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नगालैंड चुनाव : 'बीजेपी के हिंदुत्व का हमारे एजेंडे पर असर नहीं होगा'

बीजेपी-एनडीपीपी गठबंधन के सीएम उम्मीदवार नेफ्यू रियो से खास बातचीत

Kangkan Acharyya

पूर्वोत्तर के राज्य नगालैंड और मेघालय में चुनावी सरगर्मियां चरम पर हैं. दोनों राज्यों की 60-60 विधानसभा सीटों के लिए 27 फरवरी को वोट डाले जाएंगे, जबकि चुनाव के नतीजे 3 मार्च को आएंगे. नगालैंड में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस और बीजेपी समेत सभी राजनीतिक पार्टियां एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं.

बीजेपी ने इस चुनाव में अपनी 15 साल पुरानी सहयोगी नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) का साथ छोड़कर नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) से हाथ मिलाया है. एनडीपीपी 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि बाकी 20 सीटों पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं.


बीजेपी-एनडीपीपी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नेफ्यू रियो हैं. वह तीन बार नगालैंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. नेफ्यू रियो हाल ही में एनपीएफ से नाता तोड़कर एनडीपीपी में शामिल हुए हैं.

फ़र्स्टपोस्ट से खास बातचीत में नेफ्यू रियो ने कहा कि अगर चुनाव में जीतकर गठबंधन सत्ता में आया तो नगाओं की संस्कृति और धर्म की हिफाजत की जाएगी. नेफ्यू रियो का यह बयान उस आशंका के विपरीत है जिसका खौफ इन दिनों नगालैंड के ज्यादातर लोगों के दिल में बैठा हुआ है. दरअसल नगालैंड ईसाई बाहुल्य राज्य है. वहां के लोगों को आशंका है कि बीजेपी के उदय से राज्य की संस्कृति खतरे में पड़ सकती है. लेकिन अब नेफ्यू रियो का आश्वासन लोगों के खौफ को यकीनन कम करेगा.

नेफ्यू रियो का यह आश्वासन नगा बैपटिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) के उस बयान के कुछ दिन बाद आया है, जिसमें बीजेपी की धर्मनिरपेक्षता पर उंगली उठाई गई थी. चर्च ने नगालैंड की सभी पार्टियों के अध्यक्षों के नाम एक खुला खत लिखकर उनसे राज्य में बीजेपी की मंशा और इरादों पर सवाल पूछने को कहा था.

नगा बैपटिस्ट चर्च काउंसिल ने सभी राजनीतिक पार्टियों को संबोधित करते हुए खत में लिखा था कि, 'हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते हैं कि देश में हिंदुत्व का आंदोलन बेहद मजबूत और आक्रामक हो गया है. ऐसा पिछले कुछ सालों में आरएसएस की राजनीतिक विंग बीजेपी के सत्ता में आने बाद से हुआ है. आप राज्य की मासूम जनता को कितना भी समझाने और रिझाने की कोशिश कर लें लेकिन आप हिंदुत्व के आक्रामक आंदोलन से इनकार नहीं कर सकते हैं. आप इस तथ्य से भी इनकार नहीं कर सकते हैं कि नगालैंड देश का अग्रणी ईसाई बहुल्य प्रदेश है और केंद्र में काबिज सत्ताधारी पार्टी राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए जी-जान से जुटी हुई है. क्या आप सभी राजनीतिक पार्टियों ने कभी बीजेपी से उसकी मंशा जानने की कोशिश की है? अगर आपने ऐसा नहीं किया है तो फिर बेवकूफ न बनें.'

नगा बैपटिस्ट चर्च काउंसिल के खत में यह भी लिखा था कि 2015-2017 के दौरान आरएसएस समर्थित बीजेपी सरकार में भारत के अल्पसंख्यक समुदायों ने सबसे बुरा अनुभव किया है. खत में चर्च की तरफ से कहा गया कि अनुयायी पैसे और विकास के नाम पर ईसाई सिद्धांतों को उन लोगों के हाथों में न सौंपे जो यीशु मसीह के दिल को घायल करने की फिराक में रहते हैं.

चर्च की चिंताओं पर सफाई देते हुए नेफ्यू रियो ने कहा है कि चर्च ने अपनी आशंकाएं जाहिर करके कुछ भी गलत नहीं किया है. आक्रामक हिंदुत्व वाकई राज्य के लिए चिंता का विषय है. नेफ्यू रियो के मुताबिक, 'हमने बीजेपी के साथ सिर्फ चुनावी गठबंधन किया है. हम अपना धर्म नहीं बदल रहे हैं. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. यहां सभी धर्मों को मानने वाले लोग मिल-जुलकर रहते हैं. लिहाजा अगर कोई हमारे धार्मिक विश्वास को चोट पहुंचाने की कोशिश करेगा तो हम संविधान सम्मत तरीके से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ेंगे. हम नगालैंड में धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करेंगे.'

