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मोदीजी होशियार! जाट आ रहे हैं लगाने दिल्ली में दरबार...

जाट 17 मार्च से ट्रैक्टर खेतों को छोड़कर हाईवे का रुख करेंगे. 20 मार्च को राजधानी पहुंचना है.

Nazim Naqvi

'ये तो देखो क्या है कि... मोदी जी को इस चीज का पता है, और अटल जी को भी इस चीज का पता था... तभी उन्होने जाट-रिजर्वेशन की शुरआत करी... मोदी जी को ये पता है... जाट समर्थन के बिना 2019 जीतना मुश्किल है... दे कैन नॉट क्रॉस मोर दैन वन फिफ्टी सीट्स... विद आउट जाट...'

ये कहना है ‘अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति’ के अध्यक्ष यशपाल मालिक का.


‘दिल्ली चलो’ की तैयारी चल रही है. 17 मार्च से ट्रैक्टर खेतों को छोड़कर हाईवे का रुख करेंगे. 20 मार्च को राजधानी पहुंचना है. तैयारियां चल रही हैं, चंदा इकठ्ठा हो रहा है. वरिष्ठ पत्रकार हरवीर सिंह का हवाला देकर अगर बात करें तो इस बार जाट-एकता इस नारे के साथ दिल्ली कूच करना चाह रही है कि 'अगर कुछ होना है तो हो जाएगा नहीं तो रह जाएगा. जाट मांग का सच तो यही है कि लंबे समय से आरक्षण की लड़ाई लड़ रहा जाट समुदाय एक बार फिर वापस उसी जगह आकर पर खड़ा हैं जहां से इस आंदोलन के बीज पड़े थे.'

फिलहाल आंदोलन का केंद्र हरियाणा है जहां लगभग एक दर्जन धरने चल रहे हैं, लेकिन दिल्ली-कूच के साथ ही देशभर के जाट इसमें शामिल हो जाएंगे.

यशपाल मालिक से हमारी बातचीत में, आंदोलन का जिक्र तो होना ही था लेकिन हमने बिना किसी भूमिका के पहले ही प्रश्न में पूछ लिया, जो आमतौर पर माना भी जा रहा है.

यशपाल जी, लगता है कि हरियाणा का जाट समुदाय मनोहर लाल खट्टर से निराश है?

यशपाल के लहजे से लगा कि ये प्रश्न उनके लिए अप्रत्याशित नहीं था. बड़े सधे शब्दों में उन्होंने तुरंत जवाब दिया.

'परेशान इसलिए हैं न, कि उनमें कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है. राजनीतिक आदमी क्या है कि बहुत सी चीजें अपने हाथ में रख कर लोगों को लाभ पहुंचता है. इनका तो अनुभव ही शून्य है.'

फिर थोड़ा दर्शन का छोंका का लगाते हुए बोले 'पॉलिटिक्स इज प्रोफेशन नाउ... इसमें मानव-समझ की जरूरत होती है. आप देख लीजिए कि आज हरियाणा में कौन सा ऐसा सरकारी विभाग है जो आंदोलन में नहीं है. आप किसी भी चीज को देख लीजिये, किसान है वो आंदोलन में है, जाट है वो आंदोलन में है, टीचर्स आंदोलन में हैं, व्यापारी हैं, वो बेचारे आंदोलन में हैं. मतलब टोटल हरियाणा आंदोलन बना हुआ है. इनके अन्दर मैन्युपुलेशन (जोड़-तोड़) ही नहीं है.'

मन में एक प्रश्न और था मैंने सोचा इसे भी पूछकर स्थिति को साफ कर लेनी चाहिए. सो मैंने पूछ ही डाला, यशपाल जी आप उत्तर-प्रदेश के मुज़फ्फरनगर से आते हैं, हरियाणा के जाटों की ये स्वाभाविक सोच हो सकती है कि उनका नेतृत्व कोई हरियाणवी जाट नेता करे?

'देखिये ये मीडिया की फैलाई हुई बात है. आप देखिये जब चौधरी चरण सिंह थे या चौधरी देवीलाल थे तो पूरे देश के किसान और जाट उनके पीछे थे. इनसे पहले चौधरी छोटूराम को देखिए हमारे यहां जितने स्कूल खुले सबकी नींव उन्होंने रखवाई... पिछले सौ साल से जो भी पॉलिटिकल मूवमेंट हुई... लेकिन जब से इनकी दूसरी पीढ़ियां आईं, तब से लोगों में ये कंफ्रटेशन हो गया था, जो अब दूर हो चुका है पिछले पांच साल से.'

तो आपको हरियाणा में कैसा समर्थन है?

'चल के देखिये हरियाणा में, मेरे हिसाब से 40 लाख लोग जमा हो जाते हैं एक आवाज पर.'

क्या रणनीति है आन्दोलन को लेकर?

