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मुजफ्फरपुर की घटना को लेकर अपनी ही सरकार से नाराज अरुण कुमार, बोले-हालत सुधरे नहीं तो इस्तीफा दूंगा

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के सांसद अरुण कुमार भी एनडीए से अलग राह पर चलने की तैयारी में हैं.

Amitesh

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के सांसद अरुण कुमार भी एनडीए से अलग राह पर चलने की तैयारी में हैं. बिहार सरकार और केंद्र सरकार को लेकर उनकी नाराजगी का आलम यह है कि उन्होंने दिल्ली में प्रेस-कांफ्रेंस के दौरान बाकायदा इस बात का ऐलान कर दिया कि अगर बिहार में मुजफ्फरपुर की घटना को लेकर उनकी मांग नहीं मानी जाती है तो वो लोकसभा की अपनी सीट से भी वो इस्तीफा दे देंगे.

बिहार के जहानाबाद से सांसद डॉ. अरुण कुमार ने कहा ‘बिहार में मुजफ्फरपुर में जिस तरह से बालिका गृह में नाबालिग लड़कियों से साथ जो घटना हुई है, उसपर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए.’ उन्होंने आरोप लगाया कि ‘सरकार इस मुद्दे पर आरोपियों पर कार्रवाई करने के बजाए ढुलमुल रवैया अपना रही है.’


अरुण कुमार ने नीतीश सरकार और मोदी सरकार को दो महीने का अल्टीमेटम देते हुए साफ कर दिया कि अगर इस मुद्दे में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो फिर वो लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरेंगे.

कुमार ने केंद्र सरकार से बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग कर दी. उन्होंने आरोप लगाया, ‘बिहार में मौजूदा हालात इतने खराब हो गए हैं कि अब राष्ट्रपति शासन ही विकल्प बचता है.’

अरुण कुमार केंद्र और बिहार में बीजेपी की सहयोगी आरएलएसपी के सांसद हैं. आरएलसपी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा से टकराव के बाद उन्होंने अलग रास्ता पहले ही अपना लिया है. लेकिन, अब भी आरएलएसपी पर इनका अपना दावा है. कुमार खुद आरएलएसपी (अरुण गुट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर आज भी पार्टी पर अपना दावा करते हैं.

अब अलग राह पर अरुण कुमार

हालांकि उपेंद्र कुशवाहा से अलग होने के बावजूद अरुण कुमार अभी तक एनडीए गठबंधन के पक्ष में ही थे. लेकिन, अब बदलते सियासी समीकरण में अरुण कुमार भी नीतीश और मोदी दोनों के खिलाफ तेवर दिखा रहे हैं. अरुण कुमार देश में कई जहगों पर मॉब लिंचिंग की घटना को लेकर बीजेपी और केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं.

अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ हो रही इन घटनाओं को लेकर उन्होंने सवाल खड़ा किया है. खासतौर से बीजेपी के उन नेताओं के खिलाफ उनका तेवर तल्ख है जो अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को लेकर पाकिस्तान जाने की बात करते हैं.

अलग मोर्चे के दम पर देंगे चुनौती

सांसद अरुण कुमार भले ही आरएलएसपी (अरुण) के अध्यक्ष के तौर पर पार्टी पर अपना दावा कर रहे हैं. लेकिन, अभी हाल ही में गठित पार्टी राष्ट्रीय समता पार्टी (से.) के कर्ताधर्ता वही हैं. उनके बेहद करीबी कुशवाहा समुदाय के अजय सिंह अलमस्त पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए हैं. अब कोशिश कई समाजवादी नेताओं को साथ लेकर अलग मोर्चा बनाने की है.

