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पाकिस्तान को लेकर भारतीय रणनीति में होने चाहिए कुछ ठोस बदलाव..

भारत ने कुछ ऐसे कदम लिए हैं जो पाकिस्तान को लेकर भारत के कंफ्यूजन को जाहिर करते हैं

Sreemoy Talukdar

क्या भारत की विदेश नीति बनाने वालों को ये कहा गया है कि वो बीजेपी-शिवसेना के रिश्तों की बुनियाद पर पाकिस्तान को लेकर रणनीति बनाएं?

हम ये सवाल भारत के कुछ ताजा कदमों की बुनियाद पर उठा रहे हैं. ये ऐसे कदम हैं जो पाकिस्तान को लेकर भारत के कंफ्यूजन को जाहिर करते हैं.


जैसे बीजेपी और शिवसेना महाराष्ट्र में कभी हां-कभी ना कहकर रिश्ता निभा रहे हैं, ठीक वैसे ही पाकिस्तान को लेकर भारत का रवैया दिखता है. अब देखिए न, संयुक्त राष्ट्र में भारत..कश्मीर को लेकर पाकिस्तान पर करारा वार करता है.

उसे हिंसा और आतंकवाद का जिम्मेदार बताता है. मगर संसद में जब एक निजी विधेयक लाया जाता है जिसमें पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने का प्रस्ताव है तो सरकार उसका विरोध करती है.

पाकिस्तान पर मोदी की कथनी और करनी में फर्क क्यों?

पाकिस्तान पर इस विरोधाभासी रणनीति को लेकर मोदी सरकार से कुछ सवाल पूछे जाने चाहिए.

पहला सवाल तो ये कि भारत की पाकिस्तान नीति क्या है? मौजूदा नीति (अगर कोई है तो) पेंडुलम की तरह एक छोर से दूसरे छोर तक जाने वाली है.

कभी तो हम सीना फुलाकर पाकिस्तान को सख्त संदेश देते हैं और कभी नरमी बरतते हैं.

दूसरा सवाल मोदी सरकार से होनी चाहिए कि वो सीमा पार आतंकवाद से कैसे निपटेंगे? क्योंकि पाकिस्तान लगातार आतंकवाद को प्रायोजित कर रहा है. आतंकियों को प्रश्रय दे रहा है. ऐसे में आतंकवादियों से निपटने के लिए एनडीए सरकार क्या कर रही है?

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आज की तारीख में आतंकवाद हमारे देश के लिए नासूर बन चुका है. कभी-कभार संयुक्त राष्ट्र और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तीखे तेवर दिखाने से तो इससे निपटा नहीं जा सकता.

ऐसे में पाकिस्तान के साथ रिश्तों को लेकर सरकार को अपनी रणनीति साफ करनी चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र में भारत और पाकिस्तान अक्सर आमने-सामने रहे हैं

जुबानी जंग से ऊबे संयुक्त राष्ट्र के राजनयिक

संयुक्त राष्ट्र के राजनयिक बार-बार के भारत-पाकिस्तान की जुबानी जंग से ऊब चुके हैं. पाकिस्तान इसकी शुरुआत कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन को उठाकर करता रहा है.

फिर भारत इसका जवाब पाकिस्तान से आतंकवाद के कारखाने बंद करने की मांग करके देता है. हाल के दिनों में भारत ने ख़ैबर-पख्तू़नख्वा और ब्लूचिस्तान में सरकारी जुल्म के मुद्दे को भी आतंकवाद के साथ जोड़ दिया है.

हमें नहीं मालूम की इस रणनीति से भारत को क्या फायदा होता है. फिर संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद की 34वीं बैठक में हमने फिर ऐसा होते हुए देखा

पाकिस्तान के कानून मंत्री जाहिद हमीद ने कहा कि भारत ने कश्मीर पर अवैध कब्जा कर रखा है. वहां के लोगों के मानवीय हक मार रहा है.

कश्मीरियों को अपना भविष्य खुद चुनने की आजादी नहीं दे रहा है. जाहिद हमीद ने कहा कि कश्मीर को लेकर भारत पूरी दुनिया को झूठी कहानियां सुनाता रहा है. वो लगातार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का उल्लंघन कर रहा है.

घिसे-पिटे आरोपों का घिसा-पिटा जवाब

संयुक्त राष्ट्र के जेनेवा दफ्तर में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अजीत कुमार ने पाकिस्तान के इन आरोपों का वैसा ही जवाब दिया, जितना घिसा-पिटा पाकिस्तान का आरोप था.

हाफिज सईद की तरफ इशारा करते हुए अजीत कुमार ने कहा कि, 'पिछले दो दशकों से एक मोस्ट वांटेड आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहा है'.

पाकिस्तान में हुए हालिया आतंकवादी हमलों का हवाला देते हुए अजीत कुमार ने कहा कि, 'पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ कई आतंकवादी गुट बनाए हैं और अब यही भस्मासुर उसे तबाह कर रहा है'.

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अजीत कुमार ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव लागू करने के लिए जरूरी है कि पाकिस्तान पहले अपने कब्जे वाले कश्मीर से सेना हटाए. अजीत कुमार ने पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र भी बताया.

अजीत कुमार का ये भाषण सुनने में भले अच्छा लगे मगर इससे भारत का कोई मकसद हल नहीं होता.

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आतंक का गढ़ है पाकिस्तान

क्या दुनिया को बार-बार ये बताने की जरूरत है कि पाकिस्तान, आतंकवाद का गढ़ है?

