view all

केरल में जगह बना रहा है योग का ईसाई और सेक्युलर वर्जन

योग के इन आयामों पर कम्युनिस्ट पार्टियों और संघ में ठन गई है

TK Devasia

अल्पसंख्यकों और नास्तिकों की बड़ी आबादी वाला केरल योग को इस वजह से स्वीकार करने में सतर्क रहा है क्योंकि इसके साथ प्राचीन भारतीय परम्परा की धार्मिक पहचान जुड़ी रही है.

हालांकि कुछ समूह योग का अपना अलग तरीका विकसित कर राज्य में लोगों के अलग-अलग हिस्सों में इसे स्वीकार्य बनाने में जुटे हैं. जबकि, सत्ताधारी डेमोक्रेटिक फ्रन्ट का नेतृत्व कर रही भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने अपने कार्यकर्ताओं के लिए इसका मार्क्सवादी संस्करण तैयार किया है, कैथोलिक पादरी और नन इसका ईसाई संस्करण विकसित कर रहे हैं.


केरल राज्य योग एसोसिएशन (केएसवाईए) योग को 1986 से प्रमोट कर रहे हैं जब से इसने भारतीय योग फेडरेशन से संबद्ध होकर काम करना शुरू किया था. केएसवाईए ने इन दोनों शुरुआतों को संदेह की नज़र से देखा है. एसोसिएशन के महासचिव केपी भास्कर राव मेनन ने कहा है कि योग से लोगों का तभी फायदा होगा जब इसके वास्तविक रूप में इसका अभ्यास किया जाएगा.

उन्होंने कहा, “गैर हिन्दू और नास्तिक योग से दूरी बनाए हुए हैं क्योंकि इससे हिन्दू धर्म से संबद्ध श्लोक और मंत्र जुड़े हुए हैं. लेकिन योग में मंत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. मंत्र शरीर और दिमाग को जोड़ते हैं, सांस और आत्मा को जोड़ते हैं. जो बिना मंत्रोच्चार के अभ्यास करते हैं उन्हें योग से होने वाले मूल फायदे नहीं मिलेंगे.”

मेनन ने फर्स्ट पोस्ट से कहा है कि कुछ समूह योग का अपना अलग वर्जन तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे योग अपने स्वरूप में थोड़ा लचीला हो जाएगा. यह आयुर्वेद की तरह हो सकता है जिसने वैश्वीकरण की वजह से हुए वाणिज्यीकरण के कारण अपना गुण खो दिया. उन्होंने कहा कि जो लोग अब योग को प्रमोट करने की कोशिश कर रहे हैं, वे ऐसा निजी स्वार्थों की वजह से कर रहे हैं.

दिलचस्प ये है कि जब से केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने बड़े पैमाने पर योग को प्रमोट करना शुरू किया है, सीपीएम भी मैदान में कूद गया है. पार्टी ने 4 जून 2016 को कन्नूर में जनता का सत्र आयोजित कर योग कार्यक्रम की शुरुआत की.

योग इस समय राजनीतिक आसनों का जरिया भी बना हुआ है

अपने ढंग का नया संस्करण सूर्य नमस्कार की शुरुआत हुई, जिसमें अभ्यासकर्ता को भगवान सूर्य का आह्वान करना होगा. सत्र में भाग लेने वाले लोगों ने 30 आसन किए, जिसमें मंत्र की जगह संगीत का इस्तेमाल हुआ. सीपीएम इसे योग का सेकुलर वर्जन बता रही है.

हालांकि कुछ लोग इसे राजनीतिक अभ्यास बता रहे हैं. वे मानते हैं कि सार्वजनिक समारोह के लिए कन्नूर का चयन अपने आप में राजनीतिक संदेश देने वाला था क्योंकि उत्तरी जिला सीपीएम और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बीच संघर्ष के लिहाज से गरम प्रदेश रहा है. दोनों के कार्यकर्ताओं में भिड़न्त में पिछले तीन दशक के दौरान 300 लोगों की जान गयी हैं, ऐसा दावा किया गया है.

