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लखनऊ की सीटों पर सबसे बड़ा 'दंगल' : बहू-बेटी और बागी की जंग

लखनऊ की सीट पर जहां बहू-बेटी की जंग देखने को मिल रही है वहीं बागी फैक्टर भी दिखाई दे रहा है.

FP Staff

साल 2012 में उत्तर प्रदेश में बदलाव की आंधी 'साइकिल' पर बैठ कर चली थी. नतीजा ये रहा कि सूबे में सबसे ज्यादा सीट लेकर समाजवादी पार्टी ने सरकार बनाई.

साइकिल की लहर का असर था कि लखनऊ में 9 सीटों में 7 सीटों पर साइकिल ही दौड़ी. सपा ने 7  सीटों पर कब्जा किया. जबकि बीजेपी और कांग्रेस को केवल 1-1 सीट ही मिल सकी.


लेकिन इस बार नवाबों की नगरी में समीकरण बदल चुके हैं. पांच साल में गोमती में काफी पानी बहा है. इस बार बीजेपी और बीएसपी से सपा को कड़ी टक्कर मिल रही है. अखिलेश सरकार के 3 मंत्री लखनऊ से उम्मीदवार है जिनमें से एक को हाल ही में बर्खास्त भी किया गया है.

यूपी में लखनऊ कैंट की सीट पर सबकी नजर रहेगी. खास बात ये है कि इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है और ये कब्जा रीता बहुगुणा ने अपनी शानदार जीत से दिलाया था. लेकिन इस बार खुद रीता बहुगुणा कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गई हैं और अपनी जीती हुई सीट से बीजेपी की उम्मीदवार हैं. रीता बहुगुणा के सामने समाजवादी पार्टी ने अपर्णा यादव को खड़ा किया है. मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं अपर्णा यादव . अपर्णा यादव पहली बार राजनीति में अपनी किस्मत आजमा रही हैं. अपर्णा यादव खुद भी पॉलिटिकल साइंस की स्टूडेंट रही हैं.

जबकि बहुजन समाज पार्टी ने लखनऊ कैंट से योगेश दीक्षित को खड़ा किया है.

रीता बहुगुणा ने लखनऊ कैंट की सीट से कांग्रेस के टिकट पर साल 2012 मे बीजेपी के उम्मीदवार सुरेश तिवारी को हराया था. सुरेश तिवारी 3 बार से लखनऊ कैंट की सीट लगातार जीत रहे थे.

लखनऊ कैंट की सीट समाजवादी पार्टी के लिये कभी लकी नहीं रही है. सपा कभी भी इस सीट को नहीं जीत पाई है. एक समय था जबकि लखनऊ कैंट की सीट कांग्रेस के गढ़ के नाम से मशहूर थी. 1957 में पहली बार कांग्रेस के श्याम मनोहर मिश्रा यहां से विधायक बने थे. साल 1974 में चौधरी चरण सिंह इसी सीट से कांग्रेस के विधायक बने थे. 1991 में पहली बार बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा किया था और सतीश भाटिया यहां से चुनाव जीते थे. जिसके बाद वो दूसरा चुनाव भी 1993 में जीते थे.

साल 1996 से बीजेपी के सुरेश चंद्र तिवारी लगातार लखनऊ कैंट की सीट से जीतते आए. लेकिन बीजेपी के विजय रथ को ब्रेक लगाया रीता बहुगुणा ने. साल 2012 में रीता बहुगुणा चुनाव जीतीं जो कांग्रेस के लिये बड़ी कामयाबी थी.

लखनऊ कैंट की सीट 5 बार जीती बीजेपी

माना जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लखनऊ से सांसद बनने के बाद धीरे धीरे कांग्रेस के गढ़ में बीजेपी की सेंध गहराती चली गई.यही वजह रही कि 1991 से 2007 तक लगातार 5 बार बीजेपी लखनऊ कैंट की सीट से जीतती आई.

लखनऊ कैंट की सीट का इतिहास गवाही देता है कि यहां सीधी टक्कर बीजेपी और कांग्रेस के बीच रही है. यहां ब्राह्मण वोटर हार जीत का फैसला तय करते आए हैं.

सवर्ण उम्मीदवारों पर पार्टियों का दांव

यही वजह है कि पार्टियां यहां से सवर्ण उम्मीदवार पर दांव चलती हैं. कैंट सीट में कुल मतदाताओं की संख्या करीब तीन लाख पन्द्रह हजार है. यहां सबसे ज्यादा एक लाख से अधिक ब्राह्मण, 50 हजार दलित, 40 हजार वैश्य, 30 हजार पिछड़े, 25 हजार क्षत्रिय और 25 हजार मुस्लिम हैं. चुनाव में ब्राह्मणों के अलावा पहाड़ी, सिंधी, पंजाबी और दलित समुदाय के वोटर भी निर्णायक साबित होते हैं.

लखनऊ मध्य में कांग्रेस बनाम समाजवादी पार्टी 'दंगल' ?

लखनऊ मध्य से सपा के विधायक रविदास मेहरोत्रा ने पिछला चुनाव जीता था. इस बार भी रविदास मेहरोत्रा लखनऊ मध्य की सीट से सपा की उम्मीदवारी कर रहे हैं. रविदास मेहरोत्रा कैबिनेट में मंत्री भी रहे हैं और मुलायम सिंह यादव के करीबी माना जाते हैं. वहीं यहां त्रिकोणीय मुकाबले के लिये बीजेपी ने बीएसपी से आए ब्रजेश पाठक को मैदान में उतारा है. जबकि बीएसपी ने राजीव श्रीवास्तव को यहां से उम्मीदवार बनाया है. जबकि कांग्रेस के टिकट से मारुफ खान यहां से चुनाव लड़ रहे थे लेकिन सपा- कांग्रेस के गठबंधन के बाद उनके टिकट कटने की खबर है. हालांकि कहा जा रहा है कि मारुफ खान ने बागी तेवर अपनाते हुए मैदान से हटने से इनकार कर दिया है जिस वजह से पार्टी में अजीब सी स्थिति बन गई है.