view all

रसूखदारों की मनमर्जी के गए ‘अच्छे दिन’, पिंजरे से बाहर ‘तोते’ की उड़ान

तोता पिंजरे से बाहर उड़ान भर चुका है और शिकंजा कसने का दौर शुरु हो चुका है.

Kinshuk Praval

चारा घोटाले के मामले में 5 जून को लालू पटना की सीबीआई स्पेशल कोर्ट में पेश हुए. अब 9 जून को उन्हें रांची सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में 95 लाख रुपए की अवैध निकासी के मामले में पेश होना है.

चारा घोटाला मामले की सुनवाई तेज हो गई है जिसका निपटारा 9 महीने में होना तय है. बड़ा सवाल ये है कि 25 साल से जिंदा वो मामला जिसके कई आरोपी भी अब नहीं रहे उसका निपटारा 9 महीने में कैसे होने जा रहा है?


इसके लिए एक फर्क को देखने और समझने की जरूरत है. करप्शन से जुड़े मामलों में सरकार की इच्छाशक्ति का फर्क 26 मई 2014 के बाद देखा जा सकता है.

कई बड़े नाम और बड़े चेहरों पर सीबीआई और इनकम टैक्स के छापे पड़े हैं. लेकिन सीबीआई और आईटी के जिन छापों से हड़कंप मचा वो पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम, लालू प्रसाद यादव, हिमाचल प्रदेश के सीएम वीरभद्र सिंह और एनडीटीवी के को फाउंडर प्रणय रॉय के छापों से हुआ.

यूपीए सरकार में भी कई बड़े नेता जेल भेजे गए थे

राजनीतिक दल इसे सरकार की राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित बदले की कार्रवाई बता रहे हैं तो एनडीटीवी ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर सरकार का हथौड़ा बताया.

जाहिर तौर पर हथौड़ा चलेगा तो आवाज तो होगी ही. उसे लोग अपने-अपने तरीके से परिभाषित करने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन किसी भी कार्रवाई के बाद सीबीआई को कटघरे में खड़ा करने से पहले ये सोचने की जरूरत है कि पिछली सरकारों के कार्यकाल के वक्त जो घोटालों का एक सिलसिला जारी था वो आज सुनाई और दिखाई क्यों नहीं दे रहा ?

इटेलियन बिजनेसमैन और बोफोर्स घोटाले में आरोपी ओतावियो क्वात्रोची

याद कीजिए बोफोर्स घोटाला, जेएमएम घूस कांड, हवाला कांड, सुखराम का टेलीकॉम घोटाला, सेंट किट्स मामला, तेलगी घोटाला, ताज कोरिडोर घोटाला, बिहार चारा घोटाला, रक्षा घोटाला, कोयला घोटाला आदि ये फेहरिस्त आम आदमी के मस्तिष्क से मिट नहीं सकी है.

लेकिन केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद करप्शन पर कार्रवाई की हलचल आम जनमानस पर अपना असर छोड़ने में कामयाब रही है. इन तीन साल में विधानसभा चुनावों के नतीजों से केंद्र सरकार की छवि को समझा जा सकता है.

जनता की अपेक्षाओं का भार भी सबसे ज्यादा मोदी सरकार पर है. सरकार के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि तीन साल के अबतक के कार्यकाल में एक बार भी किसी मंत्री या मंत्रालय पर घोटाले का दाग नहीं लगा है. सरकार की यही उपलब्धि उसकी ताकत में बदल रही है जिससे सरकार करप्शन को लेकर समझौते के मूड में नहीं है. इसलिए सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को अभी मोदी सरकार की शुरुआत के रूप में देखा जाना चाहिए.

हालांकि यूपीए कार्यकाल के वक्त भी कई बड़े नाम और मंत्री घोटाले की वजह से जेल भेजे गए. टू जी स्पैक्ट्रम घोटाले में डीएमके चीफ करुणानिधि की बेटी कनीमुड़ी तो ए राजा जैसे बड़े नाम थे. लालू प्रसाद यादव को भी मुख्यमंत्री का पद छोड़ कर चारा घोटाले के आरोप में जेल जाना पड़ा. शीबू सोरेन, मधु कौड़ा, सुखराम जैसे मंत्री भी जेल जाने से बच नहीं सके.