योग एसोसिएशन के महासचिव का यह भी मानना है कि सीपीएम का योग को प्रमोट करने के पीछे मकसद पार्टी आधारित मार्शल आर्ट्स एकेडमी को आगे बढ़ाना है और अपने राजनीतिक विरोधियों को संदेश देना है. मेनन कहते हैं कि यहां तक कि सीपीएम की ओर से योग का मार्क्सवादी वर्जन विकसित करने के फैसले के बाद भारतीय मार्शल आर्ट्स एकेडमी और योगा स्टडी सेंटर के रूप में इन संगठनों का नामकरण हुआ है, लेकिन पैतृक संगठन का मूल चरित्र, जिसमें सशस्त्र प्रशिक्षण शामिल है, नहीं बदला है.

सीपीएम समर्थित अकेडमी के पदाधिकारी योग कार्यक्रम के पीछे किसी राजनीतिक मकसद से इनकार करते हैं. एकेडमी के अध्यक्ष और राज्य में कार्यक्रम के कोऑर्डिनेटर ई राजीवन ने दावा किया है कि उनका मकसद लोगों के दिमाग में स्वस्थ जीवन के लिए दिलचस्पी पैदा करना और जीवन शैली की वजह से पैदा होने वाली बीमारियों को दूर करना है.

हालांकि पार्टी के कन्नूर जिला सचिव ईपी जयराजन ऐसा कोई बहाना नहीं करते. उन्होंने कहा कि पार्टी ने संघ परिवार की कोशिशों का मुकाबला करने के लिए यह कार्यक्रम विकसित किया है जो राजनीतिक फायदे के लिए योग का अपहरण कर रहे हैं. यह पहला मौका नहीं है जब सीपीएम ने संघ परिवार को मात देने के लिए सांस्कृतिक रास्ता चुना है. पार्टी कन्नौर में हिन्दू समुदाय के अलग-अलग तबकों में अपना नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश के तहत पिछले तीन साल से कृष्ण जयंती का उत्सव मनाती रही है.

फाद सैजु थुरुथियील और सिस्टर इन्पैन्ट ट्रीसा ने जो योग का ईसाई वर्जन बनाया है उसका कोई राजनीतिक मकसद नहीं है. हालांकि इसने चर्च पर आपत्तियों से उबरने में मदद की है.  जबकि वैटिकन के चमत्कारिक फादर गैब्रिएल अमरोथ ने योग को शैतान का काम बताया था, पोप फ्रांसिस ने उसी तर्ज पर कहना जारी रखा कि योग ईश्वर के लिए लोगों के दिलों को खोलने में सक्षम नहीं है.

साइरो-मालाबार चर्च का कहना है कि योग दैवी अनुभव प्राप्त करने का माध्यम नहीं है. ओरिएन्टल चर्च के बिशपों ने धार्मिक सभा में योग की भूमिका पर चर्चा करते हुए पिछले साल कहा कि योग की खास अवस्था से दैवी अनुभव पाया नहीं जा सकता, हालांकि इससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक करने में जरूर मदद मिलती है.

केरल अपनी राजनीतिक हिंसा के लिए खबरों में बना हुआ है (फोटो: फेसबुक से साभार)

हालांकि फादर सैजू और ट्रीसा इस रुख से सहमत नहीं हुए. उन्होंने दावा किया कि वे पाते हैं कि योग ईश्वर से संवाद करने का माध्यम हैं.

हालांकि पादरी ने ईसाई आध्यात्मिकता के साथ योग को विकसित करते हुए ईसाई वर्जन तैयार किया है जिसका नाम ‘क्रिस्तुअनुभव योग’ है. फ्रान्सिस धर्मावलम्बियों की मंडली से जुड़ी नन कोशिश कर रही हैं कि संस्कृत श्लोक और मंत्रों की जगह ईसाई छंदों के जरिए ईसाईयों में इसे स्वीकार्य बनाया जाए.

