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'बाबू भाई' का दोष नहीं, देश की फिजा ही कुछ ऐसी है!

विवाद के मूल किरदार फारुक डार पर क्या बीत रही होगी, इस पर विचार करने का किसी के पास वक्त नहीं है

Rajendra P Misra

बीजेपी सांसद और फिल्म अभिनेता परेश रावल ने ट्विटर पर लेखिका अरुंधति रॉय के खिलाफ टिप्पणी क्या की, लोग हाथ धोकर उनके पीछे पड़ गए. किसी ने उन्हें खलनायक कहा तो किसी ने छोटा आदमी कह कर खारिज करना उचित समझा.

लोगों का गुस्सा जायज है, लेकिन इसमें बेचारे परेश रावल का क्या दोष है? इस वक्त देश की फिजा ही कुछ ऐसी है कि अच्छे-भले मनुष्य भी हिंसक होते जा रहे हैं. वरना एक बेहतरीन अभिनेता परेश रावल अपनी असल जिंदगी में फिल्मी बाबू भाई क्यों बनते !


बाबू भाई का तो काम हो गया !

अरुंधति रॉय को जीप से बांधने की मंशा जताकर बाबू भाई ने काफी तालियां बटोरी. देश के सामने अपनी देशभक्ति का सबूत पेश कर दिया. उन्हें ढेरों रिट्वीट और लाइक्स मिले. कइयों ने तथाकथित देशद्रोहियों की लिस्ट में कई और नाम जोड़े और उनसे निपटने के कई नायाब तरीके बताए. गायक अभिजीत ने तो इन देशद्रोहियों को गोली मार देने तक की सलाह दे डाली. सोशल मीडिया देशभक्ति के रंगों में रंग गया.

कुछ आलोचकों को लगा कि बाबू भाई एक सांसद होते हुए भी हिंसा भड़का रहे हैं. वो लोगों को कानून अपने हाथ में लेने के लिए उकसा रहे हैं. आखिर ऐसे लोग आलोचक जो ठहरे. वह देश भक्ति की भावना में भी मीन-मेख निकालेंगे ही.

लेकिन इन सबसे बाबू भाई का कुछ नहीं बिगड़ने वाला, वह सांसद हैं और सांसद ही रहेंगे. आखिरकार, उन्होंने तो सिर्फ जनभावना को ही प्रकट किया है. इसमें भला बाबू भाई का क्या दोष! अगर कुछ आलोचकों को बाबू भाई की बात नागवार लगी, तो समझो बाबू भाई का काम हो गया!

अरुंधति रॉय का भी कुछ नहीं बिगड़ेगा

बाबू भाई की ऐसी मंशा से अरुंधति रॉय का भी कुछ बिगड़ने वाला नहीं है. चाहे आप कश्मीर पर उनके विचारों से सहमत हों या असहमत. अरुंधति रॉय की अपनी एक हैसियत है. वह पहले भी इस तरह के हमलों को झेल चुकी हैं. लेकिन इससे विवाद के मूल किरदार फारुक डार पर क्या बीत रही होगी, इस पर विचार करने का किसी के पास वक्त नहीं है.

जीप से बंधते ही एक साधारण सा आदमी जो शॉल बुनकर अपना जीवन यापन करता था, एक झटके में देश-दुनिया में चर्चित हो गया था. आज हर जुबान पर उसका नाम है. देखे ही देखते वह कश्मीर के पत्थरबाजों का 'प्रतिनिधि' बन गया है. कश्मीर की आजादी चाहने वाले उसका नाम लेकर समर्थन जुटाते हैं, तो मानवाधिकार की चिंता करने वाले उसका हवाला देकर कश्मीर के हालात को बयां करते हैं.

लेकिन फारूक डार तो वोट डालने गया था !

बकौल फारूक डार, वह श्रीनगर लोकसभा उपचुनाव में वोट डाल कर अपने रिश्तेदारों के घर जा रहा था. इस दौरान उसे सेना के जवानों ने पकड़ लिया और जीप के आगे बांध कर कई घंटे तक पूरे इलाके में घुमाया. सेना ने पत्थरबजी से बचने के लिए उसे मानव ढाल की तरह इस्तेमाल किया.

आतंकवादियों ने अवाम को चुनाव का बहिष्कार करने या नतीजा भुगतने की चेतावनी दी थी. नतीजतन, अधिकतर लोग मतदान केंद्रों से दूर रहे और श्रीनगर लोकसभा के उपचुनाव में महज 7 फीसदी वोट पड़े. फारूक डार ने मीडिया को अपनी वोटिंग स्लिप भी दिखाई थी.