2जी घोटाले के आरोपी ए राजा (फोटो: फेसबुक)

इन सबके बावजूद एक आम अवधारणा है कि ‘बड़े लोगों’ का कुछ नहीं बिगड़ने वाला. लेकिन हाल ही में हुई कुछ घटनाएं इशारा कर रही हैं कि तोता पिंजरे से बाहर उड़ान भर चुका है और शिकंजा कसने का दौर शुरु हो चुका है.

सीबीआई ने शिकंजे में सिर्फ नेताओं के अलावा एसपी त्यागी जैसे लोग भी फंसे

लालू प्रसाद यादव के कुल 22 ठिकानों पर छापे पड़े तो पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्तिक चिदंबरम के 16 ठिकानों पर सीबीआई ने रेड की. सवाल उठता है कि क्या किसी ऐसे ताकतवर पूर्व मंत्री के खिलाफ इतनी बड़ी कार्रवाई हो सकती थी क्या? पिछले 27 साल की सियासत में चिदंबरम की हैसियत से सब वाकिफ हैं.

आम जनमानस में ये बसा हुआ है कि ‘सब मिले’ हुए हैं. चाहे सरकार में रहें या न रहें क्योंकि रसूख वाले सरकारी तंत्र में हर स्तर पर चीजें मैनेज कर लेते हैं. बहुत मुमकिन है कि यहां भी मैनेज करने की कोशिश की गई होगी. लेकिन मैनेज हो नहीं सका. पी चिंदबरम के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो जाती है. ऐसे में सरकार की सख्ती उन सबके लिए इशारा कर रही है कि जिनके भी कॉलर में दाग मिलेंगे वो कॉलर तो कानून पकड़ेगा ही.

मामला सिर्फ राजनीतिक हस्तियों तक ही सीमित नहीं है. हैलिकॉप्टर खरीद मामले में सीबीआई ने पूर्व एयर चीफ मार्शल एसपी त्यागी को गिरफ्तार किया.

सीबीआई ने एनडीटीवी के को फाउंडर प्रणय रॉय के घर पर छापे मारे. रॉय पर सीबीआई का आरोप है कि उन्होंने एक निजी बैंक के फंड का दुरुपयोग किया.

महाराष्ट्र की राजनीति के कद्दावर नेता छगन भुजबल मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जेल में हैं. छगन भुजबल महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री भी रहे हैं.

छगन भुजबल (फोटो: फेसबुक)

सीबीआई के शिकंजे में फंसे बड़े नाम

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के घर ऐन शादी के दिन ही सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने छापा मारा. वीरभद्र ने भी इसे राजनीति से प्रेरित बताया. जनता ऐसे आरोप मायावती, मुलायम सिंह यादव और अरविंद केजरीवाल की जुबान से कई दफे जनता सुन चुकी है.

असल दिक्कत यहीं से शुरु होती है. जब कार्रवाई नहीं हो तो सरकार से लेकर लालफीताशाही तक बैठा हर नुमाइंदा भ्रष्ट बताया जाता है और जब कार्रवाई होती है तब उसे राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया जाता है.

सोचने वाली बात ये है कि जेल में पहुंचे सियासत के दिग्गज नेता क्या सिर्फ राजनीति की बदले की कार्रवाई का नतीजा हैं?

दरअसल इसके लिए खुद वही सीबीआई जिम्मेदार है जिसे सुप्रीम कोर्ट को पिंजरे में बंद तोता तक कहना पड़ गया.

सियासत इस कदर हावी हुई कि सरकार बचाने के लिए समर्थन हासिल करने तक के लिए सीबीआई का इस्तेमाल दिखाई देने लगा.

सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट ने लताड़ लगाई कि उसने कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट की आत्मा ही बदल दी. लेकिन बाद में इसी सीबीआई ने अपने ही पूर्व बॉस रंजीत सिन्हा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर प्रायश्चित करने की कोशिश की.

अबतक के मामलों से उम्मीद की जा सकती है कि सीबीआई किसी स्वायत्त संस्था के तौर पर बड़े नामों पर हाथ डालने की हिम्मत जुटा रही है. कहा जा सकता है कि रसूख के दम पर ‘कुछ भी’ करने वालों के ‘अच्छे दिन’ जा चुके हैं और तोता अब पिंजरे से बाहर उड़ान भर रहा है. हालांकि विडंबना ये है कि जब सीबीआई सबूतों के लिए कार्रवाई करती है तब कटघरे में भी वही खड़ी होती है.