view all

क्या राहुल नोटबंदी पर विपक्ष को एकजुट कर पाएंगे?

राहुल ने एकतरफा ढंग से नोटबंदी पर प्रेस कांफ्रेंस करके अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया.

सुरेश बाफना

नोटबंदी पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विभिन्न राज्यों में जनसभाएं करने के बाद अब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश शुरु कर दी है.

संसद के शीतकालीन सत्र में नोटबंदी पर 14 दलों ने मिलकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी की थी. लेकिन कांग्रेस द्वारा मंगलवार को आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में केवल आठ दल ही उपस्थित थे.


नोटबंदी पर बिखरा विपक्ष

इन आठ दलों में भी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस व डीएमके ही प्रमुख दल थे, बाकी के पांच दल काफी छोटे हैं. राहुल की इस पत्रकार-वार्ता में राजद नेता लालू यादव की अनुपस्थिति इस बात का स्पष्ट संकेत था कि वे राहुल के इस अभियान के प्रति अधिक उत्साहित नहीं है. डीएमके पार्टी की तरफ से भी पार्टी का कोई वरिष्ठ नेता उपस्थित नहीं था.

मोदी की नोटबंदी को राहुल गांधी एक बड़े राजनीतिक अवसर के रूप में देख रहे हैं. लगातार 12 साल तक सक्रिय राजनीति में रहने के बावजूद राहुल गांधी अपने नेतृत्व की छाप छोड़ पाने में विफल रहे.

आश्चर्य की बात यह है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताअों ने संसद के दोनों सदनों में मोदी की नोटबंदी का समर्थन किया था. जाहिर है यह समर्थन राहुल की सहमति के बिना नहीं किया गया था. तीन दिन तक समर्थन करने के बाद अचानक वे विरोधी हो गए.

अपरिपक्व राहुल 

राहुल ने एकतरफा ढंग से नोटबंदी पर प्रेस कांफ्रेंस करके अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का ही परिचय दिया. नतीजा यह हुआ कि लेफ्ट, जेडीयू और एसपी जैसे प्रमुख दलों ने इस पत्रकार-वार्ता में शामिल होने से इंकार कर दिया. राहुल ने इस बात का भी अहसास कराया कि कांग्रेस पार्टी अकेले मोदी सरकार का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है.

प्रेस कांफ्रेंस में तृणमूल कांग्रेस पार्टी की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने नोटबंदी पर असफल होने की स्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस्तीफे की मांग की. वहीं राहुल गांधी सिर्फ भ्रष्टाचार के आरोपों पर जांच की मांग तक ही सीमित रहे.

उत्तर प्रदेश में होनेवाले चुनाव को देखते हुए एसपी और बीएसपी कभी भी राहुल गांधी के मोदी-विरोधी अभियान में शामिल होने के लिए तैयार नहीं होगी.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नोटबंदी पर प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करके यह स्पष्ट किया है कि वे भविष्य की राजनीति में मोदी के खिलाफ प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं. इस वजह से राष्ट्रीय स्तर पर राहुल और नीतीश के बीच तालमेल होना असंभव है.

ममता बनर्जी ने पिछले दिनों नोटबंदी पर लखनऊ व पटना में रैलियां करके स्पष्ट संदेश दिया है कि वे अब प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर अपना दावा ठोंकने के लिए तैयार हैं. वे राहुल के नेतृत्व में होनेवाले किसी आंदोलन का हिस्सा बन पाएगी, यह सोचना वास्तविकता से परे हैं. पश्चिम बंगाल में दोनों एक-दूसरे के राजनीतिक शत्रु हैं.

तस्वीर: पीटीआई

नोटबंदी होगा मुख्य चुनावी मुद्दा 

नोटबंदी अब एक चुनावी मुद्दा बन गया है. अगले साल फरवरी के अंत में होनेवाले पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से स्पष्ट होगा कि इसका लाभ मोदी सरकार को होगा या उनके विरोधियों को.

राहुल गांधी के साथ आज जुड़ी पार्टियां दिल्ली में एकजुट दिखाई देगी, लेकिन राज्य के स्तर पर यह एकजुटता खत्म हो जाती है. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी ममता के खिलाफ वाम दलों से हाथ मिलाती दिखाई देती है.

राहुल गांधी तमाम कोशिशों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भ्रष्टाचार के कटघरे में खड़ा करने में अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं. सहारा व बिड़ला की कम्प्यूटर एक्सेल शीट ने भाजपा के साथ कांग्रेस नेताअों को भी भ्रष्टाचार के कटघरे में खड़ा किया है.

राहुल गांधी ने आज कहा कि सहारा व बिड़ला की एक्सेल शीट में दी गई जानकारी पूरी तरह सच है. यदि ऐसा है तो मोदी से स्पष्टीकरण मांगने या जांच की मांग करने के पहले राहुल गांधी को उन कांग्रेस नेताअों को पार्टी से बाहर करना चाहिए, जिनके नाम इस एक्सेल शीट में हैं.