फ़र्स्टपोस्ट ने जब पूछा कि क्या हिंदुत्व के मुद्दे पर एनडीपीपी और बीजेपी के बीच कोई समझौता हुआ है, तो नेफ्यू रियो ने कहा, हमने इस मुद्दे पर अबतक कोई समझौता नहीं किया है. लेकिन बीजेपी से मेरे संबंध 15 साल पुराने हैं. हमारे बीच पर्याप्त समझ और तालमेल है. बीजेपी के साथ अपने तजुर्बे और तालमेल की बिनाह पर मुझे लगता है कि हिंदुत्व हमारे रास्ते में रोड़ा नहीं बनेगा. हमारे बीच में जो भी समस्याएं हैं हम उन्हें सुलझा लेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन न सिर्फ नगालैंड के लिए अच्छा है बल्कि पूरे देश के लिए हितकर है.

गौरतलब है कि नेफ्यू रियो ने हाल ही में नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी का दामन थामा है. किसी पार्टी के मुखिया के तौर पर उनकी यह दूसरी पारी है. इससे पहले वह नगा पीपल्स फ्रंट के नेता हुआ करते थे. साल 2003 में नेफ्यू रियो ने मरणासन्न नगा पीपल्स फ्रंट में नई जान फूंक दी थी. जिसके बाद पार्टी ने लगातार तीन विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की. तीनों बार नेफ्यू रियो ही नागालैंड के मुख्यमंत्री बने.

नेफ्यू रियो ने मुख्यमंत्री रहते हुए साल 2014 में लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. तब उन्होंने नगालैंड की एकमात्र लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी. संसद में नगालैंड का प्रतिनिधित्व करने के लिए जाने से पहले उन्होंने मुख्यमंत्री का पद अपने सहयोगी टी.आर. ज़ेलियांग को सौंप दिया था. लेकिन जल्द एनपीएफ और ज़ेलियांग के साथ नेफ्यू रियो के रिश्तों में खटास आ गई. उनके बीच की कलह उस वक्त और बढ़ गई जब कुछ विधायकों ने ज़ेलियांग के खिलाफ विद्रोह कर दिया. एनपीएफ के नेताओं को लगा कि विधायकों के विद्रोह के पीछे नेफ्यू रियो का हाथ है. लिहाज़ा उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया था.

टीआर जे़लियांग

नगालैंड विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से कुछ अरसा पहले ही नेफ्यू रियो नवगठित एनडीपीपी में शामिल हुए हैं. वह निर्विरोध ही उत्तरी अंगमी 2 विधानसभा सीट से चुनाव जीत गए हैं. दरअसल नेफ्यू रियो के खिलाफ जो एकमात्र उम्मीदवार मैदान में उतरा था उसने अपना नामांकन वापस ले लिया है. फिलहाल नेफ्यू रियो एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन के लिए चुनाव प्रचार करने में व्यस्त हैं क्योंकि वह मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं.

एनडीपीपी और एनपीएफ के बीच वैचारिक अंतर पर बोलते हुए नेफ्यू रियो ने कहा, 'दोनों क्षेत्रीय पार्टियां नगा लोगों के अधिकार और पहचान के लिए लड़ रही हैं. दोनों ही पार्टियां नगालैंड की समस्याओं और राजनीतिक मुद्दों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए सजग और अटल हैं. लेकिन दोनों पार्टियों के बीच अंतर जानने के लिए, पहले यह जानना होगा कि मैंने एनपीएफ का साथ क्यों छोड़ा और एनडीपीपी में क्यों शामिल हुआ. एनपीएफ कई गुटों में बंटी हुई पार्टी है. उसके नेताओं के बीच गहरे मतभेद हैं. एनपीएफ के नेतृत्व और सरकार ने खास काम भी नहीं किया है. लिहाजा भारत सरकार एनपीएफ के नेतृत्व पर भरोसा नहीं कर सकती है. यही वजह है कि बीजेपी ने एनपीपी के साथ अपने 15 साल लंबे रिश्ते को खत्म करके एनडीपीपी से संबंध जोड़ा है. ताकि राज्य में राजनीतिक स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सके.'

नेफ्यू रियो नगा एकता के मुखर समर्थक रहे हैं. जिसके तहत असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और म्यांमार के 'नगा इलाकों' को एक राजनीतिक अधिकार क्षेत्र में लाने की मांग की जाती है. मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान नेफ्यू रियो ने असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में काफी राजनीतिक महत्व हासिल किया है.

नगाओं के एकीकरण की मांग नगा विद्रोही समूह भी लंबे अरसे से करते आ रहे हैं. लेकिन विद्रोही समूहों के साथ जारी शांति प्रक्रिया में उनकी यह मांग खारिज की जा चुकी है. नेफ्यू रियो से जब पूछा गया कि क्या वह मांग खारिज होने से खुश हैं तो उन्होंने कहा कि, 'भले ही भारत सरकार ने यह कह दिया हो कि नगा क्षेत्रों का भौतिक एकीकरण संभव नहीं है, लेकिन फिर भी हमारे सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक एकीकरण की सख्त जरूरत है. इस मुद्दे पर दोनों ही पक्ष समझौते के लिए सहमत हैं.'

नेफ्यू रियो ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक गतिशील और निश्चयकारी फैसला लेने वाले राजनेता हैं, जिनका नाम दुनिया के अग्रणी नेताओं में गिना जाता है.