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झारखंडः जानिए क्यों बीजेपी-आजसू दोनों सीटों पर चारों खाने हुई चित

आगामी चुनाव में रघुवर दास का ही चेहरा आगे होगा, या फिर किसी आदिवासी चेहरे की तलाश करेगी बीजेपी?

Anand Dutta

28 मई को झारखंड में दो सीटों पर उपचुनाव हुए थे. एक थी रांची से सटी सिल्ली विधानसभा और दूसरी बोकारो जिले की गोमिया विधानसभा. दोनों ही जगहों पर विपक्षी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के विधायक कोर्ट द्वारा अपराधी ठहराए जाने के बाद अपनी विधायकी गांवा बैठे थे. ऐसे में जेएमएम ने दोनों पूर्व विधायकों की पत्नियों को यहां से मैदान में उतारा. सिल्ली विधानसभा सीट से अमित महतो की पत्नी सीमा महतो और गोमिया में योगेंद्र महतो की पत्नी बबिता देवी को उतारा.

यहां सीमा महतो ने बीजेपी सरकार की प्रमुख सहयोगी और ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) के अध्यक्ष सुदेश महतो को 13510 मतों से हराया. वहीं गोमिया में बबिता देवी ने आजसू के ही लंबोदर महतो को 1344 मतों से हराया. यहां बीजेपी के प्रत्याशी माधव लाल सिंह तीसरे स्थान पर रहे. सिल्ली में बीजेपी ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था. अब सवाल उठता है कि इन दोनों सीटों पर मतदाताओं ने बीजेपी और आजसू दोनों को ही क्यों नकार दिया?


ये रहे कारण

पहला, सिल्ली और गोमिया विधानसभा उपचुनाव में आजसू की स्थिति असमंजस वाली थी. सिल्ली में वह सरकार की आलोचना कर नहीं सकती थी, सरकार की नीतियों का विरोध कर नहीं सकती थी, क्योंकि वहां बीजेपी ने उसे समर्थन दिया था. गोमिया में दोनों पार्टी एक दूसरे के खिलाफ थी, लेकिन हमलावर नहीं. जबकि जेएमएम ने दोनों पार्टियों के खिलाफ जमकर हमला बोला.

दूसरा, दोनों जगहों पर जेएमएम के दोनों महिला उम्मीदवारों को सहानुभूति का फायदा भी मिला. प्रचार के दौरान इस बात पर अधिक फोकस किया गया कि बीजेपी सरकार ने जानबूझकर उनके पतियों को फंसाया है. यह सजा सरकार प्रायोजित है.

तीसरा, सिल्ली में सुदेश महतो की मदद के लिए एक भी बीजेपी के नेता या मंत्री नहीं पहुंचा. उन्हें अकेला छोड़ दिया गया. राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि बीजेपी के स्थानीय नेताओं ने भी जेएमएम प्रत्याशी के समर्थन में ही अंदर ही अंदर काम किया. जबकि जेएमएम प्रमुख हेमंत सोरेन ने अपने प्रत्याशी के लिए कई जनसभाएं की.

चौथा, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार बने, सुदेश महतो उसका हिस्सा जरूर रहे हैं. जनता उनकी इस चाल को भांप चुकी है. उनकी इमेज सत्ता से चिपकने के लिए किसी से भी समझौता करनेवाली बन चुकी है. यही वजह है कि उन्हें लगातार तीन बार हार का सामना करना पड़ा है. जबकि चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में उनकी पत्नी नेहा महतो भी उनके साथ पैदल मार्च कर घर-घर तक पहुंचने की कोशिश की. कहा पुरानी गलतियों को माफ करें, उनके पति को एक बार फिर मौका दें. तमाम तिकड़मों के बावजूद सिल्ली की जनता ने उन्हें तीसरी बार नकार दिया. सबसे पहले साल 2014 में लोकसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी प्रत्याशी रामटहल चौधरी ने हराया था.

इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें जेएमएम के प्रत्याशी अमित महतो से हार का सामना करना पड़ा. अब अमित महतो की पत्नी ने उन्हें उपचुनाव में पटखनी दे दी है. अब देखनेवाली बात यह होगी कि आगामी विधानसभा चुनाव में क्या सुदेश महतो फिर से मैदान में उतरेंगे. या फिर गलतियों की समीक्षा गहनता से कर खुद और पार्टी को नए सिरे से तैयार करेंगे.

5- सरकारी तंत्र के रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के कार्यकर्ता बूथ मैनैजमेंट करने में पूरी तरह असफल रहे. मतदाताओं को मतदान स्थल पर नहीं ले जा पाए. इसकी वजह ये रही कि प्रत्येक बूथ प्रभारी को 5000 रुपए देने की बात कही गई थी, लेकिन उसके बदले 3000 रुपए ही दिए गए. जिससे उनका उत्साह खत्म हो गया.

