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जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष: आइसा की गीता कुमारी की ये दिलचस्प बातें क्या आप जानते हैं!

गीता का पूरा फोकस महिला आंदोलन, लिंगभेद और सेक्सुएलटी जैसे मुद्दों पर रहेगा

FP Staff

'नारी मुक्ति, सबकी मुक्ति

सबकी मुक्त, जिंदाबाद'


जेएनयू छात्रसंघ की नई अध्यक्ष गीता कुमारी का यही नारा है. जेएनयू छात्रसंघ के परिणाम रविवार को सुबह 2 बजे घोषित हुए. लेफ्ट यूनिटी के तरफ से आइसा की गीता कुमारी नई छात्रसंघ अध्यक्ष चुनी गई हैं.

गीता कुमारी पानीपत, हरियाणा की रहने वाली है. उन्होंने जेएनयू से फ्रेंच में बीए फिर आधुनिक इतिहास में एमए किया है. फिलहाल वो आधुनिक इतिहास में एमफिल के दूसरे साल में हैं.

उनके पिता सेना के ऑर्डिनेंस विभाग में जेसीओ हैं. इलाहाबाद और असम के आर्मी स्कूल में पढ़ाई की है. वह जेएनयू में दो बार काउंसलर भी रह चुकी हैं. जेंडर सेल में दो छात्र प्रतिनिधि का चयन चुनाव से होता है.यह चुनाव भी बहुत हद तक जेएनयू छात्रसंघ चुनाव जैसा ही होता है. गीता 2015 में जेएनयू के जेंडर सेल में रह चुकी हैं. उस वक्त भी वह पहले नंबर पर थी.

जीतने के बाद फ़र्स्टपोस्ट से अपनी बातचीत में गीता ने कहा कि वह सोसाइटी को बेहतर करने के लिए छात्र राजनीति और आइसा से जुड़ी हैं. उनका कहना है कि वो देश में युवाओं के विकास के लिए पॉलिसी लेवल पर बदलाव चाहती हैं.

क्या चाहती हैं गीता कुमारी 

गीता का कहना है कि जेएनयू को शोध के लिए जाना जाता है. यहां इसकी सीटें बढ़ाने के बदले सरकार ने इसकी संख्या घटा दी. वह इसकी संख्या बढ़ाने की मांग करेंगी. इसके अलावा यूनिवर्सिटी में सेक्सुअल हरासमेंट सेल के नौ सदस्यों में पांच पुरुष और चार महिलाएं हैं. इस अंतर को पाटना है. इसमें महिलाओं की संख्या बढ़नी चाहिए.

इसके अलावा महिला आंदोलन, लिंगभेद, सेक्सुएलिटी जैसे विषयों पर लगातार बात होगी. एक फोरम तैयार किया जा रहा है. यह कविता कृष्णन और सुचेता डे के दिशा निर्देश में हो सकता है.

'यूथ की अवाज' वेबसाइट को दिए साक्षात्कार में गीता कुमारी ने कहा था कि पिछली बार सेंट्रल कमेटी में एबीवीपी को एक सीट मिल गई थी. यह हमारे लिए चिंता की बात थी. उस वक्त भी डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन (डीएसएफ) को लेफ्ट यूनिटी में शामिल होने को कहा गया था. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

इस बार भी उनको बुलाया गया और बताया कि अगर अब भी हम एक नहीं हुए तो फासिस्ट सरकार के विरोध के लिए जो एक मंच बचा है वह भी खतरे में पड़ जाएगी. क्योंकि वाइस चांसलर और एवीबीपी एक ही माइंडसेट के साथ काम कर रहे हैं, ऐसे में तो यूनिवर्सिटी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी चुनाव 12 सितंंबर को होने जा रहे हैं. आइसा वहां तीसरी बड़ी पार्टी है. ऐसे में जेएनयू में मिली इस जीत को आईसा के सदस्य वहां भी भुनाने की पुरजोर कोशिश करेंगे.