रही है. उनका खेमा पिछले साल की तुलना में संयमित दिखा. नए कैडर भले की आक्रमक हों लेकिन पुराने लोग रणनीति में बिजी लगे.

लेफ्ट लगातर यूनियन में रहा है इसका नुकसान भी उसे है. सारा आरोप उसी के ऊपर लग रहा. उसे अपनी आप भी कहनी है और जवाब भी देना है. पिछले साल लेफ्ट बापसा पर कम आक्रमण कर रही थी लेकिन इस बार उसे बापसा से भी भिड़ना पड़ रहा है. लेफ्ट पर आरोप लगता रहा है कि वो एबीवीपी को रोकने के नाम पर प्रोग्रेसिव लोगों का वोट ले लेती है लेकिन अब उनके पास ऑप्शन बढ़ गए हैं. लेफ्ट पर अपना गढ़ बचाने का दवाब है.

इस बीच एनएसयूआई के उम्मीदवार से किसी ने पूछा कि आप एबीवीपी से अलग कैसे हैं? ( प्रश्नोत्तर सेशन में कुछ प्रश्न छात्रों की तरफ से भी पूछे जाते हैं ) अचानक आए इस आफत प्रश्न का जवाब देने में उम्मीदवार के पसीने निकल आए.

एबीवीपी के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार दुर्गेश शुरू से ही गुस्से में लाल थे. अगर यह जेएनयू ना होता तो मारपीट भी हो सकती थी. उन्होंने कई बार गुस्से में चुप रहो- चुप रहो कह के लेफ्ट यूनिटी को डराने-धमकाने की कोशिश की लेकिन लेफ्ट खेमा ने भी अपना प्रतिकार जारी रखा. इसके बाद उन्होंने खुद को दलित बताते हुए सहानुभूति बटोरना चाहा.

जेएनयू की छात्र राजनीति में एक प्रश्न बहुत अनसुलझा सा है कि क्यों एबीवीपी चुनाव के समय खुद का बीजेपी से कोई संबंध स्वीकार ही नहीं करती? वो खुद को बीजेपी से पुराना कहती है और खुद को बीजेपी से अलग मानती है. दुर्गेश ने भी कठिन प्रश्न के जवाब में एबीवीपी को बीजेपी की छात्र इकाई मानने से इंकार कर दिया.

एनएसयूआई के फ्रांसिस बोलते- बोलते अटक गए. उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि मैं नर्वस हो रहा हूं. इसके बाद जो हुआ वही जेएनयू का कल्चर है. सभी पार्टियों ने तालियां बजा कर उनका हौसला बढ़ाया और कहा आगे बोलने को कहा.

लेफ्ट यूनिटी की सधी रणनीति

लेफ्ट यूनिटी की रणनीति को समझने के लिए उनकी उपाध्यक्ष पद की उम्मीदवार सिमोन जोया खान पर ध्यान दीजिए . बहुत ठहर कर आराम से अपनी बात कहना. धीमी शुरूआत लेकिन अंत अटैकिंग. सीट कट पर बहुत अपील करती भाषा में सरकार और एबीवीपी को घेरा.

बापसा के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार सुबोध ने 'अपनी बात कहने से पहले' ही रोहित वेमुला और मुथुस्वामी को लेकर सरकार पर आरोप लगाया. बार बार ओपरेस्ड शब्द का प्रयोग किया और कहा अब हमें लेफ्ट पर भरोसा नहीं रहा. एबीवीपी ने बीच में शंख बजाया तो कहा कि तुम्हारे शंख का जवाब आने वाले समय में हमारा नगाड़ा देगा.

रात एक बजे तक यूजीबीएम खत्म हुआ. सब लोग हॉस्टल जा चुके थे. बापसा वाले अब भी वहीं जुटे थे. पूछने पर पता चला कि बुधवार के प्रेसिडेंसियल डिबेट में आगे की जगह पर अपना दावा करने के लिए सब पार्टी ऐसा करती हैं. बापसा के कुछ लोग वहीं सो गए ताकि कल आगे की जगह सुरक्षित रहे. राजनीति के मैदान जब खेल खत्म हुआ जान पड़ता है असली खेल तो तब ही शुरू होता है. आज पता चला.

अब जेएनयू के फेमस प्रेसिडेंसियल के बारे में जानने के लिए बने रहिए फ़र्स्टपोस्ट के साथ.