view all

झारखंड : नहीं चलेगा ब्रिटिश कालीन गाउन, पहनना होगा पारंपरिक परिधान

राज्यपाल सह कुलाधिपति के इस निर्णय के बाद एक मजेदार बहस जरूर छिड़ गई है.

Brajesh Roy

न्यू इंडिया, स्किल्ड इंडिया और स्टार्टअप इंडिया के दौर में झारखंड ने बढ़िया स्टार्ट लेने का फैसला लिया है. यह स्टार्ट अपनी सभ्यता और संस्कृति को सम्मान देने के साथ अनुकूल भी है. जो स्टार्ट लिया है झारखंड ने वो है अब नहीं चलेगा ब्रिटिश कालीन गाउन, दीक्षांत समारोह में छात्र छात्राएं पहनेंगे पारंपरिक परिधान . इस मसले पर देश भर में चल रही तमाम कयास और कवायदों को पीछे धकेलते हुए राज्य की राज्यपाल सह कुलाधिपति डॉ. श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने दीक्षांत समारोह के लिए तत्काल प्रभाव से लागू फरमान को जारी कर दिया है.  'झारखंड में किसी भी होने वाले दीक्षांत समारोह में पारंपरिक परिधान को पहनना आवश्यक है.'

इस फरमान के बाद से कम से कम झारखंड में दीक्षांत समारोह के दौरान काले गाउन में सजे छात्र छात्राओं को डिग्री लेने के बाद कैप उछालते अब नहीं देखा जा सकता. हां, यह देखना भी मनोरंजक होगा जब छात्र छात्राएं डिग्री लेने के लिए धोती कुर्ता और साड़ी पहनकर मंच पर नजर आएंगे. डिग्री लेने के बाद अपनी खुशियों को जाहिर करने का अब तक चले आ रहे पारंपरिक अंदाज में भी बदलाव देखना दिलचस्प होगा. दरअसल ब्रिटिश हुकूमत के समय से डिग्रीधारकों के इस फैशन पर अब झारखंड ने पूर्ण विराम लगा दिया है.


सेल्फी इंडिया के इस दौर में क्यों न हो कैंपस में चर्चाएं

राज्यपाल सह कुलाधिपति के इस ऐतिहासिक फरमान के बाद से कॉलेज और यूनिवर्सिटी कैम्पस में सबसे ज्यादा चर्चाएं हो रहीं है. चर्चा लाजिमी भी है. अब तक पढ़ाई की डिग्री लेने के सपनों में सिर्फ ब्रिटिश गाउन ही तो छात्र देखते आए हैं. अचानक से इस बदलाव को छात्र-छात्राएं अपनी परंपरा का हिस्सा अब कैसे मान लें. रांची यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष तरुण कुमार कहते हैं, 'सेल्फी के इस स्किल्ड इंडिया दौर में धोती कुर्ता और साड़ी पूजा पाठ के दौरान ही शोभा देते हैं. बचपन से हमलोगों ने गाउन में डिग्री लेते और फिर कैप उछालते हुए खुद को सपनों में देखा है.'

नेहा कुमारी दर्शन शास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहीं हैं. नेहा ने कहा, 'आप ही बताइए कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी कैंपस में कितनी लड़कियों को आपने साड़ी में देखा ? आज के न्यू इंडिया के दौर में गर्ल्स तो क्या शादीशुदा हाउस वाइफ भी शायद ही साड़ी में दिखाई देती हों, फिर हमारे ऊपर यह सब कुछ क्यों थोपा जा रहा है ?' छात्र-छात्राओं की ये प्रतिक्रिया अपनी परंपरा और उसकी भावना के खिलाफ नहीं है लेकिन अचानक से आये पारंपरिक परिधान के साथ डिग्री जे फरमान को सेल्फी दौर फ्रेम में सजा पाने में थोड़ा असहज जरूर महसूस कर रहा है ।

