view all

एनडीए को मझधार में छोड़ मांझी ने थामा महागठबंधन का किनारा, अब किसकी बारी?

आखिर जीतनराम मांझी अटकलों में कब तक अपनी सियासत का भविष्य देखें, एक फैसला उनको लेना था सो ले लिया

Amitesh

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी के ऐलान ने बिहार की सियासत में खलबली मचा दी है. पटना में लालू यादव के दोनों बेटों तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव से मुलाकात के बाद मांझी ने एनडीए छोड़कर महागठबंधन में शामिल होने का ऐलान कर दिया.

बार-बार बदलते अपने बयानों के लिए जाने-जाने वाले जीतनराम मांझी इस बार अपने बयान पर अटल दिख रहे हैं. हालाकि उनके एनडीए छोड़ने की अटकलें पहले से ही लग रही थीं. जीतनराम मांझी को लगने लगा था कि अब उन्हें वो महत्व नहीं दिया जा रहा है जिसके वो हकदार हैं. यही वजह है कि मांझी को जब महागठबंधन में अपनी सियासी नैया के लिए किनारा दिखा तो उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ने का फैसला कर ही लिया.


एनडीए से मांझी का मोहभंग क्यों हुआ ?

जीतनराम मांझी एनडीए के भीतर अपनी उपेक्षा से परेशान चल रहे थे. खासतौर से नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी के बाद उन्हें लगने लगा कि बीजेपी में उनकी अहमियत धीरे धीरे कम होती जा रही है. जिस सम्मान के वो कभी हकदार हुआ करते थे वही सम्मान अतीत की बात हो चली थी.

पिछले साल जुलाई में नीतीश कुमार के नेतृत्व में फिर से एनडीए सरकार बनने के वक्त भी उनका दर्द झलक गया था जब रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को एलजेपी कोटे से नीतीश सरकार में मंत्री पद की शपथ दिला दी गई. उस वक्त वो किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. जीतनराम मांझी को या उनके बेटे को या फिर उनकी पार्टी के किसी भी सदस्य को सरकार में जगह नहीं मिली. हालाकि जीतनराम मांझी अपनी पार्टी के इकलौते विधायक हैं.

रही-सही कसर इस बार विधानसभा उपचुनाव के दौरान पूरी हो गई. जहानाबाद और भभुआ विधानसभा के साथ-साथ अररिया में लोकसभा का उपचुनाव 11 मार्च को हो रहा है. जीतनराम मांझी जहानाबाद सीट पर दावा कर रहे थे. लेकिन, यहां भी उनके दावे को दरकिनार कर जेडीयू के खाते में सीट दे दी गई.

अभी 23 मार्च को बिहार की 6 सीटों पर राज्यसभा का चुनाव होना है. लेकिन, एनडीए की तरफ से जीतनराम मांझी को इस बार भी किसी तरह का भरोसा नहीं दिख रहा है. क्योंकि 6 में से तीन सीटों पर ही एनडीए की जीत हो सकती है. संख्या बल के हिसाब से बीजेपी के खाते में एक और जेडीयू के खाते में दो सीटें जा सकती हैं. ऐसे में मांझी की पूछ राज्यसभा चुनाव में भी नहीं दिख रही थी.

हालाकि पहले कई बार इस बात की अटकलें लगती रही हैं कि जीतनराम मांझी को एनडीए की तरफ से राज्यसभा भेजा जा सकता है या फिर किसी राज्य का गवर्नर बनाया जा सकता है. लेकिन, इन अटकलों के बावजूद मांझी को निराशा ही लगी.

दूसरी तरफ, उनके बेटे संतोष मांझी को भी विधान परिषद में भेजने को लेकर कोई आश्वासन नहीं मिल पाया है. मांझी को इस बात का एहसास हो गया था कि लोकसभा चुनाव के वक्त भी एनडीए में उनको उस तरह की तवज्जो नहीं मिलेगी जिसकी उम्मीद पाल कर वो बैठे हैं.

