view all

तेलंगानाः सरकार के खिलाफ बोलने पर हो सकती है जेल

तेलंगाना सरकार का ये फैसला फिलहाल कानून नहीं कहा जाएगा, ये अभी सिर्फ एक प्रस्ताव है

FP Staff

तेलंगाना सरकार को आलोचना बर्दाश्त नहीं हो रही है. आलोचना करनेवालों को वह जेल भेजने पर विचार कर रही है. इसके लिए वह कानून बदलने जा रही है. जानकारी के मुताबिक के. चंद्रशेखर राव सरकार एक ऐसा कानून लाने जा रही है, जिसके तहत सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को पुलिस गिरफ्तार कर सकेगी. यही नहीं इसके लिए उसे कोर्ट से इजाजत लेने की भी जरूरत नहीं होगी.

तेलंगाना में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 506 और 507 को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाने जा रही है. इसके तहत किसी संस्थान या किसी शख्स के खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता है.


हालांकि यह इतना आसान नहीं है. संवैधानिक मामलों के जानकार डॉ. टीके विश्वनाथन के मुताबिक, आईपीसी में इस तरह के संशोधन तब तक कानून का रूप नहीं ले सकते, जब तक कि इसे केंद्र सरकार और राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिल जाती.' संविधान के आर्टिकल 254 के मुताबिक, राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में केंद्र सरकार की सहमति मिलने के बाद ही राज्य सरकार ऐसे संशोधनों को पास कर सकती है.'

जेल होने पर दो से सात साल तक सजा हो सकती है 

धारा 506 (आपराधिक धमकियों) और धारा 507 अज्ञात व्यक्ति की ओर से (सोशल मीडिया, चिट्ठी या ईमेल से) दी गई आपराधिक धमकी से है. दोनों ही धाराओं के तहत संबंधित व्यक्ति को कम से कम 2 साल की और अधिक से अधिक 7 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.

तेलंगाना सरकार का ये कदम श्रेया सिंघल मामले की याद दिलाता है, जिसके कारण आईटी अधिनियम की धारा 66(A) पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया था.

बता दें कि देश में सोशल नेटवर्किंग साइट खासकर फेसबुक पर हम खुलकर अपनी बात कह सकें, इसके लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा श्रेया सिंघल ने मुहिम चलाई थी.

फिलहाल ये कानून नहीं, प्रस्ताव मात्र है 

श्रेया सिंघल ने आईटी अधिनियम की धारा 66 (A) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और इसे संविधान के आर्टिकल 19(1)(a) यानी अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ बताया था. लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट के सेक्शन 66 (A) को खत्म कर दिया है.

लोकसभा महासचिव और लोकसभा सचिव रह चुके डॉ. टीके विश्वनाथन ने बताया कि तेलंगाना सरकार का ये फैसला फिलहाल कानून नहीं कहा जाएगा, ये अभी सिर्फ एक प्रस्ताव है. उन्होंने हाल ही में 267वीं लॉ कमीशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट की स्टडी के लिए बनाई गई एक्सपर्ट पैनल टीम का नेतृत्व किया था.