जीत के बाद रघुवर सरकार के निशाने पर लिया हेमंत ने

इधर जीत की घोषणा होते ही रांची के कांके रोड स्थिति सरकारी आवास पर हेमंत सोरेन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई. पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की भीड़ के बीच उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि इस उपचुनाव में षड्यंत्र और अहंकार की हार हुई है. इसकी लपटें दिल्ली तक जाएंगी. हमलोगों ने बड़े संघर्ष की तैयारी कर ली है. झारखंड सरकार निकम्मेपन और अहंकार में अव्वल है. इसे जनता ने नकारा है. झारखंड ने अहंकार की हार को देख लिया है. इसके पहले भी हमने पांच चुनाव देखे, जिसमें से चार चुनाव विपक्ष ने जीता. इसलिए रघुवर सरकार को नैतिकता के आधार पर तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए. 2019 चुनाव के सवाल पर हेमंत सोरेन ने इशारा करते हुए बताया कि अब धुंध छंटने लगी है और आने वाला समय बेहतर होगा.

गोमिया में गठबंधन को दोनों सहयोगी हुए चारो खाने चित्त

गोमिया विधानसभा सीट बीजेपी और आजसू दोनों के लिए नाक की लड़ाई थी. दोनों आपस में लड़े और बाजी मार ले गई जेएमएम. हाल ये था कि बीजेपी की तरफ से सीएम से लेकर आला नेताओं तक ने इस इलाके में कैंप किया. बिहार की तरह यहां भी झारखंड सरकार के एक-एक मंत्रियों ने कैंप किया. खुद सीएम रघुवर दास ने जनसभाओं में मोदी सरकार और राज्य सरकार के उपलब्धियों का बखान किया. बावजूद इसके बीजेपी तीसरे नंबर की पार्टी रही. आजसू प्रत्याशी लंबोदर महतो राज्य सेवा के अधिकारी थे. चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने वॉलंट्री रिटायरमेंट लिया था. पिछले दस सालों से वह हर साप्ताहिक छुट्टियों में यहां आकर लोगों से मिलने और उनके लिए काम करते रहे थे. ऐसे में उन्हें दोनों तरफ से घाटा हो चुका है. ना तो विधायकी मिली और न ही सरकारी सेवा बरकरार रही.

गठबंधन पर पड़ सकती है दरार

हार से तिलमिलाए आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने कहा कि उन्हें राज्य सरकार की जनविरोधी नीतियों का खामियाजा भुगतना पड़ा है. पिछले चुनाव की तुलना में अधिक वोट मिले हैं, इसलिए आजसू को लोगों ने नकारा नहीं है. उन्होंने साफ कहा कि अब गठबंधन रहेगा या नहीं, इसकी समीक्षा का समय आ चुका है.

आगामी चुनाव को देखते हुए पार्टी सभी स्थितियों की गहन समीक्षा करेगी. इस वक्त आजसू के पास कुल चार विधायक हैं. अगर वह अपना समर्थन वापस लेती है फिर भी सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा. हां ये बात जरूर है कि इसके कई राजनीतिक मायने निकलेंगे. जानकारी के मुताबिक इस वक्त आजसू के चार विधायकों को छोड़ दें तो बीजेपी के पास खुद के 38 विधायक हैं. इसके साथ ही जेवीएम से निकल कर आए छह, जय भारत समानता पार्टी की गीता कोड़ा, भानु प्रताप शाही- नौजवान संघर्ष मोर्चा, एनोस एक्का- झारखंड पार्टी, शिवपूजन मेहता- बीएसपी (राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को वोट किया था), प्रकाश राम जेवीएम (राज्यसभा चुनाव के वक्त बीजेपी को दिया था वोट दिया था, फिलहाल पार्टी से निलंबित हैं). 82 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 42 विधायकों की जरूरत है, जिसे बीजेपी पूरा करती नजर आ रही है.

इधर बीजेपी के राज्य प्रवक्ता जेबी तुबिद का कहना है कि अगर दोनों पार्टियां साथ लड़तीं तो जेएमएम की हार निश्चित थी. उन्होंने इस बात से साफ इंकार किया कि बीजेपी सरकार के कामकाज को जनता ने नकारा है. उन्होंने कहा कि कुल केवल बोकारो में कुल 750 करोड़ रुपए की योजनाएं चल रही है.

उन्होंने कहा कि हार का जिम्मेदार कौन है, यह तो समीक्षा के बाद ही तय हो पाएगा. आंकड़ों में देखें तो सिल्ली विधानसभा में जेएमएम को 77129, आजसू को 63619 और नोटा को 2357 वोट मिले. वहीं गोमिया में जेएमएम को 60551, आजसू को 59207, बीजेपी को 42037 और नोटा को 3851 वोट मिले हैं.

सवाल जो झारखंड की राजनीतिक गलियारों में चल पड़े हैं

क्या आजसू बीजेपी से समर्थन वापस लेगी? ऐसी स्थिति में बीजेपी की रणनीति क्या होगी? सरकार के कामकाज को जनता तक पहुंचाने के लिए काम होगा या एक बार फिर प्रचार पर ही पैसे खर्च किए जाएंगे? चुनाव के वक्त विपक्षी एकता बरकरार रहेगी? बीजेपी के अंदर रघुवर दास के विरोधी गुट किस तरह उनपर हावी होंगे? केंद्र सरकार इस हार के बाद राज्य सरकार को क्या कड़ा संदेश देने जा रही है? आगामी चुनाव में रघुवर दास का ही चेहरा आगे होगा, या फिर किसी आदिवासी चेहरे की तलाश करेगी बीजेपी?