'यही रणनीति है कि जिस तरह से जाट आरक्षण को लेकर सरकार असंवेदनशील बनी हुई है, उसके खिलाफ, पूरे देश के जाट अपनी ट्रैक्टर-ट्रालियों में बैठकर, अपनी जरूरतों का सारा सामान लादकर, 20 मार्च को दिल्ली आ रहे हैं और अनिश्चितकाल के लिए आ रहे हैं. ये मानते हुए कि अभी नहीं तो कभी नहीं. इसबार हमारा आंदोलन ऐसा है कि सरकार इसे रोकेगी तो भी फंसेगी और नहीं रोकेगी तो भी फंसेगी.'

सरकार को तो फंसना ही फंसना है, इसको समझाते हुए वो बताते हैं कि 'देखो जी, हमारी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि, दिल्ली के चारों ओर, 700 किलोमीटर की परिधि में हम हैं, हर तरफ से हम दिल्ली में आएंगे... सातों सीमाओं से... और हमें जहां पर भी (प्रशासन द्वारा) रोका गया हम वहीं बैठ जाएंगे हाईवे पर.

जाट इतने समय से आरक्षण की मांग कर रहे हैं, इसका कोई हल क्यों नहीं निकल पाता?

'देखिए देश में यही एक अकेली मांग नहीं है, आप किसानों की समस्या को ही ले लीजिये, उसका कोई हल नहीं चाहता, चुनाव के टाइम पे सब हल चाहते हैं जब समाज इकठ्ठा हो जाता है. उसके बाद क्या होता है कि सरकारें इसमें प्रॉफिट और लॉस देखने लगती हैं कि जाट की मांग पूरी कर देंगे तो नाराज कौन-कौन होगा? और मैं एक बात और बताऊं आपको कि पूरा मीडिया गुमराह है,

आठ राज्यों में हमें स्टेट-लेवल पर रिजर्वेशन है, और वो लगभग 16 से 20 साल पहले हो चुका, लेकिन केंद्र में, क्योंकि यहां दोहरी नागरिकता की तो कोई व्यवस्था है नहीं, उसके बाद भी केंद्र में आरक्षण के लिए हमें इतनी बड़ी मूवमेंट करनी पड़ रही है.

लोग ये सोचते हैं कि जाट भी मराठों या पटेलों की तरह आरक्षण मांग रहे हैं, हम आरक्षण नहीं मांग रहे, आरक्षण तो है राज्यों में, हम तो ये चाहते हैं कि बाकी जातियों को राज्य में आरक्षण मिलने के बाद जिस तरह केंद्र में आरक्षण हो जाता है, हमारे साथ भी वैसा ही हो.'

दरअसल हरियाणा में जाट समुदाय अपने लिए ओबीसी कैटिगरी में आरक्षण चाहता है. लेकिन हरियाणा सरकार ने इससे बचते हुए इकॉनमिकली पिछड़े-वर्ग के कोटे को 10 प्रतिशत से बढाकर 20 प्रतिशत कर दिया और इसमें अन्य समुदायों के साथ जाटों को भी मिला लिया लेकिन जाटों को ये मान्य नहीं है. वे ओबीसी के 27 परसेंट कोटे में ही अपने लिए जगह चाहते हैं.

पिछले साल मार्च में खट्टर जी ने आप लोगों से एक समझौता किया था वो क्या था?

'उसमें भी डाटा गलत दे दिया, वो कोर्ट में खारिज हो गया. इसके अलावा 50% से ऊपर कर दिया आरक्षण, हम मांग रहे थे अंडर फिफ्टी, कि जैसे सब जातियों को मिला हुआ है, सैनी को, गूजर को, यादव को, लेकिन वो वोटबैंक की पॉलिटिक्स में अलग बिल ले आये, मंशा ही साफ नहीं है.'

यशपाल जी, कहा जा रहा है कि हरियाण सरकार आपकी मांगों के सामने अजीब परिस्थिति में है. वो मूलतः गैर-जाट समर्थन से सत्ता में आई है, ऐसे में उसपर उन 35 बिरादरियों का दबाव है जिन्होंने उसे वोट दिया है.

'देखिए यही तो हम कह रहे हैं की जो कानूनी अधिकार हैं उनको भी आप जातियों में बांट रहे हैं. कानूनी अधिकार जिसका बनता है, आप उसमें भी ये सोचोगे कि दूसरा नाराज हो जाएगा.

दूसरी बात जाट ने इनको 4-5 प्रतिशत वोट तो दिए ही होंगे. इन्होंने 28 टिकट जाट को दिए थे. इनके 6 जाट एमएलए जीत के भी आए हैं. अगर वो न आते तो इनकी सरकार तो नहीं बननी थी, ऐसे में जाट बिरादरी को क्यों उपेक्षित रख रहे हैं. अगर इनमें दम है तो ये कहें कि हम तो नॉन-जाट के समर्थन से आए हैं हम जाट को कुछ नहीं देंगे.'

कुल मिलकर तेवर कुछ ऐसे हैं जो इशारा कर रहे हैं कि वक्त रहते अगर केंद्र सरकार ने जाटों की मांगों को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया तो इसे संभालना उनके लिए मुश्किल होगा. क्योंकि ये केवल जाट समुदाय और वर्तमान सरकार का मामला नहीं है इसमें सभी पार्टियां अपना फायदा और नुकसान देख रही हैं.

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