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राम मंदिर मुद्दा: क्या सुप्रीम कोर्ट की आलोचना कर इंद्रेश कुमार ने ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघ दी है?

अयोध्या में राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में देरी के चलते आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों पर सवाल उठा दिया है.

Amitesh

अयोध्या में राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में देरी के चलते आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों पर सवाल उठा दिया है. इंद्रेश कुमार ने कहा, ‘मैंने नाम नहीं लिया है, क्योंकि भारत के 125 करोड़ लोग उनके नाम जानते हैं, तीन जजों की एक बेंच वहां थी. उन्होंने देरी की, इसे नकारा, इसका अपमान किया. यह अनुचित किया है.’

इंद्रेश का सुप्रीम कोर्ट के जजों पर सवाल


इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, ‘संघ के नेता इंद्रेश कुमार ने तो दावा किया कि विधानसभा चुनाव के चलते आदर्श आचार संहिता लगाई गई है, वरना, केंद्र सरकार अयोध्या मामले में कानून बनाने को लेकर भी आगे बढ़ने का प्लान कर रही थी.’लेकिन, दूसरी तरफ, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज के ऊपर फिर से यह शंका जता दी कि हो सकता है सरकार के अध्यादेश लाने के खिलाफ कोई सुप्रीम कोर्ट जाएगा, तो चीफ जस्टिस उसे स्टे भी कर सकते हैं.

इंद्रेश कुमार ने एक कदम आगे बढ़ते हुए यहां तक कह दिया कि अयोध्या मुद्दे की सुनवाई टलने से लोग नाराज हैं. उनमें सुप्रीम कोर्ट के 2-3 जजों (बेंच) को लेकर गुस्सा है. लोगों को अभी भी न्यायपालिका पर भरोसा है लेकिन, 2-3 जजों की वजह से न्यायपालिका, अदालत का अपमान हो रहा है. इस मामले की सुनवाई जल्द होनी चाहिए. इसमें क्या समस्या है?

इंद्रेश की सुप्रीम कोर्ट पर दबाव की कोशिश?

पंजाब यूनिवर्सिटी के कैंपस में जोशी फाउंडेशन द्वारा आयोजित 'जन्मभूमि में अन्याय क्यों' सेमिनार में बोलते हुए इंद्रेश की तरफ से दिया गया. यह बयान सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ सीधा हमला है. संघ के नेता ने सीधे सुप्रीम कोर्ट के जजों के अधिकार क्षेत्र में दखल देने की कोशिश की है. संघ के नेता का यह बयान क्या रामजन्मभूमि के विषय को आस्था का विषय बताकर उनकी तरफ से जजों पर दबाव बनाने की कोशिश नहीं है. पहली नजर में तो ऐसा ही दिखता है.

रामजन्मभूमि का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसमें विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश था. इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरी हिस्सा निर्मोही अखाड़े में बांटने की बात कही गई थी. इस फैसले के खिलाफ सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. उसके बाद से ही सुप्रीम कोर्ट में यह मामला लंबित है.

अयोध्या मसले पर सुनवाई टलने से संघ नाराज!

पिछले 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर नियमित सुनवाई की तारीख तय हुई थी, लेकिन, उस दिन चीफ जस्टिस की अगुआई वाली बेंच ने इस मामले को जनवरी 2019 तक टाल दिया. इसके बाद से ही संघ परिवार की तरफ से तल्ख तेवर दिखाया जा रहा है. संघ के नेता इंद्रेश कुमार का बयान उसी तल्खी को दिखा रहा है. लेकिन, उनकी यह तल्खी उस मर्यादा को तोड़ रही है, जो भारत में न्यायपालिका को एक अलग पहचान और सम्मान प्रदान करती है.

हालांकि राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में देरी को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी अपनी नाखुशी जताई है. लेकिन, अपनी बातों को सामने रखने का उनका अंदाज अलग था.

भागवत की कानून बनाने की मांग

भागवत ने कहा था, ‘यह मामला कोर्ट में है. इस मामले पर फैसला जल्द से जल्द आना चाहिए. ये भी साबित हो चुका है कि वहां मंदिर था. सुप्रीम कोर्ट इस मामले को प्राथमिकता नहीं दे रहा है.’ मोहन भागवत ने कहा कि अगर किसी कारण, अपनी व्यस्तता के कारण या समाज की संवेदना को न जानने के कारण कोर्ट की प्राथमिकता नहीं है तो सरकार सोचे कि इस मंदिर को बनाने के लिए कानून कैसे आ सकता है और जल्द ही कानून को लाए. यही उचित है.

मोहन भागवत ने सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जनवरी तक इस मामले की सुनवाई टाले जाने के बाद सरकार से इस मसले पर कानून बनाने की मांग की गई. उन्हें ऐसा लग रहा है कि जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जनभावना को ध्यान में नहीं रख रहा है तो सरकार तो ऐसा कर ही सकती है. लिहाजा वो सरकार से इस मामले में कानून का रास्ता अपनाने की मांग करते दिख रहे हैं.

उन्होंने 25 नवंबर को धर्मसभा में भी मंदिर मसले पर लड़ने के बजाए अड़ने की अपील की. इसके लिए संघ प्रमुख ने जनजागरण अभियान चलाने को कहा है. दरअसल, मोहन भागवत जनता के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाए जाने के लिए जनजागरण अभियान की वकालत कर रहे हैं. लेकिन, उनकी तरफ से सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाने वाली कोई बात नहीं कही जा रही है. भागवत संविधान और सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा का ख्याल रखते हुए मंदिर अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन, उनके ही संगठन के नेता इंद्रेश कुमार का बयान उस मर्यादा को तार-तार कर रहा है.

मोदी ने सुनवाई के लिए ‘कोर्ट नहीं कांग्रेस’ को ठहराया जिम्मेदार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कांग्रेस पर सुप्रीम कोर्ट के जजों को धमकाने का आरोप लगा दिया था. 25 नवंबर को राजस्थान के अलवर की अपनी चुनावी रैली में भी मोदी ने कहा था, ‘जब सुप्रीम कोर्ट का कोई जज अयोध्या जैसे गंभीर संवेदनशील मसलों में देश को न्याय दिलाने की दिशा में सबको सुनना चाहता है तो कांग्रेस के राज्यसभा के वकील सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों के खिलाफ महाभियोग लाकर उनको डराते धमकाते हैं. कांग्रेस न्याय प्रक्रिया में दखल देती है.’

मोदी की तरफ से भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टालने के मुद्दे पर कुछ नहीं कहा गया. मोदी सरकार चाहती थी कि सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मामले में जल्द से जल्द फैसला करे, लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मामला टालने के बावजूद मोदी इसके लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराते दिख रहे हैं. सुनवाई में देरी के मुद्दे को भी प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के ‘नकारात्मक’ रवैये से जोड़ दिया.

लेकिन, भागवत और मोदी की लाइन से अलग हटकर इंद्रेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के जजों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है. ऐसे बयानों से कुछ वक्त के लिए सुर्खियां तो बटोरी जा सकती हैं लेकिन, इससे न तो संघ का फायदा होने वाला है और न ही बीजेपी का.