फादर सैजू ने विभिन्न ईसाई संगठनों की ओर से कराए जाने वाले रिट्रीट की जगह इसका नया संस्करण तैयार किया है जिसका आधार क्रिस्तुअनुभव योग है. उन्होंने एर्नाकुलम जिले के थन्नीपुज़ा के कैथोलिक योगा रिट्रीट सेंटर और राज्य के विभिन्न हिस्सों में हर महीने इस 5 दिनों के रिट्रीट का आयोजन किया है.

पादरी ने अब तक 1000 से ज्यादा ऐसे रिट्रीट किए हैं. उन्होंने फर्स्ट पोस्ट से कहा कि रिट्रीट ईसाइयों को आकर्षित कर रहे हैं जो राज्य में बड़ी संख्या में हैं और कुल आबादी का 18 प्रतिशत हिस्सा हैं. वे स्कूल और कॉलेज की विद्यार्थियों के बीच भी क्लास लेते रहे हैं. उन्होंने कहा, “जब मैंने 14 साल पहले योग का अभ्यास शुरू किया, मेरे समुदाय में कई लोगों ने सवाल उठाए. लेकिन जब मैंने उन्हें इसके फायदे बताए, तो वे सहमत हो गये. योग को धार्मिक या शारीरिक अभ्यास के तौर पर नहीं देखा जा सकता. यह जीवन की शुद्धता के लिए जरूरी है और इसे सकारात्मक रूप से देखा जाना चाहिए.”

सैजू ने कहा कि योग के अभ्यास से व्यक्ति विशेष पर अच्छा खासा असर होता है. उन्होंने दावा किया कि इसने कई नौजवानों का जीवन बदल दिया है जो परेशान जीवन जी रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि योग के अभ्यास के बाद कई विद्यार्थियों ने मोबाइल का अत्यधिक इस्तेमाल बंद कर दिया, जबकि कुछ शाकाहारी हो गये.

सिस्टर ट्रीसा ने योगा को तब स्वीकार किया जब इसने उसकी पीठ दर्द और सांसों की तकलीफ के उपचार में मदद की. 1976 में नर्सिंग की पढ़ाई करते हुए ये बीमारी उन्हें हुई थी. हालांकि 66 वर्षीय नन का दावा है कि योग का अभ्यास करते हुए वह अपने आपको ईश्वर के नजदीक पाती हैं. जल्द ही उसने एर्नाकुलम जिले के मुवत्तीपुज़हा और इडुक्की जिले के थोडुपुज़हा में दो योग केन्द्र खोल लिए ताकि अपने भक्तों के बीच योग को प्रमोट कर सकें.

योगा सिखाने के अलावा इन केन्द्रों में योग शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी चलाया जाता है जिसे तमिलनाडु फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी ने मान्यता दे दी है. चार बैच उत्तीर्ण होकर निकल चुके हैं और पांचवें बैच के लिए प्रवेश अगले महीने से शुरू होगा.

नन कहती हैं “लोग योग से धर्म को जोड़ रहे हैं क्योंकि इसे हिन्दू संतों ने विकसित किया था. यह सही नहीं है. योग का धर्म नहीं है. यह शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक तत्वों का सम्मिलन है. यह अनुशासन और पवित्र विज्ञान है. यह मानवीय जीवन के सभी पहलुओं को छूता है.”

वह फर्स्ट पोस्ट को बताती हैं कि उनकी साथी नन भी अपने आध्यात्मिक जीवन को योग के अभ्यास से ऊंचाई दे सकती हैं. वह आगे कहती हैं, “कई लोग शारीरिक अभ्यास के दौरान संस्कृत मंत्रों की वजह से योग को समझने में गलती करते हैं. यह समस्या दूसरे धर्म के मंत्रों से उन्हें बदलकर दूर की जा सकती है. मैं संस्कृत मंत्रों के बजाए योग का अभ्यास करते हुए ईसाई प्रार्थनाएं पढ़ती रहती हूं.”

नन ने दावा किया कि इससे कई ईसाई योग की ओर आकर्षित हुए हैं और एक दिन यह अभ्यास ईसाई आध्यात्मिक जीवन में कबूल कर लिया जाएगा.