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अब शरद यादव की जरूरत नहीं है सीएम नीतीश कुमार को

आदतन नीतीश कुमार जब किसी से नाराज होते हैं तो उसका प्रदर्शन नहीं करते हैं

Kanhaiya Bhelari

जनता दल यू टूट गया. ये कहना बुनियादी तौर पर किसी कोण से तर्कसंगत नहीं है क्योंकि बक्सा और चाभी दोनों नीतीश कुमार के पास है. शरद यादव डुप्लीकेट चाभी लेकर दावा करते घूम रहे हैं कि असली हम ही हैं जबकि केरल को छोड़कर किसी भी प्रदेश के जिला अध्यक्ष भी उनके साथ नहीं है.

पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हाल में शरद यादव ने समानांतर जनता दल यू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की आड़ में अपनी ताकत प्रदर्शित करने के लिए शनिवार को जलसा किया. मंच पर बागी सांसद अली अनवर और पूर्व मंत्री रमई राम के अलावे और कोई साधारण नेता भी मौजूद नहीं था. जुटे श्रोताओं में लालू प्रसाद के वही कट्टर समर्थक थे जो आज ही शरद यादव के स्वागत के बहाने जी पुरवइया के एक टीवी कर्मी और नीतीश कुमार के दर्जनों भक्तों को पीटकर अपनी बहादुरी का ट्रेलर दिखा चुके थे.


क्यों टूटी 14 साल की दोस्ती?

बहरहाल, चर्चा मौजूं होगा कि आखिर किस कारण से 14 साल से चल रही नीतीश कुमार और शरद यादव की दोस्ती टूटी? 1997 में लालू प्रसाद के अलग होने के बाद शरद यादव राजनीति के हाशिये पर आ गए थे. अक्टूबर 2003 में नीतीश कुमार की समता पार्टी जिसके सांगठनिक चीफ जार्ज फर्नांडिस थे और शरद यादव का जनता दल मिलकर जनता दल यू बन गए. यादव को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में जगह मिली.

इस राजनीतिक विलय का तत्कालिक तौर पर सिर्फ एक ही मकसद था. बिहार में 1990 से काबिज लालू प्रसाद की सरकार को सत्ता से बेदखल करना. नवंबर 2005 के विधानसभा चुनाव में सफलता भी मिल गई. सबकुछ ठीक-ठाक तरीके से चलते रहा. नीतीश कुमार संगटन का दायित्व शरद यादव पर छोड़कर बतौर सीएम बिहार में बेपटरी हुई शासन व्यवस्था को ठीक करने पर केंद्रीकृत हो गए.

फोटो: पीटीआई

स्वभाव के अनुरूप शरद यादव अपने कार्यों से नीतीश कुमार को परेशान करने का काम यदा कदा करते रहते थे जिसे बिहार के सीएम नजरअंदाज कर देते थे. वो अपना फोकस बिहार की बेहतरी पर रखना चाहते थे. एक बार नीतीश कुमार ने इस लेखक से कहा भी था कि ‘शरद जी कभी-कभी अपने उटपटांग निर्णय से सबको प्रॉब्लम में डाल देते हैं.'

कहते है 2010 विधानसभा के लिए उम्मीदवारों के चयन में भी शरद यादव ने अपने जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर होने का अनुचित लाभ उठाया था जिसकी टीस नीतीश के मन में थी.

दोनों के संबंधों में असली टेंशन मई-जून 2014 में आया. लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बाद नीतीश कुमार की पार्टी अध्यक्ष शरद यादव से फोन पर बात हुई थी. कहते हैं नीतीश कुमार ने शरद यादव से फोन पर फरमाया ‘मेरी इच्छा है कि चुनाव में हार की सारी जिम्मेवारी लेकर सीएम पद से रिजाइन कर दूं.' बिना पलक झपकाये शरद यादव ने एक कठोर दिल गार्जियन का भांति कहा ‘इच्छा? अरे अबतक तो आपको इस्तीफा दे देना चाहिए था’.

