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राष्ट्रपति चुनाव 2017: रामनाथ कोविंद के खिलाफ दलित उम्मीदवार की चाल!

मोदी-शाह का तीर सही निशाने पर लगा है जिसने विपक्षी दलों में खलबली मचा दी है

Amitesh

राष्ट्रपति चुनाव के लिए बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद का नाम एनडीए उम्मीदवार के तौर पर आगे किए जाने के बाद विपक्ष भी अपनी रणनीति बनाने में जुट गया है. कोविंद को आगे कर बीजेपी ने ऐसा कदम उठाया है जिसकी काट ढूंढ़ना विरोधियों के लिए मुश्किल साबित हो रहा है.

विपक्ष की एकता रामनाथ कोविंद के नाम से ही तार-तार हो रही है. दलित समाज से आने वाले रामनाथ कोविंद यूपी से आते हैं और वर्तमान में बिहार के राज्यपाल हैं. ऐसे में यूपी और बिहार के मोदी विरोधी दिग्गजों के लिए कोविंद का विरोध कर पाना मुश्किल हो रहा है.


विपक्षी दल एनडीए द्वारा घोषित राष्टपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को लेकर पशोपेश में हैं (फोटो: पीटीआई)

विपक्ष को एक रखने की चुनौती

राष्ट्रपति चुनाव के बहाने मोदी विरोधी दलों का जमावड़ा हो रहा था, कोशिश थी सबको एक साथ, एक मंच पर लाकर एक ऐसा महागठबंधन बनाया जाए जो 2019 की लड़ाई तक बड़ी ताकत बनकर उभरे. लेकिन, बीजेपी की इस गुगली ने विपक्षी एकता को फिलहाल तोड़कर रख दिया है.

बीएसपी अध्यक्ष मायावती और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रामनाथ कोविंद के समर्थन के संकेत दिए हैं. जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 21 जून को इस मुद्दे पर फैसला करने के लिए अपनी पार्टी नेताओं की बैठक भी बुलाई है.

नीतीश के सहयोगी लालू भी इसे लेकर पशोपेश में हैं और मुलायम भी. बिहार के राज्यपाल का राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर विरोध करना लालू के लिए मुश्किल होगा जबकि, मुलायम-अखिलेश के लिए यूपी से बनने जा रहे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के खिलाफ जाना सियासी नुकसान का सबब बन सकता है.

विरोध के स्वर बंगाल से आ रहे हैं, जहां से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और लेफ्ट पार्टी दोनों की तरफ से बिना सहमति लिए रामनाथ कोविंद के नाम के ऐलान करने को लेकर नाराजगी है. ममता बनर्जी और लेफ्ट की तरफ से कोविंद का विरोध करने के संकेत दिए गए हैं.

विपक्षी पार्टियों को एक साथ एक मंच पर लाने की तैयारी में जुटी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए अब इस मुद्दे पर सबको साथ लेने की कोशिश हो रही है. कांग्रेस फिलहाल सभी विपक्षी दलों को साथ लाने की कोशिश कर रही है.

तो क्या होगी ‘दलित’ बनाम ‘दलित’ की लड़ाई ?

कांग्रेस ने बीजेपी के दलित दांव को लेकर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि हमने तो बीस साल पहले ही दलित को राष्ट्रपति के पद पर बैठा दिया था. कांग्रेस बीजेपी को के आर नारायणन को राष्ट्रपति बनाए जाने के फैसले की याद दिला रही है.

लेकिन, इस वक्त कांग्रेस राष्ट्रपति चुनाव में मोदी के मास्टरस्ट्रोक का जवाब नहीं ढूंढ पा रही. अब 22 जून को होनेवाली विपक्षी दलों की बैठक में इस बारे में फैसला होगा कि रामनाथ कोविंद का विरोध करना है या फिर किसी दलित चेहरे को सामने लाकर राष्ट्रपति चुनाव में अलग से ताल ठोंकना है.

फिलहाल जो संकेत मिल रहे हैं, उसके मुताबिक, कांग्रेस किसी दलित को ही अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर सामने लाने पर विचार कर रही है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, इस कड़ी में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और देश के पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है.

कांग्रेस अगर मीरा कुमार का नाम आगे करती है तो उस सूरत में वो बिहार के अपने दो सहयोगियों लालू यादव और नीतीश कुमार को साध सकती है. मीरा कुमार पूर्व उप-प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं. बिहार से आने वाली मीरा कुमार दलित होने के साथ-साथ महिला भी हैं.

मीरा कुमार के नाम पर रामनाथ कोविंद को लेकर नरम रूख दिखाने वाले नीतीश कुमार को विपक्षी पाले में रोकने की कोशिश हो सकती है.

कांग्रेस की कोशिश बीएसपी सुप्रीमो मायावती को भी विपक्ष के पाले में बनाए रखने की हो सकती है. मायवती भी दलित महिला के नाम पर रामनाथ कोविंद के बजाए मीरा कुमार के साथ आ सकती हैं.

विपक्ष की तरफ से दूसरा नाम सुशील कुमार शिंदे का चर्चा में है. शिंदे भी मीरा कुमार की तरह दलित समाज से ताल्लुक रखते हैं. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके सुशील कुमार शिंदे यूपीए सरकार के कार्यकाल में देश के गृह मंत्री भी रह चुके हैं.

राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर रामनाथ कोविंद को समर्थन देने के मुद्दे पर शिवसेना ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं

इस मुद्दे पर शिवसेना को अपने पाले में लाने की तैयारी

कांग्रेस को लगता है कि शिंदे भी रामनाथ कोविंद के सामने एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं. कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि महाराष्ट्र के शिंदे को आगे कर बीजेपी की सहयोगी शिवसेना को अपने पाले में लाया जा सकता है.

रामनाथ कोविंद को लेकर शिवसेना का रूख सकारात्मक नहीं दिख रहा है. वो इसके पहले भी प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी का समर्थन कर चुकी है जो कि बीजेपी से बिल्कुल अलग रूख रहा है.

लेकिन, सुशील कुमार शिंदे के नाम पर नीतीश कुमार और मायावती को साथ जोड़े रख पाना मुश्किल हो सकता है.

कांग्रेस की एक और मुश्किल है कि अगर वो रामनाथ कोविंद के नाम पर राजी हो भी जाए तो फिर ममता बनर्जी और लेफ्ट पार्टी इससे नाराज हो सकती हैं और उसकी विपक्षी एकता बनने के पहले ही पूरी तरह से बिखर जाएगी. लिहाजा, कांग्रेस पशोपेश में है. मोदी-शाह का तीर सही निशाने पर लगा है जिसने विपक्ष में खलबली मचा दी है.