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EXCLUSIVE: चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं, तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई जारी- इशरत जहां

फ़र्स्टपोस्ट से बात करते हुए इशरत जहां ने अपनी दास्तां बताई. उन्होंने बीजेपी से जुड़ने की वजहें और भविष्य की योजनाओं पर भी हमसे बात की

Debobrat Ghose

अप्रैल, 2014 में चार बच्चों की मां इशरत जहां को दुबई से उनके पति का फोन आया. फोन कॉल में इशरत के पति ने उन्हें तीन बार तलाक बोल दिया और इससे उनकी जिंदगी पर एक तरह से विराम लग गया. इशरत की 15 साल की विवाहित जिंदगी एक झटके में खत्म हो गई. लेकिन, बात यहीं नहीं रुकी, इशरत के पति ने इस दौरान दूसरी शादी की और वह इशरत जहां से बच्चे भी ले गया.

ऐसे हालात में समर्पण करने की बजाय इशरत ने कानूनी तौर पर इस लड़ाई को लड़ने का फैसला किया.


जहां उन पांच याचिकाकर्ताओं में थीं जिन्होंने तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. ये सभी महिलाएं एक जैसे दर्द से गुजर रही थीं. इनके नाम थे- शायरा बानो, गुलशन परवीन, आफरीन रहमान और आतिया साबरी.

22 अगस्त, 2017 को ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की विवादित प्रथा पर रोक लगा दी. इस प्रैक्टिस में मुस्लिम पुरुष एक बार में तीन बार तलाक बोलकर अपनी पत्नियों को तलाक दे देते हैं. पांच जजों की बेंच ने फैसला दिया कि एक बार में तीन बार तलाक बोलना अंसवैधानिक है और यह इस्लाम की शिक्षाओं के उलट है.

एनडीए सरकार ने इस मामले को आगे बढ़ाया और 28 दिसंबर को लोकसभा में मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिजेज) बिल, 2017 पास कर दिया. इस तरह से एक बार में तीन तलाक को अवैध कर दिया गया और ऐसा करने वाले पतियों के लिए तीन साल तक की कैद का प्रावधान हो गया.

जहां की उम्र अब 31 साल है, वह वेस्ट बंगाल के हावड़ा में अपने आठ साल के बेटे के साथ रहती हैं. 30 दिसंबर को इशरत ने बीजेपी ज्वॉइन कर लिया.

फ़र्स्टपोस्ट से बात करते हुए इशरत जहां ने अपनी दास्तां बताई. उन्होंने बीजेपी से जुड़ने की वजहें और भविष्य की योजनाओं पर भी हमसे बात की. पेश हैं इस इंटरव्यू के अंशः

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से आपको ट्रिपल तलाक के खिलाफ एक क्रूसेडर के तौर पर देखा जा रहा है. अचानक बीजेपी से जुड़ने की क्या वजह है, क्या आप पर कुछ दबाव था या आपने अपनी मर्जी से ऐसा किया है?

नहीं, मेरे ऊपर किसी का कोई दबाव नहीं था. मैंने अपनी मर्जी से बीजेपी ज्वॉइन की है क्योंकि मुझे लगता है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ट्रिपल तलाक बिल पेश किया है और इससे मुस्लिम महिलाओं को एक बार में दिए जाने वाले तीन तलाक की कुप्रथा से निजात मिलेगी. मैं इस कदम से काफी खुश हूं क्योंकि अब तक किसी भी राजनीतिक पार्टी ने इस समस्या को हल करने की दिशा में पहल नहीं की. मुस्लिम महिलाएं इस समस्या से दशकों से जूझ रही हैं. मोदी जी की प्रतिबद्धता से ही मुस्लिम महिलाओं की समस्या हल हो पाई है. ऐसे में मैंने बीजेपी से जुड़ने और इस मुहिम के लिए काम करने का फैसला किया.

लेकिन, कई मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ ही कांग्रेस, एआईएमआईएम, टीएमसी समेत तकरीबन सभी पार्टियों ने बिल को लेकर चिंता जताई और इससे क्रिमिनैलिटी क्लॉज को हटाने की मांग की है....

इन्होंने बिल का विरोध किया है क्योंकि ये अपने वोट बैंक को खोना नहीं चाहते हैं- जो कि मुस्लिम आबादी है. मुस्लिमों में फैसले लेने में पुरुषों का दबदबा होता है. यह केवल वोट-बैंक की राजनीति है. यहां किसी को भी तीन तलाक का सामना कर रहीं मुस्लिम महिलाओं की दुर्दशा की चिंता नहीं है.

लेकिन, इन राजनीतिक पार्टियों ने अपना रुख स्पष्ट किया है कि अगर आरोपी पति जेल जाएगा तो वह अपनी पत्नी को मुआवजा नहीं दे पाएगा क्योंकि वह आमदनी से वंचित होगा...