महागठबंधन के लिए क्या हुई डील ?

उधर, चारा घोटाले के मामले में जेल जाने के बाद लालू यादव परेशान हैं. लालू को डर अपने दोनों बेटों के राजनीतिक भविष्य को लेकर है. नीतीश कुमार के साथ छोड़कर बीजेपी से हाथ मिलाने को लालू परिवार पचा नहीं पा रहा है. नीतीश कुमार को पटखनी देने से ज्यादा लालू यादव को अपना कुनबा और किला बचाए रखने की चिंता सता रही है.

लालू को मालूम है कि महज माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण से ही बिहार की सियासत को नहीं साधा जा सकता है. यह आंकड़ा लगभग 30 फीसदी के आसपास ही पहुंचता है. ऐसे में कोशिश दलित –महादलित समुदाय के मांझी को साधकर दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश की जा रही है.

पिछले दिनों 'हम' के प्रदेश अध्यक्ष वृषिण पटेल ने लालू यादव से रांची जाकर जेल में मुलाकात की थी. उस वक्त इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया गया था लेकिन, उस वक्त से ही कयास लगने शुरू हो गए थे.

हालाकि किसी तरह की डील पर अभी मांझी कुछ नहीं बोल रहे हैं. लेकिन, सूत्रों के मुताबिक, महागठबंधन में शामिल होने के बाद 'हम' पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वृषिण पटेल और जीतनराम मांझी के बेटे संतोष मांझी को विधान परिषद में भेजने पर सहमति बन गई है. हो सकता है कि जीतनराम मांझी को भी राज्यसभा का टिकट मिल जाए.

आगे किसकी बारी?

जीतनराम मांझी के एनडीए छोड़ने के बाद अब अटकलों का बाजार गर्म है. खासतौर से पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के बयान के बाद आरएलएसपी को लेकर अटकलें लग रही हैं. राबड़ी देवी ने जीतनराम मांझी के महागठबंधन में शामिल होने के बाद कहा है कि उपेंद्र कुशवाहा भी जल्द महागठबंधन के साथ होंगे.मांझी के फैसले से उत्साहित तेजस्वी यादव ने भी जेडीयू के कई विधायकों के साथ आने का दावा किया है.

आरएलएसपी की तरफ से जीतनराम मांझी के एनडीए छोड़ने पर कोई औपचारिक बयान नहीं आया है लेकिन, आरएलसपी के महासचिव अभयानंद सुमन ने न्यूज 18 से बातचीत के दौरान कहा कि अब बीजेपी की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वो एनडीए के छोटे घटक दलों की बातों को सुने. आरएलएसपी नेता का बयान अपने-आप में एनडीए के भीतर की हलचल को बता रहा है.

शिक्षा सुधार को लेकर पूरे बिहार में मानव श्रृंखला बनाने के वक्त भी एनडीए के नेताओं की गैरमौजूदगी और आरजेडी नेताओं की आरएलसपी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के साथ मौजूदगी के बाद भी अटकलें लग रही थीं. लेकिन, अभी आरएलएसपी वेट एंड वाच की स्थिति में है.

हालांकि बीजेपी अभी जीतनराम मांझी पर संभलकर बोल रही है. लेकिन, जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने मांझी पर हमला बोलते हुए कहा है कि 'जो आदमी नीतीश कुमार का नहीं हआ जिसे उन्होंने मुख्यमंत्री बनाया तो वो किसी और का क्या होगा'?

फिलहाल बिहार में चल रहे शह और मात के खेल में मांझी एक ऐसे मोहरे बने हैं जिनके दम पर आरजेडी पहली बाजी जीतने का दावा कर रही है. लेकिन, अभी कई और मोहरे हैं जो अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. अभी तो ये राज्यसभा चुनाव के पहले की सरगर्मी है, लोकसभा चुनाव के वक्त कहानी कुछ और रोचक होगी.