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देश का अपमान है पेट्रोल के दाम में एक पैसे की बढ़ोतरी!

पेट्रोल की कीमत बढ़ने को आम आदमी ने अपनी मजबूरी मान ली है. वहीं, विपक्ष के लिए भी अब यह कोई मुद्दा नहीं रह गया है

Piyush Pandey

बताइए, ये क्या बात हुई भला कि पेट्रोल की कीमत बढ़ाई गई तो सिर्फ एक पैसा प्रति लीटर. इसे किसकी बेइज्जती समझा जाए? पेट्रोल जैसे शानदार आइटम की, जिसके लिए दुनिया विश्व युद्ध तक कर सकती है.

सरकार की, जिसके पास हर अधिकार है कि वो किसी भी चीज के दाम कितने भी न केवल बढ़ा सकती है बल्कि वसूल भी कर सकती है. या ये बेइज्जती विपक्ष की है, जो एक पैसे बढ़ोतरी पर हाथ पे हाथ धरकर बैठने के अलावा कुछ नहीं कर सकती.


पेट्रोल का दाम बढ़ना विपक्ष में जान फूंक देता था

वरना, एक जमाने में पेट्रोल के दाम बढ़ना वो मुद्दा होता था, जो मरासु विपक्ष में नई जान फूंक देता था. इस मुद्दे पर विपक्ष हल्ला में ऐसा मारक किस्म का गुल्ला मिलाकर प्रदर्शन करता था कि सरकार के इंजन में भी गड़बड़ी हो जाती थी. या ये बेइज्जती आम लोगों की है, जिन्हें इतना चिरकुट मान लिया गया है कि अब पेट्रोल के दाम भी एक-एक पैसा कर के बढ़ाने पड़ रहे हैं.

मैं वास्तव में कंफ्यूज हूं. पेट्रोल के दाम बढ़ाने का यह लेवल देश का अपमान है. माना कि हम गरीब हैं लेकिन इतने गरीब भी नहीं कि पेट्रोल जैसे शानदार आइटम के दाम एक-एक पैसे बढ़ाए जाएं.

खैर, जो हुआ, वो हुआ. इसमें अपन क्या कर सकते हैं. देश के मैंगो मैन की जेब में आम खाने लायक पैसे हों या नहीं-अपमान का घूंट निगलने लायक प्यास हमेशा रहती है. उन्हें आदत है. यह बेइज्जती भी झेल लेंगे. लेकिन-अपनी सरकार और पेट्रोल कंपनियों से अपील है कि ऐसी चिंदी चोरी वाली बढ़ोतरी न करें.

विपक्षी पार्टियों के लिए भी अब पेट्रोल के दाम बढ़ना कोई मुद्दा नहीं रह गया है

पेट्रोल की कीमत तो एक झटके में 500 रुपए प्रति लीटर या इससे भी ज्यादा कर देनी चाहिए. इसके कई लाभ हैं. संभवत: सरकार को यह लाभ न मालूम हों-इसलिए खाकसार बताना जरुरी समझता है.

पहला, एसी कमरे में बैठे-बैठे बाहर की मारक किस्म की गर्मी से त्रस्त मंत्री-संतरी जानते हैं कि देश को ‘इको फ्रेंडली’ होने की सख्त जरुरत है.

पेट्रोल के दाम बढ़ेंगे तो साइकिल चलानी पड़ेगी

सरकार चाहती है कि लोग गाड़ियां घर रखें और साइकिल चलाएं. साइकिल ज्यादा बिके. लोगों की सेहत बने. तो क्या हुआ टीपू की साइकिल यूपी में पंक्चर हो गई. असल साइकिल हमेशा हिट थी और हिट रहेगी. पेट्रोल के दाम बढ़ेंगे तो लोगों को साइकिल चलानी ही होगी. उनकी सेहत का ख्याल रखना सरकार का ही काम है.

पेट्रोल की बढ़ी कीमतें देश को समाजवाद की तरफ लौटा सकती हैं. गाड़ी भले खूब बड़ी धर लो घर में लेकिन औकात नहीं पेट्रोल डलवाने की तो चलो बेट्टे तुम भी आम आदमी के साथ बस-वस, ऑटो-टेंपू में. बंदा समझ लेगा लू-लपट में जीने वाले का दर्द.

बाजार में पेट्रोल मग या पेट्रोल टिन के रुप में गिफ्ट पैक की नयी संभावनाओं के द्वार भी खोले जाने चाहिए. आशिक अपनी महबूबा को पेट्रोल मग गिफ्ट करेंगे तो कन्या का पूरा परिवार खुशी में झूम उठेगा. लड़के की साख बढ़ जाएगी.

दहेज के वक्त लग्जरी आइटम के रुप में भी पेट्रोल की संभावनाएं बनेंगी. फायदा यह होगा कि दहेज में आया पेट्रोल शादी के एक-दो साल मुहब्बत वाले पीरियड में खत्म हो लेगा. इसके बाद बवाल होता है तो ‘दहेज वापस दो’ टाइप झंझट नहीं.

लगातार महंगा होता पेट्रोल भविष्य में शादी पर नवविवाहित जोड़ों को तोहफे के तौर पर दिया जाएगा

जरुरत के मुताबिक गधे-घोड़े पाल सकते हैं

सरकार घोड़ा एसोसिएशन को भी सपोर्ट कर सकती है. देश में घोड़ों का कोई माई-बाप नहीं है. घोड़ों के साथ गधों का भी नहीं है. लोग अपनी जरुरत के मुताबिक गधे-घोड़े पाल सकते हैं.

मोटर गाड़ियों ने तांगे खत्म कर दिए. बसंती टाइप की जुझारु लड़कियां भी तांगे के साथ खत्म हो लीं. पेट्रोल की बढ़ी कीमतों के साथ धन्नो और बसंती दोनों सड़कों पर दिखायी दे सकती हैं. यानी बढ़ी कीमतों का एक सिरा महिला सशक्तिकरण से जुड़ता है.

इत्ते शानदार तर्कों को पढ़ने के बाद शायद सरकार के किसी मंत्री का कोई मेल आ गया हो. चलूं देखूं. माल मिले तो फेसबुक-ट्विटर-फ्यूटर हर जगह सरकार का गुणगान करुंगा. आखिर मेरा भी अपनी बाइक की टंकी फुल कराने का एक विराट सपना है.