परंपरा के अनुकूल विरोध की राजनीति शुरू

यूथ इंडिया के दिल के फ्रेम में इस बदलाव को सेट होने में थोड़ा वक्त लग सकता है. लेकिन दिलचस्प पहलू तो यह भी है कि राजनीति के चश्मे से समाज को देखने वालों की प्रतिक्रियाएं आने लगीं हैं. बीजेपी इस बदलाव को अपनी परंपरा और संस्कृति के अनुकूल ऐतिहासिक निर्णय बताती है. बीजेपी नेता और झारखंड खादी बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ ने इसपर खुशी जाहिर करते हुए कहा, 'एक साहसिक कदम की शुरुआत झारखंड से हुई. अब देश में इसे लागू करने की जरूरत है. वैसे भी हम अंग्रेजों की इस परंपरा को कब तक ढोते रहेंगे? क्या हमारी संस्कृति और परंपरा समृद्ध नहीं है ? क्या हम धोती कुर्ता या फिर हमारी बेटी बहुएं साड़ी नहीं पहनतीं ? कुलाधिपति महोदया ने एक अच्छा फैसला लिया है जिसे पूरा देश पसंद करेगा.'

सभ्यता संस्कृति के सवाल पर देश में कभी ज्यादा नोक-झोंक का मंजर अमूमन नहीं दिखता है. लेकिन इस मसले पर विरोध की राजनीति करने वाले इस फैसले को बीजेपी के चश्मे से भला क्यों देखना चाहेंगे ? मतलब उलट प्रतिक्रियाओं का आना तय है. पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे कांग्रेस नेता छत्तीसगढ़ के सह प्रभारी डॉ. अरुण उरांव ने कहा, 'संस्कृति और परंपरा के नाम पर समाज के भगवाकरण की तैयारियों का यह निर्णय एक पार्ट है. मोदी की बीजेपी एक सुनियोजित रणनीति के तहत देश के लोगों के दिमाग और सोच को कब्जे में लेना चाहती है. छात्र गाउन पहनकर डिग्री लेंगे तो क्या अपनी समृद्ध संस्कृति को भूल जाते हैं ? यह फरमान एक गलत कदम की शुरुआत है.'

कांग्रेस के मुकाबले झारखंड मुक्ति मोर्चा इसे थोड़ी सहजता से लेती है. पार्टी के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय कहते हैं, 'कोई फर्क नहीं पड़ता है. अब युवा सजग है कोई भी किसी तरह उन्हें बहका नहीं सकता और ये सब कुछ 2019 में दिख जाएगा. संस्कृति और परंपरा पर सिर्फ बीजेपी का ही कॉपी राइट नहीं है.' राजनीतिक मर्यादाओं की बात करने वाले दल विरोध की अपनी परंपरा को साथ लेकर चलेंगे यह तो तय है. यही वजह है कि गाउन की जगह पारंपरिक परिधान के निर्णय को वे बीजेपी का निर्णय मान रहे हैं. जबकि समझने की जरूरत है यह निर्णय राज्यपाल सह कुलाधिपति का है.

कई कॉलेज परंपरा के मुताबिक ड्रेस कोड बनाने पर कर रहे हैं विचार

दिलचस्प पहलू तो यह भी है कि राजधानी रांची में कुलाधिपति के इस निर्णय के बाद कई कॉलेज में माहौल बदलने लगा है. पारंपरिक परिधानों की परिभाषा में लचीलेपन के साथ कुछ एक कॉलेज अपने ड्रेस कोड की प्लानिंग में जुट गए हैं. यानी जीन्स टी-शर्ट और टॉप की जगह सलवार कुर्ता दुपट्टे के साथ और छात्रों के लिए फॉर्मल पैंट शर्ट या फिर कुछ कुछ इसी से मिलता-जुलता बन सकता है छात्रों का ड्रेस कोड.'

फिलहाल राज्यपाल सह कुलाधिपति के इस निर्णय के बाद एक मजेदार बहस जरूर छिड़ गई है. देश के दूसरे राज्य या फिर एनसीआर के छात्रों को झारखंड में लिए गए इस निर्णय की जानकारी अभी नहीं हो पाई है शायद. नहीं तो इस विषय पर बहस का होना भी तय माना जा रहा है. बहरहाल परंपरा के अनुकूल अपनी समृद्ध परंपरा के तहत अपनी परंपरा को अपनाने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए. अंग्रेजी हुकूमत की कितनी फोटो कॉपी को हम कब तक लेते हुए आगे बढ़ते रहेंगे, कहीं तो कुछ विराम लगना चाहिए.