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झारखंड में रघुबर दास का हाथी उड़ रहा है और संविधान सड़ रहा है

संविधान के मुताबिक किसी भी राज्य में कम से कम 12 सदस्यों वाला मंत्रिमंडल होना चाहिए लेकिन रघुवर दास की कैबिनेट में सिर्फ 11 मंत्री हैं

Ravi Prakash

भारत में राज्य सरकारों में बदइंतजामी के किस्से बिखरे मिलते हैं लेकिन ऐसा किस्सा मिलना मुश्किल है. झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने राज्य के एक मंत्री को बुलाकर सरकार के असंवैधानिक कामों पर चिंता जताई. मंत्री जी भागे-भागे गए और उन्होंने मुख्यमंत्री रघुबर दास को खत लिखकर राज्यपाल की बात बताई.

मंत्री जी को उनके खत का जवाब मिला 'आपका खत संबंधित विभाग को भेज दिया गया है.' मंत्री जी ने माथा ठोंक लिया और राज्यपाल तब से असमंजस में हैं क्योंकि संबंधित विभाग उन्हीं मंत्री का है जिन्होंने खत लिखा. यानी सरयू राय.


पहली नजर में यह बाबुओं की सामान्य काहिली का बासी नमूना लग सकता है लेकिन ऐसा है नहीं. मामला संवैधानिक है.

क्या है असंवैधानिक?  

दरअसल झारखंड की बीजेपी सरकार में एक मंत्री पद खाली है. संविधान कहता है कि यहां 12 सदस्यों वाला मंत्रिमंडल होना चाहिए लेकिन रघुबर दास की कैबिनेट में सिर्फ 11 मंत्री हैं.

संविधान के उल्लंघन का झारखंड में यह अकेला मामला नहीं है. संविधान कहता है कि पांचवी अनुसूची के आदिवासी बहुलता वाले झारखंड, उड़ीसा और मध्य प्रदेश में आदवासी कल्याण विभाग का होना जरूरी है.

लेकिन झारखंड में आदिवासी कल्याण विभाग को खत्म कर के उसे 'समाज कल्याण, कल्याण तथा महिला एवं बाल विकास विभाग में मिला दिया गया है.' इस विभाग की मंत्री लुईस मरांडी हैं.

मौजूदा रघुबर दास सरकार अपने कार्यकाल का सवा दो साल पूरा कर चुकी है. इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने बारहवें मंत्री को लेकर कोई कवायद शुरू नहीं की है. इस कारण रघुवर सरकार को बर्खास्त करने की मांग उठने लगी है.

मंत्री ना होने पर हंगामा 

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने बताया कि मंत्रिमंडल में सिर्फ 11 मंत्री होने के मुद्दे पर तत्कालीन राज्यपाल वेद मारवाह ने उस समय की अर्जुन मुंडा सरकार को बर्खास्त करने की धमकी दी थी. इसके बाद मुंडा ने आनन-फानन में अपने मंत्रिमंडल के 12वें मंत्री को शपथ दिलवाई.

अर्जुन मुंडा की ही सरकार को तत्कालीन राज्यपाल ने साल 2010 में भी 12 से कम मंत्री होने के मुद्दे पर पत्र लिख कर तय समय सीमा के अंदर मंत्रिमंडल का आकार पूरा करने को कहा था. सरकार को तब यह बात माननी पड़ी थी.

संवैधानिक अर्हताएं पूरी नहीं

लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचरे ने बताया कि किसी भी राज्य के मंत्रिमंडल में कम से कम 12 मंत्री होने ही चाहिए. ऐसा नहीं करना संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन माना जाएगा.

आचरे ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 164 (1-ए) कहता है कि किसी भी राज्य का मंत्रिपरिषद उसके विधायकों की कुल संख्या का 15 फीसदी होना चाहिए. यह मंत्रियों की अधिकतम संख्या होगी. लेकिन, किसी भी परिस्थिति में मंत्रिमंडल में 12 से कम मंत्री नहीं हो सकते. इस कारण गोवा जैसे राज्यों में विधायकों की संख्या कम होने के बावजूद 12 मंत्रियों का प्रावधान है.

राज्यपाल निर्णय लें

उन्होंने बताया कि ऐसी परिस्थिति में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू संज्ञान ले सकती हैं. उन्हें मुख्यमंत्री को इस बात के लिए बाध्य करना चाहिए कि वह अपने बारहवें मंत्री की नियुक्ति कर लें. चूंकि राज्यपाल ने संविधान की रक्षा की शपथ ली है और यह मामला उसी के अधीन आता है.

आदिवासी कल्याण विभाग का भी यही हश्र

राज्य सरकार में भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि राज्यपाल मुर्मू ने लुईस मरांडी को बुला कर आदिवासी कल्याण मंत्रालय के बारे में पूछा. इसपर उन्होंने बताया कि वो विभाग उनके विभाग में मिला दिया गया है. राज्यपाल ने फिर संसदीय कार्य मंत्री को बुला कर कहा कि इस विभाग का दूसरे विभाग में विलय करना संविधान का उल्लंघन है और सरकार को आदिवासी कल्याण विभाग के नाम से एक विभाग रखना ही होगा.

सूत्रों के अनुसार सरयू राय ने फिर मुख्यमंत्री रघुबर दास को खत लिखा. उन्हें फिर से वही उत्तर आया, 'आपका खत संबंधित विभाग को भेज दिया गया है.'

'संविधान नहीं मानती बीजेपी सरकार'

राज्य के पहले मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा (प्र) के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि बीजेपी की सरकार संविधान और कानून को नहीं मानती. इस कारण संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद रघुवर दास ने मंत्री पद खाली रखा है. ऐसे में राज्यपाल को इस सरकार को बर्खास्त कर देना चाहिए.

कुल मिला कर राज्य सरकार के इस रुख से राज्यपाल हैरान हैं, सरकार के मंत्री परेशान हैं लेकिन लगता है कि मुख्यमंत्री के यहां इत्मीनान ही इत्मीनान है.