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वित्त विहीन शिक्षकों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज के विरोध में यूपी विधान परिषद में हंगामा

उत्तर प्रदेश में वित विहीन शिक्षक मानदेय की मांग कर रहे हैं

Bhasha

मानदेय की मांग को लेकर वित्त विहीन शिक्षकों द्वारा मंगलवार को किए गए प्रदर्शन के दौरान उनपर हुए लाठीचार्ज के विरोध में बुधवार को समाजवादी पार्टी और निर्दलीय सदस्यों ने विधान परिषद में जमकर हंगामा किया. इस कारण सभापति ने प्रश्नकाल स्थगित कर दिया. प्रश्नकाल के बाद इस मुद्दे पर चर्चा हुई.

गौरतलब है कि वित्त विहीन शिक्षकों ने मानदेय नहीं मिलने पर मंगलवार की दोपहर विधानसभा के समक्ष प्रदर्शन करना चाहा था लेकिन पुलिस ने बल प्रयोग कर उन्हें रोक दिया. वित्त विहीन शिक्षक ऐसे संकाय सदस्य होते हैं जिन्हें किसी प्रकार की सरकारी सहायता प्राप्त नहीं होती है.


एसपी ने प्रश्नकाल में उठाया मुद्दा

बुधवार को विधान परिषद में प्रश्नकाल शुरू होते ही समाजवादी पार्टी के संजय मिश्रा और निर्दलीय समूह के उमेश द्विवेदी ने वित्त विहीन शिक्षकों का मुद्दा उठाते हुए नारेबाजी करनी शुरू कर दी. सदस्य 'गुंडा गर्दी की सरकार नहीं चलेंगी', 'बहुत बड़ी भूल कमल का फूल', 'शिक्षक विरोधी सरकार नहीं चलेगी’ जैसे नारे लगाने लगे.

बाद में समाजवादी पार्टी और निर्दलीय समूह के सदस्य सभापति के आसन के सामने आ गए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. कुछ सदस्य अखबारों की प्रतियां भी लहरा रहे थे.

इसपर सभापति रमेश यादव ने पहले उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन नारेबाजी जारी रहने पर उन्होंने पहले 15 मिनट के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी. बाद में सभापति ने सभी दलों के नेताओं के साथ बैठक कर सदन की कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक स्थगित कर दी.

पुलिस पर विपक्ष ने लगाए गंभीर आरोप 

कार्यवाही फिर शुरू होने पर निर्दलीय समूह के नेता उमेश द्विवेदी ने वित्त विहीन शिक्षकों के खिलाफ कल पुलिस की बर्बर कार्यवाही का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि कल कुछ पुलिसकर्मी शराब के नशे में थे और उन्होंने शिक्षकों के साथ-साथ विधायकों और महिलाओं को भी पीटा. द्विवेदी ने आरोप लगाया कि पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर जानलेवा प्रहार कर रही थी. उन्होंने पुलिस कार्रवाई की तुलना अंग्रेजों के जमाने की पुलिस से करते हुए कहा कि सरकार गरीब शिक्षकों की आवाज दबाना चाहती है.

इस मुद्दे पर जवाब देते हुए नेता सदन दिनेश शर्मा ने कहा कि उनकी सरकार चाहती है कि शिक्षकों का कल्याण हो और प्रबंधन द्वारा किया जा रहा वित्त विहीन शिक्षकों का शोषण बंद हो. उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने चुनाव से पहले जो बजट पेश किया था उसमें इन वित्त विहीन शिक्षकों के लिए मानदेय की व्यवस्था की थी और उसमें साफ लिखा था कि इसे भविष्य के लिये दृष्टांत ना माना जाए. पिछली सरकार ने अगर अपने शासनादेश में लिखा होता कि इस पर आगे भी विचार किया जाए तो वर्तमान सरकार भी इन वित्त विहीन शिक्षकों के मानदेय पर विचार करती.

सरकार की जवाब से विपक्ष असंतुष्ट 

उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि प्रबंधन इन वित्त विहीन शिक्षकों का शोषण ना कर सके. सरकार इसके लिये सदन के सदस्यों से सुझाव चाहती है. हम शिक्षकों के सभी मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं. उनकी सभी परेशानियों और विसंगतियों को दूर करना चाहते हैं. सदस्य इन समस्याओं को सरकार के सामने रखें, हम अपनी वित्तीय क्षमता के अनुसार निर्णय लेंगे.

नेता सदन के इस जवाब से नेता विपक्ष अहमद हसन असंतुष्ट दिखे और उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने वित्त विहीन शिक्षकों के मानदेय के लिए 200 करोड़ रुपए का बजट दिया था जिसमें से 100 करोड़ रुपए इन शिक्षकों को बांट भी दिया. लेकिन अभी वर्तमान सरकार के पास पिछला सौ करोड़ रुपया बकाया है, उसने इन शिक्षकों को नहीं दिया है.

उन्होंने कहा कि सरकार जो वित्त विहीन शिक्षकों के शासनादेश में दृष्टांत वाली बात कह रही थी, वह इन शिक्षकों के लिए नहीं थी. यह एक सामान्य बात है, जिसे सरकार ने मसला बना दिया है. सरकार को अपना दिल बड़ा करते हुए उन्हें मानदेय देना चाहिए.