राष्ट्रीय समाजवादी मोर्चा के बैनर तले कई छोटी-छोटी पार्टियों ने एक मंच भी तैयार किया है, जिसका संयोजक अरुण कुमार को बनाया गया है. इन पार्टियों में आरएलएसपी (अरुण गुट) और राष्ट्रीय समता पार्टी (से.) के अलावा अशफाक रहमान के नेतृत्व वाली जनता दल राष्ट्रवादी,  विद्यापति चंद्रवंशी के नेतृत्व में बिहार जनता पार्टी (राष्ट्रीय) भी शामिल है. ये सभी पार्टियां मुख्य रूप से बिहार में ही सक्रिय हैं. इसके अलावा भी और कई पार्टियां हैं जो राष्ट्रीय समाजवादी मोर्चा के बैनर तले काम करने को तैयार हो गए हैं. इस मोर्चा का संयोजक सांसद अरुण कुमार को बनाया गया है.

मोर्चा का बिहार में हल्ला बोल

राष्ट्रीय समाजवादी मोर्चा बिहार में एक अलग ताकत के तौर पर फिलहाल अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है. राष्ट्रीय समता पार्टी के अध्यक्ष अजय सिंह अलमस्त ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में स्वीकार किया कि ‘28 अक्टूबर को पटना के गांधी मैदान में ऐतिहासिक रैली की तैयारी की जा रही है. इसी रैली में अपनी ताकत दिखाकर राष्ट्रीय मोर्चा बिहार में अगले लोकसभा चुनाव से पहले अपने दावे को और मजूबत करेगा.’

राष्ट्रीय समता पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, पटना की इसी रैली में अरुण कुमार लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर औपचारिक तौर पर पार्टी के साथ जुड़ जाएंगे.

अजय सिंह अलमस्त के बयान से साफ है कि राष्ट्रीय समता पार्टी अब आने वाले दिनों में अलग रास्ते पर चलने की तैयारी है. हालाकि पार्टी के नेता अभी अपने  अलग कदम को लेकर खुलकर नहीं बोल रहे हैं. लेकिन, अब साफ हो गया है कि  पार्टी जिस विचार धारा पर आगे चल रही है, उसमें आने वाले दिनों में उसकी एनडीए से दूरी और बढ़ने वाली है.

पासवान-कुशवाहा का रुख भी तल्ख

बिहार में एनडीए के भीतर पहले से ही खींचतान जारी है. उपेंद्र कुशवाहा और रामविलास पासवान को लेकर भी कई कयास लगाए जा रहे हैं. माना जा रहा है कि ये दोनों नेता भी नीतीश कुमार की दोबारा एनडीए में वापसी से असहज हैं. उन्हें लगता है कि नीतीश कुमार की एंट्री से उनकी लोकसभा की सीटों पर असर पड़ सकता है. कुशवाहा के अलावा एलजेपी सांसद चिराग पासवान का बयान उसी कड़ी में देखा जा रहा है.

अरुण कुमार के साथ भी कुछ इसी तरह की परेशानी रही है. भले अरुण कुमार कुशवाहा के खिलाफ हैं, लेकिन, हकीकत यही है कि नीतीश कुमार के साथ भी अरुण कुमार की अदावत पुरानी रही है. नीतीश के साथ अनबन के बाद ही अरुण कुमार ने अलग होकर उपेंद्र कुशावाहा के साथ मिलकर पांच साल पहले आरएलएसपी बनाई थी. लेकिन, अभी भी एनडीए में साथ होने के बावजूद भी नीतीश कुमार की तरफ से कभी इस खाई को पाटने की कोशिश नहीं की गई.

यहां तक कि जहानाबाद के विधानसभा के उपचुनाव में भी स्थानीय सांसद होने के बावजूद अरुण कुमार को जेडीयू की तरफ से चुनाव प्रचार में नहीं बुलाया गया. यही बात अरुण कुमार को भी अखर रही है. इसी के बाद अलग पार्टी और अलग मोर्चा बनाकर फिर से एक तीसरी ताकत में अपने-आप को खडा करने की उनकी कोशिश हो रही है. बिहार की सियासत में लोकसभा चुनाव से पहले और भी कई उथल-पुथल दिख सकता है.