अभी कुछ महीनों पहले ही संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताते हुए कहा था कि पाकिस्तान अपनी धरती से पूरी दुनिया में आतंकवाद का जहर फैला रहा है.

पाकिस्तान की सरकार खुलेआम आतंकवादियों को पनाह देती है जो कि युद्ध अपराध है.

उरी में सेना के ठिकाने पर आतंकी हमले से झल्लाए भारत की तरफ से ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद थी. तब भारत सरकार ने ऐसा गुस्सा जाहिर किया था जिससे लगा था कि जल्द ही हम इस मोर्चे पर कुछ ठोस कदम उठते हुए देखेंगे

मगर इस शानदार भाषण के कुछ महीनों बाद ही राजनाथ सिंह की अगुवाई वाले गृह-मंत्रालय ने सांसद राजीव चंद्रशेखर को बताया कि सरकार..पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने के उनके बिल का विरोध करेगी.

3 फरवरी को राजीव चंद्रशेखर ने राज्यसभा में ये बिल पेश किया था. इसमें उन्होंन 1998 से 29 जनवरी 2017 तक के आंकड़े दिए थे.

जिसमें उन्होंने बताया था कि 14741 नागरिक इस दौरान आतंकवाद के चलते मारे गए और इसी दौरान 6274 जवान आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए. 1998 से लेकर 29 जनवरी 2017 तक कुल 23146 आतंकवादी मारे गए हैं.

बिल पेश करते हुए राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि 'आतंकवाद और आतंकवादियों को बढ़ावा देने का पाकिस्तान का लंबा इतिहास रहा है. इसके पुख्ता सबूत हमारे पास हैं. हम दूसरे देशों से पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने को कहें, इससे पहले हमें खुद ये कदम उठाना चाहिए'.

इस बिल पर सरकार के एक सूत्र ने 'द हिंदू' अखबार को बताया कि ऐसा कदम जेनेवा कन्वेंशन के खिलाफ होगा और अंतरराष्ट्रीय संबंध पर बुरा असर डालेगा.

भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा

अब इसका क्या मतलब है?

उस सरकारी सूत्र ने अखबार को आगे बताया कि, 'पड़ोसी देश से हमारे राजनयिक संबंध हैं. हमारे उच्चायोग हैं. कारोबारी रिश्ते हैं. ऐसे में किसी भी देश को आतंकवादी देश घोषित करना गलत होगा. भारत अंतरराष्ट्रीय नियमों को लेकर प्रतिबद्ध है'.

हम किस तरह के राजनयिक संबंधों की बात यहां कर रहे हैं? क्या उस संबंध की जिसमें मोदी की लाहौर यात्रा के जवाब में आतंकवादी हमला होता है. या फिर ठंडे पड़ चुके खालिस्तानी आतंकवाद की आग को बढ़ावा देने वाला आपसी संबंध?

यही बात उस वक्त क्यों नहीं सोची गई, जब हम चीख-चीखकर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को कोस रहे थे. या फिर किसी स्थायी विदेश नीति के बजाय हम कभी हां-कभी ना की नीति पर काम कर रहे हैं.

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जब पाकिस्तान की बारी आती है तो हमारी नीति घड़ी के पेंडुलम के माफिक हो जाती है. कभी हम उस पर तगड़ा हमला करते हैं. आतंकवादी हमला होने पर जुबानी जंग छेड़ देते हैं और कभी अंतरराष्ट्रीय नियमों का हवाला देकर उसके खिलाफ सख्त कदम उठाने से गुरेज करते हैं.

जब हम खुद अपनी ही बात पर कायम नहीं पा रहे तो हम एशिया में या फिर पूरी दुनिया में अपनी ताकत की धाक कैसे जमा पाएंगे? हमारी सबसे बड़ी राजनयिक चुनौती का शायद हमारे पास कोई ठोस जवाब ही नहीं.

राजीव चंद्रशेखर ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लेख में ठीक ही लिखा था, 'भारत की त्रासदी है कि यहां पाकिस्तान के बारे में राय आतंकवादी घटनाओं के साथ बदलती रहती है'. यानी जब हमले होते हैं, तो हमें गुस्सा आता है. मगर कुछ दिनों बाद ही हमारा वो गुस्सा ठंडा पड़ जाता है.

जम्मू में सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मी

भारत को अपनाना होगा कड़ा रुख 

अगर हमें ये पता है कि पाकिस्तान सरकार प्रायोजित आतंकवाद की नीति से भारत से निपटने की कोशिश कर रहा है. उसकी ये नीति कामयाब भी हो रही है. तो हमें भी कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे हमें कम से कम नुकसान हो.

सिर्फ संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के खिलाफ बयानबाजी या फिर अंतराष्ट्रीय स्तर पर उसे अलग-थलग करने की नीति से कुछ नहीं होगा. हम पाकिस्तान के साथ शांति बहाली की कोशिश करके कई बार देख चुके हैं. ये नीति भी नाकाम रही है बल्कि देश को नुकसान ही हुआ है.

पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करना सिर्फ प्रतीकात्मक कदम है. लेकिन इससे कम से कम भारत पूरी दुनिया को ये तो बता सकेगा कि पाकिस्तान को लेकर उसका रुख और नीति क्या है.

इस वक्त अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी उठा-पटक चल रही है. चीन के मुकाबले भारत एक उभरती हुई आर्थिक और लोकतांत्रिक ताकत के तौर पर देखा जा रहा है. हमें इस मौके का फायदा उठाकर पाकिस्तान से सख्ती से पेश आना चाहिए. पाकिस्तान को लेकर हमारा धैर्य अब खत्म हो रहा है.