आतंकवादियों को मिला मौका

कम मतदान से आतंकवादियों और उनके आका पाकिस्तान को यह कहने का मौका मिलता है कि कश्मीर के लोगों ने भारतीय लोकतंत्र को खारिज कर दिया है. केंद्र सरकार भी इस बात से भली-भांति परिचित है. लिहाजा, मतदान केंद्रों समेत पूरे इलाके में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त थे, ताकि लोग बिना भय के वोट डालें और आतंकवादियों की मुराद पूरी न हो.

बावजूद इसके श्रीनगर उपचुनाव में सिर्फ 7 फीसदी वोट पड़े. बकौल, फारूक डार इसमें एक वोट उसका भी था. फारूक आतंकियों की धमकी की परवाह न करते हुए भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बना. यही इस मामले का सबसे दुखद पहलू भी है.

जो शख्स आतंकवादियों की धमकी के बावजूद भारतीय लोकतंत्र में अपनी आस्था जताते हुए वोट डालने गया था, वही लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हिफाजत में लगे जवानों के हत्थे चढ़ गया और पूरी दुनिया में तमाशा बन कर गया.

मेजर लीलुल गोगोई को सेना ने साहसिक कदम उठाने के लिए सम्मानित किया है

उमर अब्दुल्ला के ट्वीट पर भी उठे थे सवाल 

मुझे याद है कि जब नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जीप से बंधे फारूक डार की तस्वीर ट्विटर पर शेयर की तो उनके ट्वीट के जवाब में शुरू में यह आशंका जताई गई कि क्या यह वास्तव में सेना की जीप है?

बाद में यह तस्वीर वायरल हो गई और लोग पक्ष-विपक्ष में बंट गए. किसी ने इसे मानवाधिकार का हनन बताया तो किसी ने सेना की इस कार्रवाई का समर्थन किया. देखते ही देखते बगैर किसी जांच-पड़ताल के फारूक डार को पत्थरबाज घोषित कर दिया गया.

तर्क दिया गया कि 'पत्थरबाज' फारूक को सेना ने जीप से बांध कर घुमाया तो गलत क्या किया गया. यह भी कहा गया कि सेना ने विषम हालात में तुरंत सूझबूझ का इस्तेमाल कर ऐसा नायाब तरीका खोजा कि चुनाव ड्यूटी पर लगे तमाम जवानों की जान बच गई. साथ ही इलाके के लोगों को भी कोई नुकसान नहीं हुआ. लेकिन आलोचकों ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से भारत कश्मीर को खो देगा.

मेजर गोगोई हुए सम्मानित

विवाद बढ़ता देख सेना ने जांच का एलान कर दिया. इस कार्रवाई को अंजाम देने वाले 53 राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर लीतुल गोगोई के खिलाफ कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी चल रही है. इसका नतीजा अभी आना बाकी है. इसी बीच खबर आई कि घाटी में आतंकवाद के खिलाफ मुहिम में उनकी भूमिका के लिए उन्हें आर्मी चीफ के प्रशंसा पत्र से नवाजा गया.

सेना के पुरस्कारों में आर्मी चीफ के इस प्रशंसा पत्र को गैलेंट्री एवार्ड से सिर्फ एक पायदान नीचे माना जाता है. सम्मानित होने के बाद मेजर गोगोई मीडिया के सामने आए और कहा कि चुनाव के दिन भीड़ मतदान केंद्र को जलाने जा रही थी. लोग पत्थर बरसा रहे थे लिहाजा उन्होंने लोगों की जान बचाने के लिए एक पत्थरबाज को जीप के आगे बांध दिया था.

जनभावना का ज्वार

बीजेपी ने बाबू भाई के बयान से पल्ला तो झाड़ लिया, लेकिन पार्टी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव यह जोड़ना नहीं भूले कि अरुधंति रॉय 'कंपल्सिव अटेंशन सीकर' हैं. बीजेपी के बड़बोले सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने तो खुलकर परेश रावल का समर्थन किया.

कांग्रेस ने फारूक डार को मानव ढाल बनाये जाने की घटना की निंदा की थी. लेकिन कांग्रेस नेता और पंजाब के मुख्यंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस घटना के लिए जिम्मेदार मेजर गोगोई की तीव्र बुद्दि के मुरीद हैं. उन्होंने मेजर गोगोई को सम्मानित करने की भी बात की थी.

जन समर्थन सही होने की गारंटी तो नहीं

चाहे अरुंधति रॉय को जीप से बांध कर घुमाइये या पत्रकार सागरिका घोष को, चाहे अमरिंदर सिंह मेजर गोगोई का समर्थन करें या फिर सुब्रमण्यम स्वामी बाबू भाई के पक्ष में आवाज बुलंद करें, इससे गलत बात सही तो नहीं हो सकती.

किसी ने सही ही कहा है कि बहुमत की राय हमेशा सही हो, यह जरूरी नहीं है. बीसवीं सदी में सर्वाधिक जन समर्थन नाजियों के पास था, फिर भी यहूदियों के कत्लेआम को सही नहीं ठहराया जा सकता.