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तो क्या बिहार में वक्त से पहले विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है?

शायद लोकसभा चुनाव के साथ बिहार में विधानसभा चुनाव होने से मोदी लहर का फायदा मिल जाए

Amitesh

जेडीयू के बिहार अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के बयान ने पटना के सियासी गलियारों में खलबली मचा दी है. वक्त से पहले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं. जेडीयू अध्यक्ष ने कहा है कि अगर लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा का चुनाव कराया जाता है तो हमारी पार्टी इसके लिए तैयार है.

वशिष्ठ नारायण सिंह का बयान प्रधानमंत्री के उस सुझाव पर है जिसमें उनकी तरफ से लोकसभा के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा का चुनाव एक साथ कराने की बात कही गई है.


प्रधानमंत्री का तर्क रहा है कि समय और धन की बचत के साथ-साथ विकास के कामों में भी इससे तेजी आएगी. क्योंकि हर साल होने वाले चुनाव के चलते लोकलुभावन फैसले विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर सामने आ जाते हैं.

एक साथ चुनाव कराने का तर्क यह भी रहता है कि सरकार में आने के बावजूद नेता राजनीतिक गतिविधियों और चुनाव-प्रचार में व्यस्त रहते हैं. व्यस्तता सरकार के काम-काज पर पूरी तरह से फोकस नहीं कर पाते.

नीति आयोग ने भी कुछ दिन पहले देश भर में लोकसभा के साथ-साथ सभी विधानसभा चुनाव कराने का सुझाव दिया था. तर्क यही था, संसाधनों की बचत बेहतर काम.

लेकिन, जेडीयू के बिहार अध्यक्ष के बयान का मतलब बस इतना ही भर नहीं है. उनकी बातों पर गौर करें तो इसमें बिहार की ताजा सियासी तस्वीर की झलक देखने को मिल रही है.

आरजेडी से अलग होकर बिहार में बीजेपी के साथ सरकार चला रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक साथ बिहार में कई सवालों का जवाब देना पड़ रहा है. खासतौर से लालू यादव और उनके कुनबे ने नीतीश कुमार को निशाने पर ले रखा है. आरोप लगाया जा रहा है कि जनादेश का अपमान कर बीजेपी के साथ जेडीयू का गठबंधन हुआ है.

इसके अलावा जेडीयू के भीतर भी शरद यादव के नेतृत्व में एक तबका जेडीयू के एनडीए में शामिल होने और महागठबंधन से अलग होने का विरोध कर रहा है. भले ही शरद यादव और अली अनवर समेत उनके सहयोगियों पर पार्टी की तरफ से कार्रवाई की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद पार्टी के भीतर एक तबका है जिसे बीजेपी का साथ रास नहीं आ रहा है.

नीतीश सरकार पर किसी तरह का कोई खतरा दूर-दूर तक नहीं है, लेकिन, पार्टी के भीतर इन नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आ रही है जो खुलकर अपनी पार्टी के बजाए लालू यादव के प्रति ज्यादा हमदर्दी दिखा रहे हैं.

जेडीयू को लगता है कि अगर फिर से चुनाव हो जाएं तो इन सारे सवालों का जवाब मिल सकता है और विरोधियों को पटखनी दी जा सकती है. खासतौर से लालू यादव को जो लगातार जनादेश के अपमान और जनता से धोखा करने का आरोप लगा रहे हैं. साथ ही शरद यादव को भी उनकी ताकत का एहसास हो सकता है.

आरजेडी इस वक्त विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी भी है

इस वक्त बिहार विधानसभा में आरजेडी के पास 80 विधायक हैं. 2005 में सत्ता से बाहर होने के बाद से आरजेडी के विधायकों की यह सबसे बड़ी संख्या है. इस वक्त आरजेडी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी भी है. यही तादाद लालू और उनके बेटे तेजस्वी को लगातार सरकार पर हमलावर होने का ताकत दे रही है. जेडीयू को लग रहा है कि पहले नीतीश की छवि का फायदा उठाकर आरजेडी ने अपनी सीट बढ़ा ली थी. अब इस बार जब नीतीश–मोदी दोनों साथ-साथ आ गए हैं तो फिर आरजेडी की सीटों की संख्या भी कम हो जाएगी और लालू की ताकत इतनी कम हो जाएगी जिससे वो इस कदर बवाल नहीं काट पाएंगे.

जेडीयू के रणनीतिकारों को लग रहा है कि अभी मौजूदा सरकार के कार्यकाल के तीन साल बचे हैं. ऐसे में तीन साल तक लालू के इन आरोपों का जवाब देना होगा, लालू एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में हर जगह हर मुद्दे पर हंगामा करते रहेंगे. ऐसे में इतने लंबे वक्त तक चुनाव का इंतजार करने से बेहतर होगा कि वक्त से पहले ही चुनाव करा लिए जाएं.

शायद लोकसभा चुनाव के साथ बिहार में विधानसभा चुनाव होने से मोदी लहर का फायदा मिल जाए. इसी आस में जेडीयू बड़ी तैयारी कर रही है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार में भी बिगुल बज जाए.