कानून इस तरह का होना चाहिए कि पहले आरोपी पति को अपनी पत्नी को मुआवजा देना पड़े और इसके बाद उसे जेल भेजा जाए. एकसाथ तीन तलाक बोलकर महिला को मानसिक प्रताड़ना देने वाले किसी भी शख्स को जेल भेजना बेहद जरूरी है.

क्या आपको पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से किसी तरह का सपोर्ट मिला क्योंकि उन्हें राज्य में मुस्लिमों का बड़ा समर्थक माना जाता है?

यह निश्चित तौर पर आश्चर्यजनक है कि हमारी मुख्यमंत्री ममता जी एक महिला हैं जो कि मुसलमानों के बारे में बोलती हैं, लेकिन उन्होंने मेरी तकलीफ पर कोई गौर नहीं किया. तृणमूल कांग्रेस में से किसी ने भी मेरा हालचाल नहीं पूछा. सपोर्ट की बात तो भूल जाइए, यहां तक कि मेरे अदालत जाने पर भी कोई मेरे साथ खड़ा नहीं हुआ. मैंने पूरी लड़ाई अकेले लड़ी.

एक सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर काम करने के बजाय आपने राजनीतिक पार्टी क्यों ज्वॉइन की?

अपना केस लड़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि अकेले लड़ना कितना मुश्किल है, खासतौर पर एक ऐसे समुदाय में जोकि पूरी तरह से पुरुषों के दबदबे वाला है. मैं राजनीति से जुड़ी ताकि मैं अपनी मुस्लिम बहनों की बेहतरी के लिए काम कर सकूं. बीजेपी ने ही उस दर्द को समझा है जो हम मुस्लिम महिलाओं को ट्रिपल तलाक की वजह से झेलना पड़ता है. आप हमेशा एक खतरे में जिंदा रहती हैं कि कब आपका पति आपको तीन बार तलाक बोलकर घर से बाहर न निकाल दे.

ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड (एआईएमएलबी) को अच्छे से यह पता था कि यह प्रैक्टिस कुरान के खिलाफ है, इसके बावजूद उन्होंने इसे नहीं रोका. यह दशकों से जारी है और इससे मुस्लिम महिलाओं की हालत बेहद बुरी हो गई है.

जब आपके पति ने दुबई से फोन पर आपको तीन बार तलाक दे दिया तो आपने किसी धर्मगुरु या मौलाना से संपर्क क्यों नहीं किया?

मैं किसी धर्मगुरु या मौलाना को नहीं जानती थी. न ही मुझे कानून के बारे में कुछ पता था. मेरी दिक्कत जानने के बाद किसी मौलाना ने मुझसे संपर्क क्यों नहीं किया? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे इस मौजूदा सामाजिक बुराई के खिलाफ नहीं जानना चाहते हैं. मैं फोन पर तलाक को स्वीकार करने के लिए राजी नहीं थी. मैं इंसाफ चाहती थी और अपनी तीन बेटियों और बेटे को अपने पति से वापस चाहती थी. मैं इनकी पढ़ाई और दूसरी जरूरतों के लिए मेंटेनेंस चाहती थी. तब मैंने कानूनी मदद लेने का फैसला किया. मेरे वकील ने मेरी याचिका लोअर कोर्ट में दाखिल की और इसके बाद हमने इसे सुप्रीम कोर्ट में फाइल किया.

आपके समुदाय के परिचित लोगों को जब यह पता चला कि आप इस मसले पर कोर्ट जा रही हैं तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?

मुझे एक तरह से बहिष्कृत कर दिया गया. कोई मेरे सपोर्ट में नहीं आया. सुप्रीम कोर्ट का पिछले साल फैसला आने के बाद मुझे पड़ोसियों और ससुराल पक्ष के लोगों की ओर से अपमानित करने वाली टिप्पणियों, धमकियों और भद्दी भाषा का सामना करना पड़ा. मेरे चरित्र पर उंगली उठाई गई. यह सब एक बेहद बुरा वक्त था.

क्या इस मामले में आपको अपने परिवार के लोगों का सपोर्ट मिला?

नहीं, यहां तक कि मेरे पेरेंट्स, जो कि बिहार में रहते हैं, वो भी मेरे साथ खड़े नहीं हुए. मेरे लिए यह एक अकेली लड़ी गई लड़ाई थी, जिसमें मेरा आठ साल का बेटा मेरे साथ था.

क्या आप पश्चिम बंगाल में कोई चुनाव लड़ने की योजना बना रही हैं?

नहीं, फिलहाल मेरी ऐसी कोई योजना नहीं है. इस वक्त मैं केवल अपनी मुस्लिम महिलाओं के लिए काम करना चाहती हूं. मुझे भरोसा है कि जब यह बिल कानून बन जाएगा तब इससे ट्रिपल तलाक, दहेज और घरेलू हिंसा जैसी सामाजिक बुराइयों से मुस्लिम महिलाओं को बड़ी सुरक्षा मिलेगी.