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कहते हैं नीतीश कुमार सन्न हो गए. अगर कोई आत्महत्या करने के लिए अभिभावक से पूछेगा तो वो उसे रोकेगा. कम से कम इतना तो कहेगा ही की कम से के अपने निर्णय पर पुर्नविचार कर लो. जल्दबाजी में कोई फैसला न लो.

अपने घनिष्ठ मित्रों से नीतीश कुमार ने बाद में इस अप्रत्याशित होनी का जिक्र करते हुए कहा कि ‘मैं तो चुनाव में हार के बाद नैतिकता के आधार पर सीएम पद छोड़ने का 100 प्रतिशत मन बना चुका था. पर शरद जी से ऐसे इनह्यूमन रिस्पांस की उम्मीद बिलकुल नहीं थी’.

शरद की शह पर मांझी ने की थी बगावत

हद तो तब हो गई जब शरद यादव ने सीएम जीतनराम मांझी को भीतरिया सपोर्ट करना ही शुरू नहीं कर दिया बल्कि नीतीश कुमार के खिलाफ भड़काया भी. जानकार बताते हैं कि शरद यादव के बल पर ही जीतनराम मांझी फुदक रहे थे. मांझी ने बजाप्ता नीतीश कुमार के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. नीतीश कुमार को जोड़कर अनाप शनाप बयानबाजी भी करते थे.

नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी के बीच जारी महाभारत पर किसी पत्रकार ने लालू प्रसाद से शरद यादव की भूमिका के बारे में पूछा तो ये रोचक जवाब मिला ‘शरद यादव को टोटालिटी में जानने के लिए तुमको 100 जन्म लेना पड़ेगा.' शरद यादव के कहने पर ही मांझी सीएम का पद नहीं त्याग रहे थे. अब तो शरद यादव के पुराने हार्डकोर फॉलोवर भी ये सत्य स्वीकारते हैं कि मांझी को हमारे नेता ने ही नीतीश कुमार के खिलाफ खड़ा किया था.

सहने की भी कोई सीमा होती है. सीएम नीतीश कुमार ने मन बनाया कि 2015 के विधानसभा चुनाव तक किसी तरह खून का घूंट पीकर भी शरद यादव को बर्दाश्त किया जाए क्योंकि लोकसभा में हुई बेइज्जती का बदला पीएम नरेंद्र मोदी से लेना है. एक समय पर दो फ्रंट पर लड़ाई लड़ना फलदायक नहीं होता है.

चुनावी जीत ने बदला लेने की इच्छा पूरी कर दी.

विरोधियों को सलीके से हटाते हैं नीतीश

अब बारी थी शरद यादव से जान छुड़ाने की. स्ट्रैटजी के तहत शरद यादव को अध्यक्ष पर से हटाया गया. दल के अंदर के शरद भक्तों को मौखिक वार्निंग दी गई कि अपने नेता से दूरी बनाएं नहीं तो आगे आने वाले दिनों मे उनके साथ-साथ अपने क्रियाकर्म के लिए भी मानसिक रूप से तैयार रहें. इस पर शरद यादव के एक परम भक्त एमएलसी की प्रतिक्रिया थी कि ‘प्रवासी पक्षी के साथ की युगलबंदी खत्म.'

आदतन नीतीश कुमार जब किसी से नाराज होते हैं तो उसका प्रदर्शन नहीं करते हैं. सलीके से उसे काटते हैं. या यू कहें कि उससे जान छुड़ाते हैं. राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के साथ भी उन्होने 2008-09 में ऐसा ही किया था. बाद में हार और माफी मांगकर ललन सिंह नीतीश कुमार के शरण में दुबारा आ गए. सरकार में अभी सबसे ज्यादा चकलेस वही काट रहे हैं.

शरद यादव उजबुजाकर बागी बन गए. उनको उम्मीद थी कि नीतीश कुमार मनाने आएंगे. सूत्रों की मानें तो मान भी जाते. मंत्रिमंडल में जगह भी मिल जाती. लेकिन मध्यप्रदेशी मूल के दाढ़ी प्रेमी जन्मजात बगावती नेता ये समझने में चूक गए सीएम नीतीश कुमार को अब उनकी जरूरत नहीं है. जब होगी तो कांटेक्ट किया जाएगा क्योंकि राजनीति का ये तकाजा है कि कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता.