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बिहार: महागठबंधन की 'हार' में ही नीतीश की जीत है

आप नीतीश कुमार को राजनीति का बाजीगर कह सकते हैं. फिर वो बाजीगरी के लिए जो कुछ करें

Vivek Anand

आखिर नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे ही दिया. उन्होंने साबित कर दिया कि भ्रष्टाचार पर जब वो जीरो टॉलरेंस की नीति की बात करते हैं तो उसके पालन के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं. वो अपनी साफसुथरी छवि के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं कर सकते हैं. राजनीतिक शुचिता के लिए वो रिस्क लेने से नहीं घबराते. बिहार की राजनीतिक स्थितियां चाहे जैसी बन पड़ी हों, लेकिन नीतीश कुमार ने अपनी सरकार की कुर्बानी देकर अपना राजनीतिक कद काफी बड़ा कर लिया है.

सवाल ये उठता है कि क्या ये नीतीश कुमार का मास्टरस्ट्रोक है? क्या इसके बाद जो राजनीतिक स्थितियां बदलेंगी वो नीतीश कुमार के अनुकूल होंगी? मौके के हिसाब से राजनीतिक फैसले लेने के आरोप नीतीश कुमार को एक भरोसेमंद नेता रहने देंगे?


इस्तीफे के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी का ट्वीट आ गया. उन्होंने लिखा कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ लड़ाई में जुड़ने के लिए नीतीश कुमार जी को बहुत-बहुत बधाई. इसके बाद एक दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा कि देश के, विशेष रूप से बिहार के उज्जवल भविष्य के लिए राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक होकर लड़ना, आज देश और समय की मांग है.

बिहार में इस पूरी हलचल के सूत्रधार रहे बिहार बीजेपी के नेता सुशील मोदी ने भी कहा कि उन्हें खुशी है कि नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर समझौता नहीं किया. इसके बाद सूत्रों के हवाले से ये भी खबर आ गई कि बीजेपी बिना शर्त जेडीयू को समर्थन देने को राजी है. इस बिना पर कहा जा सकता है कि बिहार में आने वाले वक्त की सियासी झलक साफ दिख रही है.

नीतीश कुमार ने सीएम के पद से इस्तीफा दिया है. लेकिन एक बात गौर करनी होगी कि जब-जब उन्होंने इस्तीफा दिया है वो ज्यादा मजबूत होकर उभरे हैं.

1999 में वो एनडीए सरकार में रेलमंत्री थे. गैसल ट्रेन दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन उनका राजनीतिक रसूख कम नहीं हुआ. उन्होंने दिल्ली से लेकर पटना तक अपनी राजनीतिक स्वीकार्यता बरकरार रखी. सरकार से कुछ दिनों के लिए वनवास के बाद वो सत्ता में वापसी करते रहे. कभी बिहार सरकार में तो कभी केंद्र सरकार में.

नीतीश कुमार 2000 में सिर्फ 7 दिन के लिए बिहार के सीएम बने. बहुमत साबित नहीं करने की स्थिति में उन्हें सरकार से हाथ धोना पड़ा. बिहार में सरकार से वंचित होने के बाद उन्होंने केंद्र का रुख किया. उन्होंने एनडीए सरकार में कृषिमंत्री का पद संभाला. बाद में वो 2001 से लेकर 2004 तक फिर से रेलमंत्री बने.

2005 में लालू-राबड़ी के जंगलराज से मुक्ति का नारा देकर उन्होंने बिहार में बहुमत की सरकार बनाई. इसके बाद वो लगातार मई 2014 तक बिहार के सीएम रहे. 2013 में जब प्रधानमंत्री मोदी को एनडीए के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तो विरोधस्वरूप वो एनडीए से अलग हो गए. उस वक्त गुजरात दंगों का नाम लेकर एनडीए में सांप्रदायिक ताकतों के हावी होने का हवाला देकर एनडीए से अलग राह अपना ली.

लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में जेडीयू की करारी हार ने उन्हें एक बार फिर से नैतिकता के मानदंड अपनाकर इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया. नीतीश कुमार 2014 की हार की जिम्मेदारी लेते हुए सीएम के पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी कुर्सी अपने विश्वासपात्र जीतनराम मांझी को सौंप दी.

नीतीश कुमार की इस नैतिकता वाले फैसले ने उस वक्त मुश्किलें खड़ी करनी शुरू कर दी जब जीतनराम मांझी ने बगावती तेवर अपना लिए. अपनी राजनीतिक ताकत को बचाए रखने के लिए उन्हें कुर्सी की सख्त जरूरत महसूस हुई. लेकिन जीतनराम मांझी के सीएम के पद से हटने से इनकार करने पर दिल्ली में राष्ट्रपति के सामने अपने विधायकों की परेड तक करवानी पड़ी तब जाकर उन्हें बिहार के सीएम की कुर्सी हासिल हुई.

बदली हुई राजनीति परिस्थिति में उन्होंने 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में उन्होंने लालू यादव से हाथ मिला लिया. आरजेडी जेडीयू और कांग्रेस के महागठबंधन ने मोदी के लहर की हवा निकाल दी. नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक ताकत एक बार फिर से हासिल कर ली. उन्होंने साबित कर दिया कि मोदी लहर से पार पाने की कूवत सिर्फ वही रखते हैं.

नतीश कुमार बिहार की सत्ता पर काबिज तो हो गए लेकिन लालू के साथ मजबूरी की दोस्ती ने उन्हें हर वक्त परेशान रखा. बिहार में जंगलराज की वापसी के आरोपों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. और जब सुशील कुमार ने लालू परिवार के घोटालों का पुलिंदा लेकर सामने आए तो स्थितियां दिनबदिन मुश्किल होती गई.

नीतीश कुमार ने एक बार फिर से इस्तीफा दे दिया है. 20 महीने पुरानी लालू से उनकी दोस्ती ने दम तोड़ दिया है. लेकिन इस बदली परिस्थिति का आकलन करने पर लगता है कि इस्तीफे की सियासी मजबूरी के बाद भी नीतीश कुमार फिर से मजबूत होकर उभरने वाले हैं.

बिहार में नीतीश कुमार का ये सिर्फ कुछ दिनों का वनवास होगा. बिहार में सियासत का आगे का रास्ता साफ दिख रहा है. नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखे हुए हैं. आप नीतीश कुमार को राजनीति का बाजीगर कह सकते हैं. फिर वो बाजीगरी के लिए जो कुछ करें.